Monday, February 21, 2011

टूट जाये न माला कहीं प्रेम की : नायेदा आपा

अंकित ने इस गीत/भजन को अपने बचपन में सुना था और उनके अधरों पर रहता है अकसर यह गीत.
इसका मुखड़ा और पहिले दो अंतरे वो ही हैं जो वे गया करते हैं, बाद के तीन अंतरों को जोड़ने की कोशिश मैंने की है. मिलावट लाख कोशिश कर के भी 'ओरिजनल' के मुआफिक नहीं हो पायी है, मगर कोशिश दिल से की गयी है. हलकी मस्ती में 'कवाल्ली स्टाईल' में गाया जाये तो बहुत अच्छा लगेगा यह सीधा-साधा सा नग्मा.


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टूट जाये न माला कहीं प्रेम की !
वरना अनमोल मोती बिखर जायेंगे !!

मानो ना मानो ख़ुशी आपकी.
दो दिन के मुसाफिर बिछड़ जायेंगे. !! टूट जाये.....!!

यह न पूछो के हम से किधर जाओगे.
वो जिधर भेज देगा उधर जायेंगे. !!टूट जाये...!!

मिल लो सभी को लगा के गले.
कुछ अभी.. तो..कुछ उस.. पहर जायेंगे !!टूट जाये...!!

आपस में है राजी... और खुश हम यहाँ.
मत ना सोचो...शेखो बरहमन किधर जायेंगे. !!टूट जाये...!!

जिंदगी जो मिली है तो जी लो सनम.
घुट घुट के रहेंगे तो म़र जायेंगे. !!टूट जाये...!!

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