Thursday, October 29, 2009

प्रीत के रंग अनोखे : Extempore Creation

प्रीत के रंग अनोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे
बैठ झरोखे मौला निरखे
प्रीत के रंग अनोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे……...

बिरहन राधा पीत भई है
कान्हा के रंग नीले
भर आलिंगन दुई मिले जब
हरित ज़र्दी कूं पोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे………

हरदी तजी है निज ज़र्दी कूं
चुन तज्यो रंग सादो
दुई मिल हुयो रंग गाढो रे
कौन किसी कूं सोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे………

कुमुदनी जल हरी बसे रे
चंदवा रंग ज़र्द अकासां
खिल खिल हुई हरी कुमुद रे
चलत हवा के झोंके
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे……….

Wednesday, October 28, 2009

बिसात (Extempore Creation)

बिछायी है
उसने
बाजी
शतरंज की
बनाये हैं
मोहरे
हम सब को,
खेलता है वो
इन से
बता के चालें
तरहा तरहा की.......

प्यादे को बना कर
वजीर
दिखा देता है वह
उसकी
टेढी चाल को
बादशाह को भी
चलाता है
चाल अढाई
घोड़े सा करने
कमाल को.........

शह और मात
बन जाते हैं
जुनूँ ज़िन्दगी के
नहीं समझ पाता है
इन्सां
अपनी जात और
बिसात को.....

अमृत और ज़हर

किसने
चखा है
अमृत को,
वो एक
कल्पित नाम.....
किम्वदंतियों ने
किया
वृथा
ज़हर
बदनाम......

सच्ची झूठ ?

...

झूठा सच्चा
क्या हुआ
धर्म धर्म है
मूढ़
सुनने में
आया नहीं
विशेषण
'सच्ची' झूठ........

Tuesday, October 13, 2009

गेह................

चले आयेंगे
जब तब भी
सौत
मौत और
मेह,
जागृत रहो
निमिष हर
रखो संभारे
गेह................

chale aayenge
jab tab bhi
saut
maut aur
meh,
jagrit raho
nimish har
rakho sambhaare
geh.......

Sunday, October 11, 2009

अस्तित्व (एक आशु सृजन)

...
'होने' को साबित करने में
हो जाता है घटित
'कुछ और हो जाना'
भ्रम जनित गंतव्य कि यात्रा में
संभव नहीं कुछ भी पाना,
किसी ने मूँद ली जो आँख
सूर्यास्त ना हुआ
मिथ्या दुन्दुभी विजय की
बजायी किसी ने
कोई परास्त ना हुआ,
'अहम्' की लड़ाई को
दे देते हैं नाम हम
'अस्तित्व' के संघर्ष का
हो जातें है दूर स्वयं से
कर के अवरुद्ध
मार्ग स्व -उत्कर्ष का,
सापेक्ष है जीवन के पहलू
निरपेक्ष उनको करने के
दुस्साहस में
होता है नाश
अंतर के आनन्द और हर्ष का......

सत्य और शब्द : Satya Aur Shabd

नहीं है
सत्य से
शब्द का
समधर्मी
सम्बन्ध
मौन है
भाषा सत्य की
जैसे
पुष्प-सुगंध....

nahin hai
satya se
shabd ka
samdharmi
sambandh
maun hai
bhasha satya kee
jaise
pushp-sugandh.

Thursday, October 8, 2009

महक बनी अपने मुंह मियां मिठ्ठू......

(कवि कवियत्रियों की कमजोरी होती है, उन्हें दाद याने प्रशंसा से बड़ा निर्मल आनन्द मिलता है....कभी कभी खुद को भी पेम्पर करने का दिल होता है, आज मैं अपनी रचनाओं कि तारीफ में कुछ कहना चाह रही हूँ....आधा सच है, मुआफ कीजियेगा, मगर अंशतः ही सही कुछ सच ज़रूर है......आज अपने घर में अपने मुंह मिया मिठ्ठू बन रही हूँ......वैसे यह बात अविनाश कि क्षणिकाओं के लिए पूर्ण सत्य है.....बस ओपनिंग शब्द को 'मेरी नेनो' हटाकर 'क्षणिका' पढ़े....आप वहां 'दुहे होते हैं' भी पढ़ सकते हैं....)

...

मेरी नेनो
होती है
बट वृक्ष के बीज सदृश
राई आकार की
नन्ही नन्ही कविता
अंतर दृष्टि में
बो लेना मित्रों
फलेगी फूलेगी
बड़ वृक्ष बन
छू लेगी वह सविता.......

...

Wednesday, October 7, 2009

मन मिलने से एक हुए/Man Milne Se Aek Hue.......

स्वर्णिम रंग है
अगन का
श्याम
धूम्र का गात
मन मिलने से
एक हुए
क्या रंग-रूप
क्या जात ........?

(सुना होगा आपने : Beauty lies in the eyes of beholder.....इश्क हुआ गधी से तो परी भी क्या चीज है......हूर के पहलू में लंगूर)

Tuesday, October 6, 2009

तलवार और म्यान/Talwaar Aur Myaan.....

मस्तक विच्छेद
कर धन्य होती
तलवार
रणक्षेत्र में
दमक उसकी
जगा देती
शौर्य
बाँकुरे नेत्र में
मदमस्त होकर
नाचती
शमशीर
घमासान में
मित्रों ! अंतत:
वह नग्न सुंदरी
पाती है शांति
म्यान में...........

( राजस्थानी विजडम से प्रेरित)

mastak vichhed kar
dhanya hoti
talwaar rankshetra men
damak uski
jaga deti
shaurya
bankure netra men
madmast hokar nachti
shamsheer
ghamasan men
mitron antatah
wah nagn sundari
pati hai saanti
myaan men........

(inspired by a rajasthani wisdom)

आलोकित....(आशु कविता)

आलोकित तुम से
मेरा संसार
छूट गया सब
लोक व्यवहार
आलोकित तुम से
मेरा संसार.......

तुम बिन सूना
मेरा हर कोना
किसको पाना ?
किसको खोना ?
तन मन चाहे
बस अभिसार
आलोकित तुम से
मेरा संसार........

सीमायें सारी
तोड़ चुकी हूँ
तुम से नाता
जोड़ चुकी हूँ
दुनिया करे
चाहे प्रतिकार
आलोकित तुमसे
मेरा संसार........

मेरे अंतर में
तू है समाया
तू ही संग है
बनकर साया
व्यर्थ है सारे
रीत संस्कार
आलोकित तुम से
मेरा संसार.........

Monday, October 5, 2009

लोक व्यवहार /Lok Vyavhaar........

लाद देता है
लोक व्यवहार
बोझ
विशेषणों का
ढोये जाते हैं जिसे
हम लोग,
जैसे लिए जा रहा हो
कुली कोई
सिर पर अपने
कीमती असबाब
जो होता नहीं
उसका.....

laad deta hai
lok vyavhaar
bojh visheshanon ka
dhoye jate hain jise
hum log,
jaise liye ja raha ho
kuli koi
sir par apne
keemti asbab
jo hota nahin
uska.......

Sunday, October 4, 2009

दाने/Daane.......

..

गढ़ता है कुम्हार
माटी से
मूरत लक्ष्मी की
हो सके मुहैय्या
रोटी के लिए
चन्द दाने
जानता है वो
बरसेंगे
इसी मूरत पर
मेवे और मखाने......

gadhta hai kumhar
maati se
murat lakshmi ki
ho sake muhaiyya
toti ke liye
chand daane
janta hai wo
barsenge
isi murat par
meve aur makhaane......

आंसू और राग /Aansu aur Raag......

...

आंसू झरते हैं
नीचे चले आते हैं
करते हैं स्पर्श
तन का
करने हेतु रमण
मन में....
राग हो जाती है
अग्रसर
दूर होकर
होने गुंजायमान
गगन में
देखा,
पीड़ा का संग है
अन्तरंग का
साथ सुख का होता है
बहिरंग का.......

aansu jharte hain
girte hain neeche
karte hain sparsh
tan ka
karne raman
man men......
raag hoti hai
agrasar
door hokar
hone gunjayman
gagan men......
dekha,
peeda ka sang hai
antarang ka
saath sukh ka hota hai
bahirang ka......

Thursday, October 1, 2009

मौन.Maun...........

..

मेरे मौन को
पहना कर
शब्दों को अपने
मान लिया था तुमने
समझ गये हो
बातें मेरे अंतर की .........

दूर रह कर
सुने जा सकते हैं
बोल
केवल मात्र
बोल............

जानने मौन को
चाहिए होती है
एकात्मकता,
इन्द्रियाँ नहीं
आत्मा
केवल मात्र
आत्मा.....

mere maun ko
pahna kar
shabdon ko apne
maan liya tha tum ne
samajh gaye ho
baaten mere antar ki .....

door rahkar
sune ja sakte hain
bol
keval matra
bol.........

janne maun ko
chahiye hoti hai
aekatmakta,
indriyaan nahin
atma
keval matra
atma..........