Tuesday, February 15, 2011

सरिता और सागर

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पूछने लगा था
सागर
सरिता से,
क्यों है तू
जनप्रिय इतनी
अपनाते हैं क्यों
सब कोई तुझ को
और
पाकर साथ तेरा
हो जाते हैं
प्रसन्न क्यों..

कहा था
सविनय
सरित ने,
मैं तो लेती हूँ
और दे देती हूँ
लगातार,
रखती नहीं
पास कुछ भी
लिए अपने,
और
तू है क़ि
रहता है डूबा
बस
खुद की ही
चिंता में,
किये जाता है
जमा
जो कुछ भी
होता है
हासिल
तुझ को...

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