Sunday, April 1, 2012

परवाना....

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नहीं आते
रसिक भँवरे
मान कर
जलती लौ को
एक खिली कली
गुलाब की,
किन्तु
चढ़ जाता है
सूली सोने की
एक भावुक प्रेमी
परवाना,
है ना जो
प्यार उसको
झिलमिल झिलमिल
प्रकाश से...

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