Thursday, October 4, 2012

खुद-ब-खुद


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क्यों कर रहे हो
बेकार की 
जद्दोजेहद 
तोड़ कर 
बीज को
बूटा निकालने की, 
दिल में है
गर ख्वाहिश 
तरक्की की,
सौंप क्यों नहीं देते 
उसको 
बा भरोसा 
फ़राख़ दिल 
माटी को,
भीगेंगे
रूह ओ जिस्म 
उसके
और 
फूट जायेंगे 
खुद-ब-खुद 
जड़,
कोंपलें 
पते 
और
फूल...

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