Tuesday, August 3, 2010

ऐ ज़िन्दगी..


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निभाई है खूब यारी
तू ने ऐ ज़िन्दगी !
चोट दी है करारी
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

हंस के मनाया था
जब जब तू रूठी थी,
जी भर के रुलाया है
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

आगोश में थी जब तक
छुअन में था अपनापन,
सताया है वक़्त-ए-जुदाई
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

चाहत पे मेरी पर
होता था गुरूर तुझ को,
आज सब कुछ भुलाया है,
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

साथ जीए जाने के वो
अहद अनगिनत,
बेदर्दी से तोड़े हैं आज,
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

रूह की बातों को
तू जाने भी तो कैसे,
साथ जिस्म का ही दिया है
तू ने ऐ ज़िन्दगी !

मिलेगी 'महक' फिर से,
फैलेगी वो हर सू,
फूल बस एक ही तो मुरझाया है
तू ने ऐ ज़िन्दगी...

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