Wednesday, February 29, 2012

छलिया सपना....

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भटक रहा था
सपना यहाँ वहां,
मिल गयी थी
महक उसको
करते हुए
प्रवेश
बन्द कली में,
पूछ कर राह
उसी से तो
समा गया था
छलिया
मूंदे नयनों में...

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