Thursday, October 14, 2010

अंतर और अंतर....

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ताम्बे के
कलश ने
कहा माटी के
घड़े से
यार ! मेरे में भरा
नीर
रहता है
इतना गरम
क्यूँ...
और
तुझ में रहा
पानी
हो जाता
इतना शीतल
क्यूँ...
बोला था घड़ा :
सुन सरदार !
मैं देता हूँ
जगह
जल को
अंतर
अपने में
और
रखता है तू
उसको
अपने से
अंतर में...

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