Tuesday, December 20, 2011

छाया से तुम हो सुहाने....(आशु)

# # # # #
छाया से तुम हो सुहाने,
मगर चुभती धूप सी मैं...

खुशकिस्मत हो
मेरे सजन तुम
दोपहर
शजर के तले बिताते
मगर ये कैसे
ठोस पत्थर
हाय ! मेरे हिस्से में आते.
साँवरिये से
तुम सलोने,
मगर बदसूरत
सोने सी मैं...

वक़्त के तुम
चीर परदे
गूंजते हो
तान बन कर,
और मैं तो
फूल सी हूँ,
धूल होती
सांझ को झर.

तुम बेशक्ल शक्ल होते,
मगर शक्ल बेशक्ल सी मैं...

छाया से तुम हो सुहाने,
मगर चुभती धूप सी मैं...

No comments:

Post a Comment