Tuesday, July 12, 2011

लाश..


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देखो ना
तैरे जा रही है
लाश
सतह पर,
प्राण
चाहिए ना
डूब
जाने के लिए...

Saturday, July 2, 2011

हांड़ी काठ की चढ़ाएगा कब तक ! (तरही मुशायरा जुलाई, ११)


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धोया निचौड़ा सुखाया के पहना,
तू मुझे आज़मायेगा कब तक !

जोगी भगाया भरमाया अन्ना
पब्लिक को बहकायेगा कब तक !

नाम ले ले कर जम्हूरियत का,
चेहरा तू ये छुपायेगा कब तक !

ख़त्म हुए दिन इजारेदारी के
खैर तू अपनी मनायेगा कब तक !

खुल चुकें है राज सारे के सारे,
हांड़ी काठ की चढ़ाएगा कब तक !