Sunday, October 31, 2010

क्या कहिये : by नायेदा आपा

(आपा की अतिसाधारण रचनाओं में से यह एक है, जिसे वे कई दफा एक मामूली सी तुकबंदी कहा करती है)

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नासमझों की किसी महफ़िल में,
यूँ अपनी कहानी क्या कहिये.

आँखों से बरसते है आंसू
दरिया की रवानी क्या कहिये.

भूल गये सब कुछ है वोह,
फिर बात पुरानी क्या कहिये.

म़र म़र के जीये जाते है वोह,
दास्ताने जवानी क्या कहिये.

फितरत में बसी मायूसी जहाँ,
किस्से खुशियों के क्या कहिये.

रस्सी को समझतें नाग है वोह,
हिम्मत की कहानी क्या कहिये.

बहना सतहों पर मंज़ूर जिन्हें
उन्हें गहरा पानी, क्या कहिये.

प्यार की मंजिल नहीं बिस्तर
मीरा थी दीवानी क्या कहिये.

पहचाने नहीं जब मिलने पर,
रघुपति कि निशानी क्या कहिये.

सोये रहतें दिन में गाफिल,
उन्हें जागी जिन्दगानी क्या कहिये.

वोह दब जातें हैं कागज से,
फूलों की गिरानी क्या कहिये.

जो भटक रहें है जिस्मो में,
उन्हें बात रूहानी क्या कहिये.

आँखों पर ग़मों के परदे है,
उन्हें शाम सुहानी क्या कहिये.

जागीर लिखाये बैठें हैं वोह,
जिन्द आनी जानी क्या कहिये.

जेहन के दरीचों को बन्द रखे
उन्हें मासूम नादानी क्या कहिये.

बैठे घनघोर अंधेरों में,
सोचों की गुमानी क्या कहिये.

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