Thursday, October 27, 2011

अनचखा विष

# # #
रहते हुए
खारे समंदर में,
सोचा था
कई बार
मैंने
विष को,
मेरे मंथन का
प्रतिफल
अमृत
जब
हुआ था
हासिल मुझ को,
पाया था
मैंने
वह कुछ और नहीं
मेरा अनचखा
विष ही तो था,
और
यही तो सच था
शायद
देवों दानवों की
कथा का...

No comments:

Post a Comment