Tuesday, June 15, 2010

अति : Excess

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फल
गिरता है
होकर
सरोबार
रस से...
फूल
झरतें है
होकर
विहीन
रस से...

पहला
अध गया है
सुख से
दूसरा
हो गया
क्षीण
दुःख से...

गिराती है
अति दोनों की
सुख की भी
दुःख की भी...

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