Friday, August 1, 2014

रिश्तों के रखाव में : राधा-कृष्ण( नायेदा आपा)

रिश्तों के रखाव में : राधा-कृष्ण( नायेदा आपा)


रिश्तों के
रखाव में
सहजता का
अभाव क्यों ?

राधा ने
किसुन से
नेह लगाया था,
कान्हा ने
उस पावन प्रेम को
हृदय से
निभाया था,
किसी ने दोनों को
मंडप तले
नहीं बिठाया था,
सप्तपदी के
सामाजिक
नियमों से
नहीं बंधाया था,
पूर्ण पुरुष ने
पूर्ण-नारी को
आत्मवत
अपनाया था,
कृष्ण में थी
विलीन राधा,
और
राधा में भी
किसना
समाया था,
भक्तियुग के
कवियों ने
इसी
प्रेम को
अपने
गीतों में
गुनगुनाया था...

नहीं थकते हम
जपते हुए नाम
राधेश्याम का,
क्या भूला जा
सकता है वह
मंज़र ब्रिजधाम का,
जहाँ रास हुआ था
ब्रिजकिशोरी-सुन्दरश्याम का,
हर मंदिर में
होता है दर्शन
प्रेमी-युगल
पूर्ण-वृतुल
राधेश्याम का,
वृन्दावन के संग
सुमरिन करते हैं
हम बरसना
नाम का.
चन्दन तिलक
श्री राधा है
विश्वपति
सालिग्राम का.

पाया था
समरूप
प्रभु के
राधिका
आराधिका ने,
गुंजायमान है
सर्वत्र
मधुर उच्चारण:
राधे राधे,
बिन राधे
कृष्ण है आधे...

फिर भी
सच्चे
प्रेमियों के
प्रगाढ़
पवित्र प्रेम से
समाज का
दुर्भाव क्यों...?
रिश्तों के
रखाव में
सहजता का अभाव क्यों...?

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