Tuesday, October 19, 2010

यादों के साये : नायेदा आपा की ग़ज़ल

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तनहा वो चमन में जब जाता होगा.
तस्सवुर में उसके कुछ तो आता होगा..

उसको निस्बत रहती है महज हक़ीक से,
खयालों में ख्वाबों को भी लाता होगा....

माना कि मसरुफ रहा करता है वहां,
निकह्तें फुर्सत की सीने से लगाता होगा...

हंस हंस के महफ़िल गुंजाता है तो क्या,
रात की तन्हाई में वो सिसकता होगा...

सपनों को अपने सजाता है मेरी सूरत से,
आँख खुलने से मेरा खयाल ही आता होगा...

दूर मुल्क और गैरों में थिरकना भी तो क्या,
उसका साज-ए-दिल तराने मेरे ही गाता होगा...

लिखते रहतें है नग्मात उसकी यादों में,
दिल पे वो साये यादों के बसाता होगा...

तस्सवुर=कल्पना, निस्बत=लगाव, हक़ीक=वास्तविकता,
मसरुफ=व्यस्त, निकह्तें=खुशबूएं।

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