Saturday, April 14, 2012

वक़्त का घेरा...

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नहीं होता है
हर मसले का
हमातन,
हमाउम्र ओ हमागीर
हल कोई,
निकल आता है
हर एक हल में
बीज एक नये मसले का,
जो फूट पड़ता है
तब्ददुल-ए-हालात पर,
हो जाता है
शुरू फिर से
दौर एक
किसी और ही
नये हल की
तलाश का,
तौड़ सकता है
इन्सां
वक़्त के इस घेरे को
हो कर
होशमंद ओ हरनफ़स जवाँ* !

(हमातन=पुर्णतः, हमाउम्र=आजीवन,,हमागीर =सार्वभौम, मसला=समस्या, हल=समाधान, तब्ददुल=परिवर्तन, हालात=परिस्थितियाँ, होशमंद=सचेत/aware, हरनफ़स=हर समय, जवाँ=young)
*हरनफ़स जवाँ चिर किशोर अभिमन्यु के लिए इस्तेमाल हुआ है, चक्रव्यूह तोड़ने के सेन्स में.

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