# # #
भटक रहा था
सपना यहाँ वहां,
मिल गयी थी
महक उसको
करते हुए
प्रवेश
बन्द कली में,
पूछ कर राह
उसी से तो
समा गया था
छलिया
मूंदे नयनों में...
Wednesday, February 29, 2012
Sunday, February 26, 2012
नदी तू है बरसाती....
# # # # #
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
यदा कदा आ जाती है तू
बन मीत नयी मुस्काती,
लग कर गले ख़ुशी ख़ुशी तू
नगमे नये सुनाती,
मेरे बासी जल में मिल तू
लहरें नयी उठाती,
थकन भूला लौटा कर यौवन
जीवन गीत जगाती,
किन्तु मिलन के संग में तू
जाने को भी इतराती,
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
कुछ दिन मेरे नादां दिल को
याद तेरी जकड़ेगी,
सोते जगते साँसे लेते
कमी तेरी अखरेगी,
भटक तड़फ कर मन की धारा
राह सच की पकड़ेगी,
मेह मेहमान सदा किस के घर
सोच सटीक धरेगी,
संग मिलन के जुडी जुदायी
यह जग की परिपाटी.
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
(एक राजस्थानी कविता का भावानुवाद)
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
यदा कदा आ जाती है तू
बन मीत नयी मुस्काती,
लग कर गले ख़ुशी ख़ुशी तू
नगमे नये सुनाती,
मेरे बासी जल में मिल तू
लहरें नयी उठाती,
थकन भूला लौटा कर यौवन
जीवन गीत जगाती,
किन्तु मिलन के संग में तू
जाने को भी इतराती,
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
कुछ दिन मेरे नादां दिल को
याद तेरी जकड़ेगी,
सोते जगते साँसे लेते
कमी तेरी अखरेगी,
भटक तड़फ कर मन की धारा
राह सच की पकड़ेगी,
मेह मेहमान सदा किस के घर
सोच सटीक धरेगी,
संग मिलन के जुडी जुदायी
यह जग की परिपाटी.
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....
(एक राजस्थानी कविता का भावानुवाद)
Friday, February 24, 2012
कर्ता भाव-अहम् भाव...
# # # #
हमारी अपनी
उपलब्धियों की
पृष्ठभूमि में
होता है
अनेकों रूप-अरुपों का
प्रभाव,
चुरा लेते हैं
जब उनसे
हम दृष्टि,
हो जाता है हावी
हम पर
कर्ता भाव
और
अहम् भाव ...
हमारी अपनी
उपलब्धियों की
पृष्ठभूमि में
होता है
अनेकों रूप-अरुपों का
प्रभाव,
चुरा लेते हैं
जब उनसे
हम दृष्टि,
हो जाता है हावी
हम पर
कर्ता भाव
और
अहम् भाव ...
Thursday, February 16, 2012
स्वभाव....
# # # #
गिर पड़ी थी
किरकिरी
हीरे को तलाशते
इन्सान की
आँख में,
देने लगा था
गालियाँ
रेत को,
कोस कोस कर
दिखाने लगा था
दुर्भाव,
किन्तु धरा
क्षमाशील
जानती है
मानव का
नाशुक्रा स्वभाव...
गिर पड़ी थी
किरकिरी
हीरे को तलाशते
इन्सान की
आँख में,
देने लगा था
गालियाँ
रेत को,
कोस कोस कर
दिखाने लगा था
दुर्भाव,
किन्तु धरा
क्षमाशील
जानती है
मानव का
नाशुक्रा स्वभाव...
Wednesday, February 15, 2012
बेनियाजी...
# # # #
हो कर मदमस्त खुद से ही
बरपा महक से,
फिरता है
कस्तूरी हिरन
वन वन,
बेखबरी-ए-मम्बा
बन जाती है
बेनियाज़ी
और
बन आती है
भेडियों की.....
(बेखबरी=अज्ञान/ignorance, मम्बा=स्रोत/origin, बेनियाजी=बेपर्वाई/carefree attitude.)
हो कर मदमस्त खुद से ही
बरपा महक से,
फिरता है
कस्तूरी हिरन
वन वन,
बेखबरी-ए-मम्बा
बन जाती है
बेनियाज़ी
और
बन आती है
भेडियों की.....
(बेखबरी=अज्ञान/ignorance, मम्बा=स्रोत/origin, बेनियाजी=बेपर्वाई/carefree attitude.)
Monday, February 13, 2012
शाश्वत सत्य...
# # # #
औदार्य है
स्त्री का गहना,
सामर्थ्य है उसका
सहर्ष सहना,
विहीन इनके
नारीत्व ज्यों
पुष्पहीन कानन
और
नीर बिना
सरिता का बहना...
औदार्य है
स्त्री का गहना,
सामर्थ्य है उसका
सहर्ष सहना,
विहीन इनके
नारीत्व ज्यों
पुष्पहीन कानन
और
नीर बिना
सरिता का बहना...
Sunday, February 12, 2012
एक सत्य.....
# # #
पहुँचने गंतव्य तक
चलना ही होगा
हमको
पकड़ कर
कोई राह,
बिसरा कर
अहम् का चिंतन,
दौड़ी आती है
नदियाँ
चल कर
अपनी ही राह ,
देता है कब
जलधि उनको
मार्गचित्र
और
आमंत्रण.....
पहुँचने गंतव्य तक
चलना ही होगा
हमको
पकड़ कर
कोई राह,
बिसरा कर
अहम् का चिंतन,
दौड़ी आती है
नदियाँ
चल कर
अपनी ही राह ,
देता है कब
जलधि उनको
मार्गचित्र
और
आमंत्रण.....
नित्य-अनित्य.....
# # #
भेद समझ पाना
कठिन है
नित्य का
अनित्य का
सापेक्ष है
निर्वचन
सत्य का
असत्य का...
विकास सूर्य का
मापा जाता
धूप से भी
छाँव से भी,
जीवन की
पहचान होती
मरघट से भी
गाँव से भी.....
गिर गये हो तुम
अर्थात
पूर्व इसके
तुम खड़े थे
पिघल गये हो तुम
निश्चित पहले
तुम कड़े थे....
जो स्थित
उच्च पर
है सम्भावना
उसके पतन की,
जो गिर पडा
वह उठ सके
यह प्रेरणा
होती गगन की...
हार अपनी जगह
जीत का एक
दांव भी है,
दूरी का पैमाना
साथी !
लक्ष्य भी है
पांव भी है....
साकार
स्वयं बन जाता है
प्रतिबिम्ब
निराकार का,
किसलिए तू
चिंतन करता
समर्थन का
प्रतिकार का...
भेद समझ पाना
कठिन है
नित्य का
अनित्य का
सापेक्ष है
निर्वचन
सत्य का
असत्य का...
विकास सूर्य का
मापा जाता
धूप से भी
छाँव से भी,
जीवन की
पहचान होती
मरघट से भी
गाँव से भी.....
गिर गये हो तुम
अर्थात
पूर्व इसके
तुम खड़े थे
पिघल गये हो तुम
निश्चित पहले
तुम कड़े थे....
जो स्थित
उच्च पर
है सम्भावना
उसके पतन की,
जो गिर पडा
वह उठ सके
यह प्रेरणा
होती गगन की...
हार अपनी जगह
जीत का एक
दांव भी है,
दूरी का पैमाना
साथी !
लक्ष्य भी है
पांव भी है....
साकार
स्वयं बन जाता है
प्रतिबिम्ब
निराकार का,
किसलिए तू
चिंतन करता
समर्थन का
प्रतिकार का...
Monday, February 6, 2012
हद-ओ-उसूल
हद-ओ-उसूल
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घेरे खड़ा है
कंदील को
घोर अँधेरा,
नहीं है मगर
आमदा
करने को
ज़बरदस्ती*,
एहसास है
उसे भी
हद-ओ-उसूल का..
*(बलात्कार के सेन्स में)
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घेरे खड़ा है
कंदील को
घोर अँधेरा,
नहीं है मगर
आमदा
करने को
ज़बरदस्ती*,
एहसास है
उसे भी
हद-ओ-उसूल का..
*(बलात्कार के सेन्स में)
Sunday, February 5, 2012
Thursday, February 2, 2012
प्रतिपादन.....
# # #
प्रतिपादन
अलग विलग के
हो जाते हैं व्यर्थ,
पहचान पाते हैं
वस्तुतः
जिस क्षण
अस्तित्व हमारा है
एक कण नन्हा सा
विराट अस्तित्व का ......
शब्द ब्रह्म है
शब्द स्वयं है
शब्द सत्य है
शब्द ही असत्य
शायद इसीलिए
शब्दों के ये जाल
भटका देते हैं
हमें बार बार
हमारे अपने ही
जंगल में
और
देने लगते हैं हम
भाषा में मढ़े
निज अहम् को
नाम ब्रहम का...
प्रतिपादन
अलग विलग के
हो जाते हैं व्यर्थ,
पहचान पाते हैं
वस्तुतः
जिस क्षण
अस्तित्व हमारा है
एक कण नन्हा सा
विराट अस्तित्व का ......
शब्द ब्रह्म है
शब्द स्वयं है
शब्द सत्य है
शब्द ही असत्य
शायद इसीलिए
शब्दों के ये जाल
भटका देते हैं
हमें बार बार
हमारे अपने ही
जंगल में
और
देने लगते हैं हम
भाषा में मढ़े
निज अहम् को
नाम ब्रहम का...
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