Tuesday, April 24, 2012

गुणधर्म...


गुणधर्म...
# # #
सज कर 
सुकोमल सुंदरी की 
वेणी में 
कुम्हलाया था 
नाज़ुक फूल, 
गिर कर
दब कर 
पांव तले 
माटी में,
रहा था 
जस का तस 
निष्ठुर शूल !

saj kar 
sukomal sundari kee
veni men
kumlhaya tha
nazook phool,
dab kar 
paanw tale 
maati men,
raha tha
jas ka tas
nishthur shool !

(sukomal=tender, sundari=beauty, veni=tied up hair of woman, shool=thorn)*
Meanings are given for few words for the benefit of my non-Hindi-speaking readers)

Saturday, April 21, 2012

लेता क्यों थाह आकाश की.....


लेता क्यों थाह आकाश की.....
# # # # #
पंछी एकाकी
बैठा निज नीड़ 
बसी है मन में 
कैसी पीड़, 
नहीं उड़ता
भोला पंख पसार 
लेता क्यों थाह 
आकाश की ?

प्रातः संध्या में मेल नहीं,
शशि रूठे माने खेल नहीं 
सूरज बूढ़े में बचपन है
यहाँ कुछ भी तो अनमेल नहीं  
तू समझ सीमा 
विश्वास की,
लेता क्यों थाह 
आकाश की ?

तूफाँ का पवन से याराना 
क्यों शम्मा पे जलता परवाना
सच मिल जाता अनुमानों से 
लगता अनजाना पहचाना 
गुल खिला 
मुरझाया 
टपक गया, 
यह कथा अनवरत 
विकास की, 
लेता क्यों थाह 
आकाश की ?

माना कि ख्वाब भी होते हैं
जागी आँखों में सोते हैं 
बनते हैं और बिखरते है 
वे टूट टूट कर रोते हैं,
कंधे लदी है लाश 
विफल प्रयास की,
लेता क्यों थाह 
आकाश की ?

बन्द कपाट..


बन्द कपाट..
# # #
बन्द कपाट
खुलने के संग,
मिल गया 
अन्तरंग से 
बहिरंग... 

रूह ओ ज़मीर...


रूह ओ ज़मीर...
# # #
एक इमारत
गोल गुम्बद.
चौकोर आँगन,
लंबे गलियारे,
रूह-ओ-ज़मीर पहरेदार
दोहराना 
आवाज़ उनकी,
बन जाती 
फ़ित्रत 
गुम्बद की...

Saturday, April 14, 2012

वक़्त का घेरा...

# # #
नहीं होता है
हर मसले का
हमातन,
हमाउम्र ओ हमागीर
हल कोई,
निकल आता है
हर एक हल में
बीज एक नये मसले का,
जो फूट पड़ता है
तब्ददुल-ए-हालात पर,
हो जाता है
शुरू फिर से
दौर एक
किसी और ही
नये हल की
तलाश का,
तौड़ सकता है
इन्सां
वक़्त के इस घेरे को
हो कर
होशमंद ओ हरनफ़स जवाँ* !

(हमातन=पुर्णतः, हमाउम्र=आजीवन,,हमागीर =सार्वभौम, मसला=समस्या, हल=समाधान, तब्ददुल=परिवर्तन, हालात=परिस्थितियाँ, होशमंद=सचेत/aware, हरनफ़स=हर समय, जवाँ=young)
*हरनफ़स जवाँ चिर किशोर अभिमन्यु के लिए इस्तेमाल हुआ है, चक्रव्यूह तोड़ने के सेन्स में.

Thursday, April 12, 2012

तवाजुन....

# # #
बांसुरी को रहो
चाहे जितना
फूंकते
हासिल नहीं होगी
तान,
सीखोगे नहीं
जब तक
तवाजुन
सुराखों और उँगलियों का...

Wednesday, April 11, 2012

इज़हार

# # #
मासूम एहसासात का
इज़हार ही तो है
सख्त संगमरमर
बन गया है जो
इलामत-ए- मोहब्बत
राधा और किशुन..

(इलामत=प्रतीक चिन्ह /symbol)

Monday, April 9, 2012

संवेदना की संजीवनी...

# # #
मंथन से
ह्रदय समुद्र के
निकला है
अमृत दर्द का,
भरा है जिसको
मैंने
कविता के घट में,
नहीं है रूचि
इस पियूष में
देवों और दानवों की,
केवल मानव ही तो
जानता है ना
स्वाद
संवेदना की
संजीवनी का...

संग अपने ही तंग मायनों के...

# # # #
तुम्हारे अपने
नतीजे हैं
तर्जुमानी
किसी ना किसी
तक्रीब के,
क्यों दिये जा रहे हो
नाम
सोच समझ और हल का
अपने ही थके थके
नज़रिए को,
कहे जा रहे हो
इल्म ओं इरफ़ान
अपनी ही कुंठाओं को,
सहला रहे हो
अपनी ही गलतियों से
हुई शिकस्त को
कभी किसी के फरेब
कभी वक़्त
कभी अल्लाह के
झूठे बहानों से,
रुको ना जरा
छोड़ों तुम फेंकना
संग
अपने ही
तंग मायनों के ...

(तर्जुमानी=अनुवाद, तक्रीब=घटना/हेतु, इल्म ओ इरफ़ान=महाज्ञान, संग=पत्थर, फरेब=धोखा, शिकस्त=हार, तंग= संकीर्ण, मायनों=परिभाषाओं)

Wednesday, April 4, 2012

महक जायका इस्तेमाल.......

# # # # #
बेनाम को नाम देने के
जरिये महज़ है
महक जायका
इस्तेमाल...

माटी क्यों माटी होती है,
क्यों सोना होता सोना ?
नहीं जवाब कोई मुकम्मल
नहीं पुख्ता कोई पैमाना,
खयालात-ए-ख्वाहिश से
माप तौल कर
कैसा किया बेहाल...

रूह की ठगी
मंज़ूरी पाकर
नाम चिपकाती
इल्म और इरफ़ान,
सहूलियतें
जुटा लेती मंतिक से
सुबूतों का इक जहान,
फरेफ्तगी
कर देती पैदा
दुकरी का जंजाल...

खुदगर्ज़ कोशिशें
थोपी जाती
'खुद ब खुद' के नाम,
मसावात-ए-कुदरत का
होता यूँ ही
काम तमाम,
सराब हिरन को
नहीं देती रोकने
उसकी सरपट चाल..

(इल्म/इरफ़ान=ज्ञान, मंतिक=तर्क, फरेफ्तगी=आसक्ति, दुकरी=द्वन्द, खुद-ब-खुद=सहज, मसावात=समता,सराब=मरीचिका)

Sunday, April 1, 2012

परवाना....

# # #
नहीं आते
रसिक भँवरे
मान कर
जलती लौ को
एक खिली कली
गुलाब की,
किन्तु
चढ़ जाता है
सूली सोने की
एक भावुक प्रेमी
परवाना,
है ना जो
प्यार उसको
झिलमिल झिलमिल
प्रकाश से...