Wednesday, June 9, 2010

रिश्तों के रखाव में : विद्या की सार्थकता

(This poem was created in a series inspired by my sister Nayedaaji...The essence of this poem is difference between information, knowledge/skill and education...There were three candidates for the post of Acharya..first one changed the path, second one jumped over the thorns and the third one cleaned the thorns without worrying for the delay as he felt that others are also to use that path....and the third one was selected...now please enjoy the creation.)

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रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों ?

एक बौद्ध मठ हेतु
होनी थी
आचार्य की नियुक्ति,
प्रत्याशी योग्य त्रय की
हुई थी तदर्थ प्रस्तुति,
महाप्रज्ञ मोदगल्यायन द्वारा
विचारित थी सूक्ष्म चयन युक्ति,
कंटक तीक्ष्ण बिछाए थे पथ पर
एवम् की थी गोपन स्वयं उपस्थिति,
मार्ग परिवर्तन दृष्टव्य त्वरित
प्रत्याशी प्रथम की थी प्रयुक्ति,
शूलों का त्वरित लंघन
बनी द्वितीय की सफल अनुसुक्ति,
बुहारा तृतीय ने कंटकों को
कर अन्य-हित की सु-स्मृति,
कष्ट निवारण पथिकों का प्रमुख
तत्पश्चात प्राथमिक पदेन प्राप्ति,
विलम्ब फल से जनित भय की
घटित हो गयी पूर्ण विस्मृति,
गुप्त स्थान से थी अवलोकित
महाप्रज्ञ को समस्त स्थिति,
विद्या-सार्थकता आधारित
हुई मोदगल्यायन की संस्तुति,
धोषित पदारूढ़ होने को
हुई तृतीय भिख्खु की उपयुक्ति,
साधु ! साधु ! ध्वनि गुंजरित
करे संघम धम्मम बुद्धम स्तुति...

स्वहित में मार्ग परिवर्तन,
स्वार्थजन्य संकीर्ण आयोजन,
दर्शित प्रसन्न निरंतर जन जन....

किन्तु सह-जनों के हित से
मानव का दुराव क्यों,
रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों………..?


(नायेदा आपा की प्रेरणा से...)

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