Monday, April 9, 2012

संग अपने ही तंग मायनों के...

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तुम्हारे अपने
नतीजे हैं
तर्जुमानी
किसी ना किसी
तक्रीब के,
क्यों दिये जा रहे हो
नाम
सोच समझ और हल का
अपने ही थके थके
नज़रिए को,
कहे जा रहे हो
इल्म ओं इरफ़ान
अपनी ही कुंठाओं को,
सहला रहे हो
अपनी ही गलतियों से
हुई शिकस्त को
कभी किसी के फरेब
कभी वक़्त
कभी अल्लाह के
झूठे बहानों से,
रुको ना जरा
छोड़ों तुम फेंकना
संग
अपने ही
तंग मायनों के ...

(तर्जुमानी=अनुवाद, तक्रीब=घटना/हेतु, इल्म ओ इरफ़ान=महाज्ञान, संग=पत्थर, फरेब=धोखा, शिकस्त=हार, तंग= संकीर्ण, मायनों=परिभाषाओं)

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