Friday, July 31, 2009

अनुरूप/Anuroop

असंभव सा
लगता है
दो रत्नों का
होना अनुरूप
कदाचित
मिल जाये तो
समझा जाता
क्रत्रिम उनका
स्वरुप.....

Asambhav sa
Lagta hai
Do ratnon ka
Hona anuroop
Kadachit mil jaye to
Samjha jata
Krtrim unka
Swaroop.............

Thursday, July 30, 2009

झरना....

# # #
अविरल
प्रवाहित
नयनों से मेरे,
ये अश्रु नहीं
एक झरना है,
नहीं शिकवा
मुझे
तुम से है सनम,
निर्मल मोहे
खुद को
करना है.....

मजबूरी/Mazboori

अधूरा तन
अधूरा मन
प्रिये! यह कैसी दूरी है
रजनी का अवसान निकट है
तृष्णा मेरी अधूरी है
मधु का प्याला छलका दोना
क्यों तेरी मगरूरी है
सांवरा सा बदन
चंचल चितवन
सौंदर्य अनुपम
बिन आभूषण
अल्लाह ! ये तो मख्मूरी है
जुदा हो ना सकूँ में तुझ से
यह मेरी मजबूरी है............

मगरूरी=घमंडीपॅन मख्मूरी=नशीलापन
Adhura tan
Adhura man
Priye ! yeh kaisi doori hai
Rajani ka avsan nikat hai
Trishna meri adhuri hai
Madhu ka pyala chhalka do na
Kyon teri magroori hai
Sanwara sa badan
Chanchal chittvan
Saundarya anupam
Bin aabhusan
Allah ! yeh to makhmoori hai
Juda ho na sakun main tujh se
Yah meri mazboori hai..........

Magroori=dhamandipan Makhmoori=nasheelapan.

बीज...

# # #
कहा पत्ते ने,
"डाली ! मैं नहीं होता अगर
लगती कितनी बदसूरत तू."
बोल उठा था फूल,
"पत्ते ! गर मैं नहीं होता यहाँ
सूना सूना सा लगता तू "
क्यों रहता पीछे फल भी
कह डाला उस ज़ालिम ने भी,
"गर होता नहीं मैं
सुन अरे मूर्ख फूल,
जन्म तुम्हारा तो
हो जाता फजूल..."

सुना था
सब को,
छुपे-लुके बैठे
नन्हे बीज ने,
और
लगा था वह सोचने :
"पड़ी है अपनी ही सब को,
नहीं है कोई राजी
कुछ भी सहने को,
फटा नहीं होता गर मैं
होता नहीं कोई भी*
यह सब आज कहने को...

*(डाल, पत्ता, फूल या फल)

Wednesday, July 29, 2009

हकीक़त....

# # #
झरा था पेड़ से
एक पत्ता
गिर कर पानी में
लगा था तैरने वो ,
कभी इधर
कभी उधर
कभी ऊपर
कभी नीचे
कभी आड़े
कभी तिरछे,
हो गया था
फूल कर कुप्पा..

इतर के बोला था
पेड़ से पत्ता,
"देखो मेरी लियाकत,
देखो हिम्मत मेरी
बन गया हूँ मैं
एक तैराक काबिल ;
कर पा रहा हूँ मैं
मनमानी,
घूम फिर रहा हूँ
आजादी से
जरा देखो ....."

हो गयी थी शाम
हवा
थम सी गयी थी,
और
पानी
ठहर सा गया था ..
कहा था पेड़ ने पत्ते से,
"एक दफा
चले आओ ना
जानिब मेरे."

होकर रुआंसा
पत्ता
लगा था यूँ कहने,
"आऊँ कैसे ?
बात ना रही,
काबू की अब मेरे,
बदकिस्मती यह मेरी
हुआ
परवश भाई मेरे !"

हो गया था
एहसास
पत्ते को
हकीक़त का,
अपनी किस्मत का
या अपनी
ऐंठी फ़ित्रत का......

Tuesday, July 28, 2009

पर्वत और शिखर....

# # #

विस्तार
पर्वत का है
योजनों में,
परिमाप
शिखर का है
सूक्ष्म कितना,
पाना है यदि
स्वयं को
भीड़ से टल,
स्वयं का
विस्तार नहीं
सांद्रण कर,
बना तीक्ष्ण
स्वयं को
शिखर कि तरहा..

बन्दे !
फैलना नहीं है
जमीन पर
तुझ को
पर्वत कि तरह,
पाना है
खुद को...
खुदा को,
उठके ऊपर
शिखर कि तरहा...

[१)सांद्रण=घना करने कि प्रक्रिया,to concentrate ,ज्यादातर yah 'term' द्रव के विषय में प्रयुक्त होता है यहाँ उपयुक्त अर्थ देने हेतु इसका अपवाद स्वरुप प्रयोग किया गया है....अप्रासंगिक नहीं है..क्योंकि तीक्ष्ण होने के लिए सघन होना पड़ता है, अणुओं परमाणुओं को अधिकाधिक संलग्न करते हुए उनके दायरे का संकुचन करना होता है...अर्थात मन कि शक्तियों को केन्द्रित कर पैना बनाना होता है. २) उदाहरणों की सीमायें है..बस बात कहने का एक जरिया है.]

Monday, July 27, 2009

ग़लतफ़हमी/Galatfehami

दूब पूछ बैठी थी
झरने से,
या किया था कोई
तब्सिरा उसने,
"ऐ चश्म-ए-हैवां !
क्या औलाद है तू हवा की,
कभी भी रहते नहीं टिक कर ?"
बोला था झरना,
"गलतफहमी हुई है
आपको खातून,
मैं तो हूँ फर्जन्द
पहाड़ का,
जो कभी
बदलता नहीं करवट."

तब्सिरा=आलोचना, फ़र्ज़न्द=बेटा, चश्म-ए-हैवां=अमृत का झरना, खातून=भद्र महिला

Doob puchh baithi thi
Jharne se,
Ya kiya tha koyi
Tabsira usne,
"Aey chashm-e-haivan !
Kya aaulad hai tu hava ki,
Kabhi bhi rahte nahin tik kar ?"
Bola tha jharna,
"Galatfehami hui hai
Aapko khatoon,
Main to hun farzand
Pahad ka,
Jo kabhi
Badalta nahin karwat."

Tabsira=criticism, Farzand=son, Chasm-e-havain=spring of nectar, Khatoon=lady.

Sunday, July 26, 2009

साक्षी भाव....

# # #

आतें हैं
समक्ष
कितने ही
रूप :
सुन्दर-असुंदर
यौवन-वृद्ध्तव
उदासी-उत्फुल्लता
और
मिलाता नहीं
जब
दर्पण
मन को
दृष्टी से,
होता है
यही तो
साक्षी भाव,
यही तो
होती है
स्थितिप्रज्ञता.........

Friday, July 24, 2009

साकिन/Saakin

अगन की लपट और
धुआं होतें हैं
आसमां के मुखातिब
आब का बरसना या बहना है
जमीं और ढलान के जानिब
इसी खींचतान ने
रखा है आलम को साकिन .............

साकिन=स्थिर/stable/steady

Agan ki lapat aur
Dhuan hoten hain
Aasman ke mukhatib
Aab ka barsna ya bahna hai
Jami-o-dhalan ke janib
Isi kheenctan ne
Rakhaa hai aalam ko saakin.......

Saakin=Sthir/stable/steady

वादा / Vaada

टूटना मेरी
नींद का था कि
अनजाने से ख्वाब का
पूछ बैठी थी
क्यों नहीं हुआ जलवा
यह आफताब
किसी ने कानों में
हौले से कहा
सूरज का
चले आने का
वादा रात से है
नींद और ख्वाब से नहीं...........

Tootna meri
Neend ka tha Ki
Anjaane se khwab ka
Poochh baithi thi
Kyon nahin hua jalwa
Yah aaftab
Kisi ne kanon men
Hole se kaha
Suraj ka
Chale aane ka vaada
Raat se hai
Neend aur khwab se nahin.....

Thursday, July 23, 2009

ताक़त रोशनी की...

# # #
विशालकाय
अँधेरा
जो बड़ा है
हाथी से भी,
दबा नहीं
सकता
चींटी सी
पतली
शमह की
लौ को,
एक नन्ही सी
सच्चाई
हरा सकती है
झूठ के
करोड़ों सौ को...

Wednesday, July 22, 2009

बोध (Perception)


पाँव में
चुभ गया था
एक कांटा
पूछ बैठा था पांव,
"अरे कांटे !
बदला लिया तूने
किस जनम का,
दे डाली है
पीडा इतनी."
काँटा लगा था कहने
"निगल लिया तूने
मुझको.........
और डांट भी रहे हो."

Panw men
Chubh gaya tha
Aek kantaa
Puchh baith tha panw,
"Are kaante !
Badla liya tune
Kis janam ka
De daali hai
Peeda itni."
Kaanta laga tha kahne,
"Nigal liya tune
Mujhko........
Aur daant bhi rahe ho."

Tuesday, July 21, 2009

तपिश.....

# # #
बनाया
कच्ची मिट्टी से
घड़ा एक
कुम्हार ने,
रखा पकाने
उसको
धधकते
अलाव में...

व्याकुल हो
कष्ट से
बोला घट :
"कुम्भकार!
मैंने पा तो लिया
आकार,
तपा रहा है
क्यों मुझे
असहनीय अगन में
जला रही जो
बदन मेरा."

"सर पर पनिहारी के
क्या सवार होगा
सीधा ही तू,
हेतु उठने
ऊँचा
होगा गुज़रना
तपिश से”
कहा था हंस के
कुम्हार ने.....

Monday, July 20, 2009

रंगों का असर/ Rangon Ka Asar


देख कर पत्तों को
होते पीला
उदासी में
बागबान का
चेहरा भी
हो गया पीला
जब लिया रंग
पीला फ़लों ने
बागबान मुस्काया
चेहरे पर आई ललाई
ऐसा hi होता है
रंगों का असर
अलग अलग
मौकों पर.

Dekh kar patton ko
Hote peela
Udasi men
Bagban ka
Chehra bhi
Ho gaya peela
Jab liya rang
Peela phalon ne
Bagban muskaya
Chehre par aayi lalayi
Aisa hi hota hai
Rangon ka asar
Alag alag
Moukon par........

Sunday, July 19, 2009

खींचतान....

# # #
पूजता
धरा को
बीज नन्हा
और
गगन को
उठा-फैला
वृक्ष,
इसी
खीँच-तान के
चक्कर में,
बन जाता
मालिक
फल का,
कोई
जुदा सा
शख्स...

Saturday, July 18, 2009

नज़र/Nazar

बच्चे को
कालस लगाया कि
नज़र ना लग जाये
कागज़ को
कालस लगाया कि
नज़र लगे.....


Bachche ko
‘Kaalas’ lagaya ke
Nazar na lag jaye
Kagaz par
‘Kaalas’ lagaya ke
Nazar lage……

(bachche ke sandarbh men kaalas se tatparya dithaune se hain aaur kagaz ke sandarbh men syahi ki baat hai)

Friday, July 17, 2009

साथ...

# # #

गिर पड़े थे
पत्ते झर झर के
और
वृक्ष
महसूस
कर रहा था
खुद को
सादा सादा
सौंदर्यहीन सा ......

लगा था
बिलखने
वृक्ष,
कहा था
उसने :
निभाई
खूब प्रीत
साथियों !
छोड़ कर मुझ को
हो गए अलग
तुम,
बना गए
असुंदर
मुझ को...

पत्तों ने
किया था
स्पष्ट :
नासमझ !
जब तक
हरे थे हम,
दे रहे थे
शोभा
तुझ को
बन कर श्रंगार;
सूख गए हम ….
गिर गए
बनने हेतु
तुम्हारी खुराक,
पा सको ताकि
तुम
नवजीवन
सौंदर्य से
भरा-पूरा....

Wednesday, July 15, 2009

क्षमता कच्चे धागों की/Kshmata Kachche Dhaagon Ki

नितांत कच्चे धागे
गूँथ कर
बट खा कर
बन गए
मज़बूत सा
एक रस्सा
जकड़ सके वो
अति बलवान
उन्मत्त
पशु को भी..................


Nitant kachche
Dhaage
Jab gunth kar
Bat kha kar
Ban gaye
Mazboot sa
Aek rassa
Jakad sake woh
Ati balwan
Unmatt
Pashu ko bhi..............

Tuesday, July 14, 2009

सामुदायिक आचरण/ Samudayik Aacharan


Nahar
Ghanghor jungle men
Rahta hai akela
Khul kar karta hai
Vicharan.....

Mooshak
Rahten hain
Dharati men
Chhup kar
Apne bil men
Banaakr toli aur
Daudate rahte hain
Kashamakash men;
Bhayakrantata hai yah
Na ki
Samudayik
Aacharan........

नाहर
घनघोर जंगल में
रहता है अकेला
खुल कर करता है
विचरण.....

मूषक
रहतें हैं
धरती में
छुप कर
अपने बिलों में
बनाकर टोली और
दौड़तें हैं
कशमकश में
भयाक्रांतता है यह
ना कि
सामुदायिक
आचरण...........

Monday, July 13, 2009

भावनाएं और शब्द

आज तुम नाराज़ हो
और मैं हूँ उदास
ना जाने क्या कह दिया है
मेरे शब्दों ने
जो नहीं चाहती थी
मैं कहना.....

जब जब
परोसती हूँ मैं
भावनाओं को
पका कर शब्दों में
ना जाने क्यों
हो जाती हैं वे
'Corrupt' (दूषित)...........

कैसे मिटेगी प्यास ?/Kaise Mitegi Pyaas ?

नहीं मिटेगी प्यास
ललाट पर
ओक (अंजलि) लगाने से
गर होना है तृप्त
सुशीतल जल पी कर
लाने होंगे हाथ
होंठों के पास और
झुकाना होगा सर को .........

( Rajasthani Wisdom)

Nahin Mitegi Pyaas
Lalat par
Aok (anjuli) lagane se
Gar hona hai tript
Susheetal jal pee kar
Lane honge haath
Hoton ke pas aur
Jhukana hoga sar ko.....

(Rajasthani Wisdom)

Sunday, July 12, 2009

चुन लो !

जीवन से
उभरती है
चैतन्यता भी
भ्रान्ति भी
जैसे दीपक से
ज्योति भी
धुवां भी .............

Saturday, July 11, 2009

लीक पर क्यों ?


जो नहीं हो सके
चेतन-सजग
देतें हैं यह सीख
क्यों अपनाते
दृष्टी-सोच-विवेक को
चलो पकड़ कर लीक .

Leek Par Kyon ?

Jo nahin ho sake
Chetan-sajag
Deten hain
Yah seekh
Apnate kyon
Dristi-soch-vivek ko
Chalo pakad kar leek.

निर्मोही

# # #
( सोचा होगा ऐसा यशोधरा ने बुद्ध के पलायन के पश्चात)

उस नीरव
रात्रि में
छोड़ चले थे
तुम
मुझको और
अपने
प्राणप्रिय
राहुल को
ना जाने
किस
ज्ञान के
मोह में
निर्मोही बन....

कितना
विलाप
किया था
मैंने
तुम्हे खोकर
लगा था
सब कुछ
हो गया
रीता सा....

सोचा था
फिर
यह भी तो था
एक मोह
कर गये थे
कारण जिस के,
मुक्त तुम
हम को,
करने
तलाश
खुद अपनी
मुक्ति की.......

Friday, July 10, 2009

कहें क्या हम इसको ?

# # #
ताक कर
निशाना
पके फलों पर
फैंकता है
पत्थर......

रखता है
कदम
टालते हुए
चुभ ना जाये
कोई खार...

करता है
बचाने के
खुद को
इंतजाम
हज़ार...

कहें क्या हम
इसको ?
निर्दयी !
हृदयहीन !
जड़-मति
खुदगर्ज
या कि
कायर...

Thursday, July 9, 2009

निथरना (Nitharna)


फैंकने से पत्थर
जल में
होता है
तनिक विषाद
क्षमाशील
नीर
समा लेता है
अपने तल में
कंकर को
और स्वयं
जाता है निथर.. .........

Nitharna=swachh/nirmal hio jana
**************************

Fainkane se pathar
jal men
hota hai
tanik vishad
kshamasheel neer
sama leta hai
apne tal men
kankar ko
aur swayam
jata hai nithar.......

Wednesday, July 8, 2009

अधीर

# # #

लघु
होता है
कितना
कंकर,
और
होता जल है
धीर वीर गंभीर,
हो उद्वेलित
जब फैंका
पाथर,
भया नीर
क्यों
अस्तव्यस्त
अधीर...?