Sunday, November 27, 2011

निहाल..

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गिरी सागर में
गगन से,
भई सागर
तत्काल,
'मैं' जब छूटी
बूँद से,
हो गयी बूँद
निहाल...


खिंच आता है
कुछ ऐसा
जीवन में
जिससे
बढ़ जाती है
ऊर्जाएं
और
होता है घटित
सामर्थ्य
उस निराकार को
आकार देने का
स्व-हृदय में...

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