Saturday, October 29, 2011

अब और नहीं...


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उसने
मीठा जहर
पिलाया
इसमें क्या
उसकी ख़ता,
खो गयी मैं
अपनी नींदों में
खोया था
मेरा पता.

औरों का
पाने अनुमोदन
मेरा
क्या क्या
खो गया,
'अपने से
मैं मिलूं ना मिलूं'
यह मसला
भारी हो गया.

रातों के
अंधियारे
बरबस
संगी मेरे हो गये,
कहते कहते
'और नहीं',
'अब और नहीं'
मेरे पल पल
माजी हो गये..


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