Saturday, October 27, 2012

सिलवटें...


# # #
ये दाग धब्बे 
ये खरौंचे
ये सिलवटें 
महज़ गवाह है 
शख्सियत के
खुद शख्सियत नहीं...

ये अलफ़ाज़,
ये हर्फ़,
ये आवाज़ 
महज़ सांचे है 
तख्लीकी सलाहीयत के 
खुद तखलीक नहीं....

(तखलीक=सृजन, सलाहीयत=सलीका) 

Monday, October 22, 2012

इल्म नहीं...

# # #
बन जाता है
फ़ेल
खुद ब खुद
जाना हुआ 
देखा हुआ
समझा हुआ 
इल्म,
करनी पड़े
मसक्कत
जिसे
करने तब्दील
जिंदगी में,
होता है वह
कोई इल्म नहीं
बस पूँजी
उधार की....

(फ़ेल=कृत्य /क्रिया/action/work.)

Sunday, October 21, 2012

इल्म की तकरीरें..

# # #
बदलती नहीं 
फितरत 
महज़ 
इल्म की 
तकरीरों से,
हो ही जाता है
ठंडा 
पानी 
तपाया हुआ....

Saturday, October 20, 2012

इल्म वक्त का.....


# # #
समझ गयी हूँ 
आज मैं
कीमत 
छोटे से 
लम्हे की,
नहीं बेचूंगी 
अब उसको
गफलत 
नाम वाले
कसाई के
हाथ.....

Tuesday, October 9, 2012

तुतला रही हूँ।।


# # #
लिख डाली है 
मैं ने 
सैंकड़ों 
नज्में
ग़ज़लें 
और 
रूबाईयाँ 
तो क्या,
तुतला रही हूँ 
आज भी 
करने को 
ज़ाहिर 
गले में अटके 
महज़ एक ही  
नग्मे  को,,,,,,,,
 

Thursday, October 4, 2012

दृष्टि और श्रृष्टि..


# # #
सुलझ जाती है
हर उलझन,
मिलती है राह 
आगे बढ़ने की,
हो अगर स्पष्ट
दृष्टि हमारी....

अंतर है 
देखने का, 
ज़ज्बा हो यदि 
समझने का, 
गैरों की नहीं
अपनी ही तो  है
श्रृष्टि हमारी...

खुद-ब-खुद


# # #
क्यों कर रहे हो
बेकार की 
जद्दोजेहद 
तोड़ कर 
बीज को
बूटा निकालने की, 
दिल में है
गर ख्वाहिश 
तरक्की की,
सौंप क्यों नहीं देते 
उसको 
बा भरोसा 
फ़राख़ दिल 
माटी को,
भीगेंगे
रूह ओ जिस्म 
उसके
और 
फूट जायेंगे 
खुद-ब-खुद 
जड़,
कोंपलें 
पते 
और
फूल...