(यह महक की शुरूआती रचनाओं में से एक है, चूँकि यह उसने मुझे उस वक़्त भेजी थी किसी घटना विशेष के सन्दर्भ में,इसलिए मुझ जैसे भुल्लकड़ के जेहन में भी इसकी छाप ज़म से गयी...आज आप सब से शेयर करके खुश हो रहा हूँ.)
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इल्तिफात थी
गम-ए-पिन्हा की
के था जोम
लज्ज़त-ए-अलम का,
गुल्फिशानी उनकी
न रास आयी
मुशाहिदा-ए-हक के
सफ़र में.
(इल्तिफात = कृपा-मेहेरबानी, गम-ए-पिन्हा= छुपा हुआ दुःख-दर्द।
जोम=घमंड/धारणा, लज्ज़त-ए-अलम= दुःख का आनन्द,
रास=पसंदगी/पसंद होना, गुल्फिशानी=फूलों की बारिश)
मुशाहिदा=निरीक्षण/अनुभव/अवलोकन, हक=सत्य )
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इल्तिफात थी
गम-ए-पिन्हा की
के था जोम
लज्ज़त-ए-अलम का,
गुल्फिशानी उनकी
न रास आयी
मुशाहिदा-ए-हक के
सफ़र में.
(इल्तिफात = कृपा-मेहेरबानी, गम-ए-पिन्हा= छुपा हुआ दुःख-दर्द।
जोम=घमंड/धारणा, लज्ज़त-ए-अलम= दुःख का आनन्द,
रास=पसंदगी/पसंद होना, गुल्फिशानी=फूलों की बारिश)
मुशाहिदा=निरीक्षण/अनुभव/अवलोकन, हक=सत्य )
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