Saturday, October 29, 2011

अब और नहीं...


# # #
उसने
मीठा जहर
पिलाया
इसमें क्या
उसकी ख़ता,
खो गयी मैं
अपनी नींदों में
खोया था
मेरा पता.

औरों का
पाने अनुमोदन
मेरा
क्या क्या
खो गया,
'अपने से
मैं मिलूं ना मिलूं'
यह मसला
भारी हो गया.

रातों के
अंधियारे
बरबस
संगी मेरे हो गये,
कहते कहते
'और नहीं',
'अब और नहीं'
मेरे पल पल
माजी हो गये..


सवाल और जवाब


# # #
उठे थे कभी
कुछ सवाल
जेहन में मेरे,
पूछ बैठी थी
मैं खुद से ही :

हुई है क्या
पैदाईश
तुम्हारी
मर्ज़ी से
तुम्हारी ?

मिले हैं क्या
तुम्हे
तुम्हारे
पसंदीदा मां बाप ?

है क्या तेरे
दिल के मुताबिक
शक्ल,
रंग,
जिस्म,
उम्र,
फ़ित्रत
और
हालात ?

या
हैं ये सब हादसे ?

या के वुजूद जो
फसल है
बदइन्तेज़मी की ?

तुम चाहते हो ना
हो जाये
इन्तेज़ामात सारे
मुआफिक
तेरे सोचों के...

कितने
लाचार हो तुम ?
मजबूर हो तुम
कितने ?

क्या है नहीं कोई
अपना वुजूद तेरा ?

चाहते हो गर
हल,
लौट चलो
होशमंदगी के
उस दर्जे पर
मिलेंगे जहाँ
माकूल जवाब
इन इजहारजदा
सवालों के,
जिस्म के परे के
एहसासात की
जानिब से,

पहचान पाओगे
खुद को
करके आज़ाद
उन जालों से
बुने हैं जिनको
खुद तुम ने
बेखबरी के
आलम में....

(जो सीखा है मैंने)

कच्चा कुम्भ

# # #
ताप अंतर का
बिना लगे
कच्चा कुम्भ है
ज्ञान,
नन्ही कंकरिया
तृष्णा की
देती तोड़
अनजान....

(नायेदा आपा से सुने भावों को शब्द देने का प्रयास)

च्यूंटी...


# # #
खुद को
च्यूंटी काटना
जब भरे
आँख में नींद,
मुहूर्त फेरों का
यदि टला,
पछतायेगा 'बींद'* ..

(राजस्थानी ओंठे (anecdote) से प्रेरित नेनो)
*'बींद' राजस्थानी में दुल्हे को कहते हैं.

अल्लाह का नूर...


# # #
हर
मुश्किल का
होता है
हल...

थमना है
मौत
जीवन है
चल...

बनता है
फल
बीज
गल गल..

सूख कर
जल
बनता
बादल..

बुझ कर
दीया
बनता
काजल..

मिटता जब
आज
बनता है
कल..

मिटाता
मलाल
आंसू
ढल ढल..

साँसों के संग
जीवन
हलचल..

किनारों के
बीच
नदी
कलकल..

ना देख
अल्लाह का
नूर,
आँखें
मल मल..

Thursday, October 27, 2011

अनचखा विष

# # #
रहते हुए
खारे समंदर में,
सोचा था
कई बार
मैंने
विष को,
मेरे मंथन का
प्रतिफल
अमृत
जब
हुआ था
हासिल मुझ को,
पाया था
मैंने
वह कुछ और नहीं
मेरा अनचखा
विष ही तो था,
और
यही तो सच था
शायद
देवों दानवों की
कथा का...

Monday, October 24, 2011

मन की गिरह

# # #
गाँठ खुली
लम्बी हुई
उलझी उलझी
डोर,
खोलो ना
मन की गिरह
गर ऊँचा होना
और...

Saturday, October 22, 2011

मतिभ्रम...

# # #समझो मत
सूर्य ने
उग कर,
दिया
अन्धेरा मार,
पल को
बन्द कर
द्वार को,
फिर से
तिमिर तैयार...

[लगता है रीपीट परफोर्मेंस है, एंजॉय करिए :)]


Friday, October 21, 2011

साधक और मदारी..

# # #
साधक
आत्मा का
सदा
पाया जाय
अकेला,
बजा बजा कर
डुगडुगी,
मदारी
लगाये
भीड़ का रेला..

Thursday, October 20, 2011

निराई...

# # #
(जब मैं हैदराबाद होती थी, हमारे नेटिव प्लेस-राजस्थान के कुछ खेतिहर लोग हमारे मेहमान होते थे, उनकी जमीनी बातों में बहुत गहरा व्यावहारिक ज्ञान छलकता था..बचपन में सुनी कुछ शिक्षाप्रद बातें मस्तिष्क पर अंकित हो गयी, उनमें से यह एक है...)
# # #
पौध हुई
थोड़ी बड़ी,
संग पनपे
खर-पात,
हरित फसल
सूखी करे,
अवांछित का साथ...
*
*
*
तो
कर निराई
'जस नाथ'..
(जस नाथ बात कहने वाले का नाम था)

Wednesday, October 19, 2011

उपकार...


# # #
कैसे भूलेगा
दीया,
तम तेरा
उपकार,
हेतु तेरे
नेह दे रहा
स्वार्थमय संसार..

Monday, October 17, 2011

कच्चापन


# # #
कच्चापन
ना शेष हुआ,
क्यों करता
घट
अभिमान,
ना जाने
कोई ठेस
तुझे
कर दे
ठीकर समान....

Sunday, October 16, 2011

पैमाने परख के ....

# # #
कुम्हार आया
लेकर घड़ा,
मूंद कर आँख एक,
झाँका खरीदार ने
भीतर घट के,
आया नज़र
सूराख एक
नन्हा सा,
कह दिया
घड़ा है बेकार....

आया लोहार
लेकर चलनी,
हुआ खुश ग्राहक
देख कर
छेद है बहुत,
छनेगा अच्छा ,
कितनी अच्छी है
चलनी.....

असर...(Extempore)


# # #
होता नहीं असर
मेरी दुआ का
सोचता हूँ
ए खुदा
के ना है कोई
वुजूद तेरा.....