Sunday, December 26, 2010

मान्यताएं और सत्य....

बिना सोचे समझे बरसों तक मानते रहे हम कि धरती चपटी है....सूरज धरती के चारों तरफ चक्कर लगाता है...सूरज आता है उगने के लिए और चाँद भी... इत्यादि. हमारे धर्म ग्रंथों में भी ऐसी ही बातें कही गयी है. कोई चार दशक पहले तो इन बातों पर गरमा गरम बहस होती थी. मज़े की बात यह है कि इन सब बातों के बेसिक्स पर लगभग सभी धर्मों की आम सहमति थी. उपग्रहों, राकेटों, अन्तरिक्ष यात्रियों ने आँखों देखा हाल बता दिया, तस्वीरों में कैद भी कर दिया, लगभग चुप्पी हो गयी, मगर आज भी गाहे बगाहे मिल ही जाते हैं लोग जो साबित करते हैं कि धरती चपटी है वगैरह, बड़े जिद्द के साथ. तरह तरह के प्रमाण भी देते हैं, कोई चुप रहे तो उसकी हार की मुनादी कर सुख़ भी पा लेते हैं ऐसे लोग. क्या किया जाय ?

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देखा गगन है निराकार
किन्तु
रोपे खूंटे मानव ने
करने दिशाओं की सृष्टि,
होता नहीं कभी भी
उदय या अस्त सूर्य,
परन्तु
नहीं स्वीकारती
सटीक सत्य को
जुडी प्रत्यक्ष से,
खंडित मानव दृष्टि..

होते नहीं कभी भी
समय के कालखंड :
भूत अथवा भविष्य,
होता है शास्वत
वर्तमान मात्र
है वस्तुतः
यही रहस्य..

आदी है मानव
समय को करने
परिभाषित
घटनाओं से,
करता है सञ्चालन
समूह का वह
असंगत
भ्रमपूर्ण
वर्जनाओं से..

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