Sunday, February 26, 2012

नदी तू है बरसाती....

# # # # #
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....

यदा कदा आ जाती है तू
बन मीत नयी मुस्काती,
लग कर गले ख़ुशी ख़ुशी तू
नगमे नये सुनाती,
मेरे बासी जल में मिल तू
लहरें नयी उठाती,
थकन भूला लौटा कर यौवन
जीवन गीत जगाती,
किन्तु मिलन के संग में तू
जाने को भी इतराती,
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....

कुछ दिन मेरे नादां दिल को
याद तेरी जकड़ेगी,
सोते जगते साँसे लेते
कमी तेरी अखरेगी,
भटक तड़फ कर मन की धारा
राह सच की पकड़ेगी,
मेह मेहमान सदा किस के घर
सोच सटीक धरेगी,
संग मिलन के जुडी जुदायी
यह जग की परिपाटी.
मैं तो हूँ ठहरा सा सागर
नदी तू है बरसाती....

(एक राजस्थानी कविता का भावानुवाद)

No comments:

Post a Comment