Sunday, September 27, 2009

गिनतियाँ..........

..

तुम ने
जप किये
तप किये
पढ़ी नमाजें
गायी हैं प्रार्थनाएं
तस्बीह के
मनकों पर
चलायी है उंगलियाँ......

तुम तो
करते रहे हो
गिनती
क्या क्या किया ?
कितना किया ?
किस किस के लिए किया....?
फुर्सत ना मिली
तुमको
झांकने की
खुद में .........

खुदा बैठा था वहीँ
कर रहा था
इन्तेज़ार
मगर पूरी ना हो सकी
गिनतियाँ तुम्हारी........

आई थी इक आवाज़
पहुंचना है गर उस तक
लौट आना है घर तक
भूल जा अपने
जाप करोड़
पाना है अनगिनत को
डूब जा ध्यान में
सब गिनतियों को
छोड़......

(तस्बीह=माला जिस के बीड्स के सहारे अल्लाह/भगवान का नाम सुमरिन किया जता है.)

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