Thursday, December 31, 2009

यहाँ और अभी / Here and Now......

***
हर पल में
जीने वालों को
नूतन क्या
पुरातन क्या...
'यहाँ' और
'अभी' का
सोच है
सामयिक क्या
सनातन क्या ?

Har pal men
Jeene walon ko
Nutan kya,
Puratan kya ?
'Yahan' aur
'Abhi' ka soch hai
Samyik kya,
Sanatan kya ?

Wednesday, December 30, 2009

सुख-दुःख / Sukh-dukh.....

###
रस से
भर कर
फल झरे
फूल झरे
रसहीन
पहला
सुख से
अधा गया
दूजा
दुःख से
क्षीण...

Ras se
Bhar kar
Phal jhare
phool jhare
Rasheen,
Pahila
Sukh se
Adha gaya
Dooja
Dukh se
Ksheen.......

Tuesday, December 29, 2009

वीतराग / Veetraag...

###
हो चाहे
किनारा
मोह से,
निर्मम
ना होते
संत,
वीतराग का
अर्थ है,
करुणा-सिन्धु
अनन्त....

ho chaahe
kinaara
moh se
nirmam
na hote
sant,
veetrag ka
arth hai
karuna-sindhu
anant........

वृध्दावस्था : पैगाम ३५ से ५० की उम्र वालों को

( बुढापे के लिए अग्रिम योजना बनायें....यह तो ऐसा बिंदु है जहाँ बांटने का मौका मिलता है कोसने का नहीं.)

$$$
ज़ज्बात और
रिश्ते
अक्ल-ओ-फ़ित्रत की
बातें हैं
लेने देने के
सौदे नहीं.....

ख़ुशी-ओ-सुकून
जो हो निर्भर
औरों पर
जंजाल है जी के
दिल की बातें नहीं......

जीना है गर
सिर उठा के
तन-मन-धन को
होगा संभालना
माकूल
वक़्त पर,
बुढ़ापा एक
हकीकत है
हादसा नहीं.....

हर
वृद्ध आश्रम हो
मंदिर
इंसानियत का
मस्जिद
तुज़ुर्बों की
गिरजा
मोहब्बत का,
मजबूरी की
दास्तानें नहीं,
बातें हो
दूरंदेशी की
अश्कों के
फ़साने नहीं.....

Monday, December 28, 2009

उजियारा / Ujiyaara.....

$$$
फ़ैल
जाता है
अँधियारा
चीर कर
उसको
चला
आता है
उजियारा......

phail
jata hai
andhiyaara
cheer kar
usko
chala
aata hai
ujiyaara.....

Sunday, December 27, 2009

खुला झरोखा / Khula Jharokha....

$$$
नहीं
घुटेगा
बंद कोठरी में
घोर अँधेरा,
रखने
जिन्दा
उजियारे को
चाहिए होगा
खुला
झरोखा....

Nahin
Ghutega
Band kothri men
Ghor anhdera
Rakhne ko
Jjinda
Ujiyare ko
Chahiye hoga
Khula
Jharokhaa......

तुम हो ( बात विरही की)........

$$$
शीतल
शीतल
चांदनी
मयंक की
तुम हो...
विरह में
सूरज की
तपती सी
अगन
तुम हो....
ना पूछो
मुझ से कि
मेरी क्या
तुम हो....
जानम !
मेरे हर
सांस
और
लम्हे की
लगन
तुम हो....

विरहन


$$$
रवि सम
मेरे तुम हो
उजियारे
सुखद मोहे
तोहरे
आलिंगन के
अंधियारे,
सूने सूने
लागे मोहे
जग के नज़ारे
जीती हूँ
मैं पी
तोहरी
यादन के
सहारे........

Thursday, December 24, 2009

विरहन वृतांत/Virhan Vritaant

$$$
पी की
बतियाँ
सोचि सोचि
भई मुदित
तन
हांसी रे....
ना पाऊं
जब
परस पी का
डसी लए
मोहे
उदासी रे...

Pee ki
Batiyaan
Sochi sochi
Bhayi mudit
Tan haansi re
Naa paun jab
Paras pee ka
Dasi jaye
Mohe
Udaasi re.....

अर्थ / Arth......

$$$
शब्द
अल्प
समाहित
महान
अर्थ
ज्यूँ
वामन
मध्य
विराट,
बहुल
शब्द हैं
अर्थहीन
बंजर भू
तुल्य
सपाट....

shabd alp
samahit
mahan arth
vaman
madhy
viraat,
bahul
shabd
arthheen
banjar bhoo
tulya
sapaat........

Tuesday, December 22, 2009

चाहिए / Chahiye

$$$
प्यास
बुझाने
चाहिए
घृत नहीं
पर नीर,
स्वर्ण-रत्नों से
नहीं,
अन्न से
चले
शरीर .

Pyaas
Bujhane
Chahiye
Ghrit nahin
Par neer,
Swarn-ratnon se
Nanhin
Ann se chale
Shareer.......

Sunday, December 20, 2009

ठूंठ / Thoonth

$$$
ठूंठ हुआ
सूखा
तरु,
झरे
मुरझाये
पान ;
बरसे
सावन
क्या
भादो,
उसके
लिए
सामान.....
Thoonth hua
Sookha
Taru,
Jhare
Murjhaye
Paan ;
Barse
Saawan
Kya
Bhaado
Uske
Liye
Samaan.......

Saturday, December 19, 2009

मूठ और तलवार / Mooth aur Talwaar


$$$
बिना मूठ
कुछ काम की
होती नहीं
तलवार
इसलिए
बढई के
यहाँ
लाये उसे
लोहार.......

bina mooth
kuchh kaam ki
hoti nahin
talwar
ishiliye
badhayi ke
yahan
laye use
lohaar..........

Friday, December 18, 2009

सीख / Seekh.....

$$$
होना सीधा
तेरा
गवारा नहीं
दुनियां को
जान ले
ऐ बन्दे !
देख तो ले
मिसाल
जंगल की,
काटे जाते हैं
जहाँ
पेड़ सीधे
और
बच जाते हैं
शज़र
टेढ़े मेढे.........

Hona seedha tera
Nahin gawara
Duniyan ko
Jaan le
Aey Bande !
Dekh to le
Misaal jungle ki
Kaate jate hain
Jahan
Ped seedhe
Aur
Bach jate hain
Shazar
Tedhe-medhe......

Thursday, December 17, 2009

तालाब और समंदर / Talaab Aur Samandar....

$$$
किया है
अनुभव
किसने,
बन सकते हैं
स्वयं
हम भी
परमेश्वर ?
ये जवाबनुमा
सवाल है
तालाब के
जिसने
देखा नहीं
समंदर........

kiya hai
anubhav
kisne
ban sakte hain
swayam
hum bhi
parmeshawar ?
ye jawabnuma
sawal hai
talaab ke
jisne
dekha nahin
samandar........

Wednesday, December 16, 2009

कसौटी / Kasauti....


$$$
बदले बिना
स्वयं को
चाहते हैं
हम बदलना
विश्व को
समाज को
राज को......

कसलें
कसौटी पर
सर्वप्रथम
खुद को
"मैं" को.......

उतर जाये
यदि वह
सौ टंच
खरा
समझ लेना
हो गयी है
आरम्भ
शोधन की
प्रक्रिया....

Badle bina
Swayam ko
Chahte hain
Hum badlana
Vishv ko
Samaaj ko
Raaj ko....

Kas len
Kasuati par
Sarvpratham
Khud ko
"Main" ko.....

Utar jaye
Yadi wah
Sou tanch
Khara
Samajh lena
Ho gayi hai
Aarambh
Shodhan ki
Prakriya....

Tuesday, December 15, 2009

बोध/Bodh........


$$$
नवजात
शिशु
नहीं
सीखता
स्तन-दुग्ध
अनुपान,
बोध हो
यदि
ईश का
स्वतः
पूजन
सन्मान.....

Navjaat
Shishu
Nahin
Seekhta
Stan-dugdh
Anupaan,
Bodh ho
yadi
Ish ka
Swatah
Pujan
Sanmaan.......

Monday, December 14, 2009

भ्रम कथा/Bhram Kathaa


$$$
शस्त्र
बन गये
शास्त्र
शब्द भये
द्वन्द बीज
जड़ से
बंध गयी
चेतना
गया
भ्रम में
सब
छीज.....

Shastra
Ban gaye
Shaastra
Shabd bhaye
Dvand beej
Jad se
Bandh gayi
Chetna
Gaya
Bhram men
Sab
Chheej......

Sunday, December 13, 2009

क्रिया और कारण/Kriya Aur Karan

$$$
क्रिया से
होता है
भिन्न
कारण का
स्वभाव,
सत्व
यही
जाने बिना
दुरूह
आत्मा का
न्याय..........

Kriya se
Hota hai
Bhinn
Karan ka
Swabhaav,
Satva yahi
Jane bina
Duruh
Atma ka
Nyaay...........

द्वैत-अद्वैत/Dvait-advait....


###
बूंद समंद में
जा मिली
निज का
आपा खोय,
बन गया
द्वैत
अद्वैत तब
रहा ना
कोई दोय......

boond
amand men
jaa mili
nij ka
aapa khoy,
ban gaya
dvait
advait tab
rahaa na
koyi doy........

Friday, December 11, 2009

ध्यान सूत्र/ Dhyaan Sutra

###
साक्षी भाव से
देखा कर
बुरे भले
विचार,
तू यदि
खुद के
साथ है
तेरा बेडा
पार.....

saakshi bhav
se dekhaa kar
bure-bhale
vichaar
tu yadi
khud ke
saath hai
tera beda
paar........

(Written 0n 11.12.2009 : On Osho's birthday)

Thursday, December 10, 2009

अचरज की बात/Acharaj ki Baat

###
जग तेरा
तू जगत का
चेहरा एक
साक्षात,
किस में
किस का
बिम्ब है
बस
अचरज की
बात. .....

Jag tera
Tu jagat ka
Chehra aek
Sakshaat
Kis men
Kis ka
Bimb hai
Bas
Acharaj kee
Baat......

Wednesday, December 9, 2009

दोनों को /Donon ko

###
नयन मूंदे हो
या
खुले
स्वप्न
दोनों को ही
सुहाते
शूल हो
या
फूल
झोंके
शीतल
पवन के
दोनों को है
भाते........

nayan munde hon
ya
khule
swapan
donon ko hi
suhaate
shool ho
ya
phool
jhonke
sheetal
pavan ke
donon ko hai
bhaate........

Tuesday, December 8, 2009

महक/Mehaq........

$$$$
मीठी मीठी सी
महक
साँसों को नहीं
भार
कंटक
फूल गुलाब का
चुभे तो
पीड़ अपार.....

meethi meethi si
mehaq
saanson ko nahin
bhaar
kantak
phool gulaab ka
chubhe to
peed apaar......

Monday, December 7, 2009

दम्भ का प्रेत/Dambh ka Pret

$$$
मिथ्या
फूली सी
दिखे
उजरी
रुई
श्वेत,
हुवे धुनाई
जोर से
मिटे
दम्भ का
प्रेत.........

mithya
phooli si
dikhe
ujri
rui
shwet,
huve
dhunayi
jor se
mite
dambh ka
pret.

Sunday, December 6, 2009

देखादेखी/Dekhadekhi...

$$$
भूल कर
स्वभाव अपना ;
शूलों की
देखादेखी
नहीं छोड़ते
डाल को
मुरझाये से
चन्द मासूम
फूल,
नहीं समझ पाते
भोले-भाले
रूठ चुकी है
उनसे भी
मूल.
केवल मात्र
समझ की
भूल.........

(डाल से अर्थ अंध मान्यताओं से है, रुढियों से है, जिनकी व्यावहारिक जीवन में कोई प्रासंगिकता नहीं रही है.)

bhool kar
swabhav apna
shoolon ki
dekhadekhi
nahin chhodte
daal ko
murjhaye se
chand masoom
phool,
nahin samajh pate
bhole-bhale
rooth gayi hai
unse
mool,
keval matra
samajh ki
bhool..........

(Daal se arth andh manytaon aevam roodhiyon se hai jinki vyavharik jeevan men koyi prasaangikta nahin rahi hai.)

Saturday, December 5, 2009

समान व्यवहार/Samaan Vyavhaar

$$$
फूल को
दुलारता है
पानी को
सखा बन
बहलाता है
हवा का
वही झोंका
केक्टस को
सहलाता है.....

Phool ko
Dularta hai
Paani ko
Sakha ban
Bahlata hai
Hava ka
Wahi jhonka
Cactus ko
Sahlaata hai........

Friday, December 4, 2009

अनेक अर्थ/Anek Arth

$$$
शब्द एक
अनेक अर्थ
अपनी अपनी
ठौर
सर्व समर्थ
श्री कृष्ण को
भक्त कहे
रणछोड़........

shabd aek
anek arth
apni apni
thaur
sarv samarth
shri krishan ko
bhakt kahe
ranchhod.......

Thursday, December 3, 2009

मैला अंगना/Maila Angna.....

$$$

तेरे अंगना में
जड़े
माणक रतन
हज़ार
किन्तु
दिखेंगे तुझे
यदि देगा
धूल
बुहार.......

Tere angna men
Jade
Manak ratan
Hazaar
Kintu
Dikhenge tujhe
Yadi dega
Dhool
Buhaar........

Wednesday, December 2, 2009

एक मोल/ Aek Mol

$$$
ऐसा है
बहुरूपियों के
सामां की
दुकां का
अज़ब
माप-तोल,
बिकते हैं
यहाँ
पशु
मानव
देव
दानव के
मुखौटे
एक मोल.......

Aisa hai
Bahurupuyon ke
Saamaan ki
Dukaan ka
Azab
Map-tol,
Bikten hain
Yahan
Pashu
Manav
Dev
Danav ke
Mukhaute
Aek mol......

Tuesday, December 1, 2009

मूर्छा/ Murchha......

$$$$$
सपूर्ण सत्य
नहीं
तरु का
'विकसित फूल'
साक्षी है
इनके
सहोदर शूल
मूर्छा जिनकी
ना तोड़ पाए
अंधड़ और
पतझड.......

Sampurn
Satya nahin
Taru ka
'Vikasit Phool'
Sakshi hai
Inke
Sahodar shool
Murchha jinki
Na tod paaye
Andhad aur
Pathjhad.....

Monday, November 30, 2009

मंजिल और मार्ग/Manzil aur Maarg....

$$$$$
फूल में है
कई
पंखुडियां,
फल है
एकम-एक,
मंजिल
पाने को
हुए
मानो
मार्ग
अनेक......

Phool men hai
Kayi
Pankhudiyan,
Phal hai
Aekam-aek,
Manzil
Pane ko
Hue
Mano
Maarg
Anek ...

Sunday, November 29, 2009

चन्दन/ Chandan

$$$
चन्दन की
बलिहारी,
काटती है
आरी,
पर
पाती
महक
प्यारी.......

Chandan ki
Balihaari,
Kaat-ti hai
अआरी,
Par
Paati
Mehaq
Pyaari.........

Saturday, November 28, 2009

आईना क्या ? /aaina kya ?

$$$
खुल
सकती है
बंद आँखें
(मगर)
फोड़ें हैं
चश्म
जिसने
लिल्लाह !
उसे
आईना क्या ?

khul
sakti hai
band aankhen
magar
phoden hain
chasam jisne
lillah !
use
aaina kya ?

Friday, November 27, 2009

कथनी करनी/Kathani-karani

$$$
देता रहता
प्रवचन
किये बंद
निज कान,
कथनी
करनी एक सी
उसके वचन
प्रमाण..........

deta rahta
pravachan
kiye band
nij kaan
kathani
karani
aek si
uske vachan
pramaan.......

Thursday, November 26, 2009

मुस्कान और उदासी /Muskaan Aur Udaasi

$$$
मुस्काता
क्षणजीवी
पुष्प
बांटे
महक
सुवास,
कांटे की
लम्बी उमर
किन्तु रहे
उदास..........

Muskaata
Kshanjeevi
Pushp
Baante
Mehaq suvaas,
Kaante ki
Lambi umar
Kintu Rahe
Udaas.........

Wednesday, November 25, 2009

परिपक्वता रस की / Paripakvta Ras Ki

$$$
कहा झरते पते ने
अरे पतों !
होनी यही है
गत तुम्हारी
देखलो !
कर दिया
पतझड ने
नग्न सर्वथा
वृक्ष को
रह गएँ
शेष कांटे
जगह अपनी अपनी......

हुआ था
एक सत्य
प्रत्यक्ष
झरते हैं वे
होती है जिनमें
परिपक्वता
रस की........

jharte pate ne
kaha tha
are paton !
gat honi hai
yahi tumhari
dekhlo
patjhad ne
kar diya
nagn sarvtha
vriksh ko
rah gaye
shesh kante
jagah apni apni........

hua tha
aek saty
pratyaksh
jharte hain weh
hoti hai jinmen
paripakvta
ras ki..........

Tuesday, November 24, 2009

महकार-ए-इत्र /Mehaqar-e-Itr

$$$

महकार-ए-इत्र का
गज़ब है
फ़साना,
होता है
नाक आशिक,
कानों पे
मगर फव्वा,
लगाता है
जमाना......

Mahaqar-e-itr ka
Gazab hai
Fasaana,
Hota hai naak
Aashiq,
kaanon pe
Magar favva
Lagaata hai
Jamaana......

Monday, November 23, 2009

महकार-ए-इत्र /Mehaqar-e-Itr

$$$
महकार-ए-इत्र का
गज़ब है
फ़साना,
होता है
नाक आशिक,
कानों पे
मगर फव्वा,
लगाता है
जमाना......

Mahaqar-e-itr ka
Gazab hai
Fasaana,
Hota hai naak
Aashiq,
kaanon pe
Magar favva
Lagata hai
Jamaana......

लोबान/Lobaan....

$$$

मौजूदगी में
उसको
सताया
करते थे
लोग....
चला गया तो
बना के
बुत उसका,
लोबान
सुबहोशाम
जलाया
करते हैं
लोग.....

(लोबान=पूजा में जलाया जाने वाला धूप--एक तरहा से अगरबती)

Mouzudagi men
Usko
Sataaya
Karte the
Log,
Chala gaya to
Banaake
But uska,
Loban
Subahosham
Jalaaya
Karten hain
Log.....

(Lobaan=puja men jalaya jane wala agar/dhoop-aek tarha se agarbati)

Sunday, November 22, 2009

खेत और रेत /Khet Aur Ret......

$$$
चलते हैं
जहाँ
हल
बोते हैं
बीज
लहलहाते हैं
बूटे
कहलाते हैं
खेत,
समझ लो
नहीं तो
हैं बस
मिटटी
धूल
या के
रेत..........

chalte hain
jahan
hal
bote hain
beej
lahlahate hain
boote
kahlate hain
khet
samajhlo
nahin to
hain
bas
mitti
dhool
ya ki
ret.

Saturday, November 21, 2009

धुवाँ/Dhuvan

$$$
करता है
उपक्रम
जाने का ऊपर
ज्योति से
कृतघ्न धुंवा
किन्तु नहीं
देता शरण
विशाल
नील-नीरभ्र गगन
इस कुलकलंकी को.....

औदार्य है
यह तो
समदर्शी लौ का
बना देती है जो
इस आँख फोड़े को
रूपसी के
नयनों का
काजल.....

(औदार्य=उदारता, रूपसी=सुंदरी, कृतघ्न=नाशुक्रा, उपक्रम=प्रयास)

karta hai
upkram
jane ka upar
jyoti se
kritghan dhuan
kintu nahin deta
sharan
vishal
neel-nirabhr gagan
is kulkalanki ko......

Aaudarya hai
yah to
samdarshi lau ka
bana deti hai jo
is aankh-fode ko
rupasi ke
nayanon ka
kajal.

(aaudarya=udarta, rupasi=sundari, kritghan=nashukra upkram=prayas)

Friday, November 20, 2009

अक्स /Aks

***
आईने में
देखता
ज्यों अपना वो
अक्स
निज राग द्वेष को
दूजों में
दरसे
जड़मति
शख्स.

aaine men
dekhta
jyon apna wo
aks,
nij rag-dvesh ko
doojon men
darse
jadmati
shakhs.

Thursday, November 19, 2009

प्रकाश और तम/Prakash Aur Tam

$$$
आलोक प्रिय
प्राणी सजग
कार पायें सहन
प्रकाश
चमगादड़
उल्टा लटक
तम में करे
प्रवास.

aalok priy
praani sajag
kar payen sahan
prakash
chamgadad
ulta latak
tam men kare
pravas.

Wednesday, November 18, 2009

बांस और तुलसी /Baans Aur Tulsi

$$$
बांस लम्बे
किन्तु थोथे
जैसे पंडित
पढ़ पढ़ पोथे
होते है
निस्सार....
तुलसी नन्ही
एक बालिश्त की...
अति गुणकारी
हरती व्याधि
करती है
उपचार.......

baans lambe
kintu thothe
jaise pandit
padh padh
pouthe
hote hain
nissar......

tulsi nanhi
aek balisht ki
ati gunkaari
harti vyaadhi
karti hai
upchaar.......

Tuesday, November 17, 2009

भूल /Bhool

$$$
'भूल हुई'
पर भूल को
मत जाना तुम
भूल
याद रखें यदि
भूल को
(बने)
जीवन सहज
समूल.

Bhool hui'
Par bhool ko
Mat jana tum
Bhool
Yad rakhen yadi
Bhool ko
(Bane)
Jeevan sahaz
Samool.

Monday, November 16, 2009

वाचाल /Vachal..........

$$$
बोली बोले
सर्व की
पाखी वाचाल
चंडूल
औरों की
रहा बोलता
गया निज की
वह भूल.

(चंडूल एक पक्षी होता है जो प्रत्येक चिड़ियाँ की बोली बोलता है)
Boli bole
Sarv ki
Pakhi vachal
Chandool
Auron kee
Raha bolta
Gaya nij kee
Wah bhool.

(Chandool aek pakshi hota hai jo pratyek chidiyan ki boli bolta hai.)

Sunday, November 15, 2009

भला ? /Bhala ?

$$$
शहर कहे
अच्छा तुझे
बात नहीं
कुछ खास
यदि पड़ोसी
भला कहे
तब करना
विश्वास
हर पल जो
बरते तुझे
बात वही
प्रकाश........

shahar kahe
achha tujhe
baat nahin
kuchh khaas
yadi padosi
bhala kahe
tab karna
vishwas
har pal jo
barte tujhe
baat wahi
prakash.......

गुलिस्तां (आशु रचना)

$$$

बर्बादी का
बना हुआ है
सबब
बागबाँ,
जड़ों में
या मौला
पानी नहीं
तेजाब दे रहा है
गुलिस्तां के
मासूम
बूटो को
अंदाज़-ए-इताब
उसका
इस तरहा
इज्तिनाब-ओ- अजाब
दे रहा है...

बज रहा है
दूर कहीं यह नगमा
बदल जाये
अगर माली
चमन होता नहीं खाली
बहारें फिर भी
आती है
बहारें फिर भी
आएगी...........

खुशबू नहीं है
अमानत
किसी की
खिलतें हैं फूल गर
गुलिस्तां में
महक
खुद-ब-खुद भी चली आती है
महक
खुद-ब-खुद भी चली
आएगी.........


(सबब=कारण,इताब=क्रोध, इज्तिनाब=नफरत/ उपेक्षा, अजाब=यातना)

Saturday, November 14, 2009

अक्स और हकीक़त/Aks Aur Haqiqat

$$$

निरखना
तस्वीर-ए-यार को
दर्द-ए-दिल
मिटा सकता नहीं
यह आईना
ऐ दोस्त
पानी तो रखता है
मगर
पानी
पिला सकता नहीं.

Nirakhna
Tasveer-e-yaar ko
Dard-e-dil
Mita sakta nahin
Yah aaina
Ae dost !
Paani to rakhta hai
Magar
Paani
Pila sakta nahin.

Friday, November 13, 2009

फैसला/faisla

$$$
देती है मौके
जिंदगी
करने को
भला या बुरा
लेना होता है
फैसला
होश में
ना कि
नज़रें चुरा....

deti hai mouke
zindagi
karne ko
bhala ya bura
lena hota hai
faisla
hosh men
na ki
nazren chura.........

Thursday, November 12, 2009

रंग बदरंग/ Rang-badrang

$$$
स्वर्ण रहेगा
स्वर्ण रंग
चाहे काटो
अंग
खोट होवे
जिस धातु में
वो होती
बदरंग.....

Swarn Rahega
Swaran rang
Chahe kaato
Ang
Khot hove
Jis dhaatu men
Wo hoti
Badrang......

कण/Kan

$$$$

गिर पड़ा
एक कण
गज के मुख से
नहीं घटा
उसका आहार....
चींटी
उसको
ले चली
पालन को
अपना परिवार.

Gir pada
Aek kan
Gaj ke mukh se
Nahin ghata
Uska aahar,
Chinti
Usko
Le chali
Palan ko
Apna Parivaar...

Monday, November 9, 2009

शब्द बने उजला सा दर्पण -----

*
आते हैं
कभी कभी
वे क्षण
जब चलती है
कलम
होता है सृजन....
शब्द
बन जाते हैं
उजला सा दर्पण
जब चाहो
कर लो
चैतन्यता के
दर्शन...........

___________________________________________

SHABD BANE UJLA DARPAN----
aaten hain
kabhi kabhi
weh kshan
jab chalati hai
kalam
hota hai
srijan.......
sabd ban jate hain
ujla sa darpan
jab chaho kar lo
chetna ke
darshan.

Sunday, November 8, 2009

तिमिर तैय्यार.........

$$$

भ्रम है
उदित सूर्य ने
दिया
अँधेरा मार,
बंद कर द्वार
क्षण के लिए
पुनः
तिमिर तैय्यार.....

Saturday, November 7, 2009

गौर (जागरूकता)/Gaur (awareness)

मौला तो
सब ठौर
मंदिर मस्जिद
क्या रखा
करता तू
जहाँ गौर
रमता वहीँ
परमात्मा.....
_______________________________

Moula to
Sab thaur
Mandir maszid
Kya rakha
Karta tu
Jahan gaur
Ramta wahin
Paramatma.......

पीड़ा.....

.......
कला
चुभे
शूल को
निकालने की
हुआ करती है
इन्सां के
पास..........
पीड़ा
चुभन की
जाती है
मगर
वक़्त के
गुजर जाने के
साथ.....

Tuesday, November 3, 2009

शेष कविता......

$$$

दृष्टि ने
फेर ली है
पीठ
खो गयी है
कुव्वत
पहचान पाने की.......

लगने लगे है
एकसे
सब चेहरे
परिचित हों
या
अपरिचित.........

अब तो
कर रहे हैं
सब काम
पड़ोसी कान,
बंध गयी है
सिर्फ शब्दों से
पहचान........

हो गये हैं
व्यर्थ
कागज़ और कलम
किये जा रहे हैं
हम
निरर्थक
'लीकलकोलिये'.........

छूटती है
मुश्किल से
पड़ी हुई लतें
इसीलिए तो
ज़िन्दगी
बन जाती है
आदतें......


लीकलकोलिये=यह एक राजस्थानी शब्द है जो आड़ी तिरछी गोल मोल कई आकर की लिखावट जैसी कि बच्चे करते हैं अथवा पेन को चला कर देखने के लिए हम कागज़ पर करते हैं इत्यादि के लिए प्रयुक्त होता है, जो कोई भी अर्थ नहीं देते. मैंने हिंदी/उर्दू में इस का समानार्थक शब्द खोजने का प्रयास किया मुझे शब्द मिले :धुनकनी, कलमघिसाई, बदखत,घसीटे इत्यादि. मैंने इस शब्द को बेहतर पाया इसलिए इसका इस्तेमाल किया है.

Monday, November 2, 2009

समरंग/Samrang.....

$$$

पिक-वायस
समरंग
दोनों में है
फर्क क्या,
बोली से पहचान
क्या लेखा
रंग-रूप का..........

Pik-vayas
Samrang
Donon men hai
Farq Kya,
Boli se pahchan
Kya lekha
Rang-roop ka.....

Sunday, November 1, 2009

नश्वर........(आशु प्रस्तुति)

$$$

नश्वरता
दिखती है.......

होता है रूप
परिवर्तन
अथवा
विलय
धरा का धरा से
वायु का वायु से
जल का जल से
अगन का अगन से
गगन का गगन से......

पञ्च भौतिक तत्वों ने
बताया हमें
अभ्यास
नश्वर का
भूल कर इनको
कहूँ
या
भोगकर इनको
मनुज हो जाये
इश्वर का...........

मकसद.......

**
मधुर फलों के
तरु
दे देते
सब को,
क्षणिक
याद
आह्लाद,
नीम-वृक्ष का
होता मकसद
स्वांतसुखाय
उपकार,
चितन में
नहीं होता
उसके
स्वाद
विषाद
प्रमाद
वृथा का
अंतहीन
विवाद.

आत्मा के सम्बन्ध......

**

दिव्य पुष्प को
अबोला पा
बोले मधुर
सुगंध,
सुने नासिका
कर्ण बन
होते ऐसे
आत्मा के
सम्बन्ध....

Atma ke sambandh....

divya pushp ko
abola pa
bole madhur
sugandh,
sune nasika
karn ban
hote aise
atma ke
sambandh....

आदत से मजबूर......

$$$

लबालब भरे
तालाब को
दूब ने जबरन
ले लिया था
आलिंगन में.........

लहरों ने
चिढ कर कहा था
"किसने दिया था
तुम्हे निमंत्रण ?"

आदत से मजबूर
टर्रटर्रायी थी मेंढकी:
"पगली, जहाँ अपनत्व हो
वहां निमंत्रण की
प्रतीक्षा नहीं होती."

Thursday, October 29, 2009

प्रीत के रंग अनोखे : Extempore Creation

प्रीत के रंग अनोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे
बैठ झरोखे मौला निरखे
प्रीत के रंग अनोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे……...

बिरहन राधा पीत भई है
कान्हा के रंग नीले
भर आलिंगन दुई मिले जब
हरित ज़र्दी कूं पोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे………

हरदी तजी है निज ज़र्दी कूं
चुन तज्यो रंग सादो
दुई मिल हुयो रंग गाढो रे
कौन किसी कूं सोखे
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे………

कुमुदनी जल हरी बसे रे
चंदवा रंग ज़र्द अकासां
खिल खिल हुई हरी कुमुद रे
चलत हवा के झोंके
रे साधो !
प्रीत के रंग अनोखे……….

Wednesday, October 28, 2009

बिसात (Extempore Creation)

बिछायी है
उसने
बाजी
शतरंज की
बनाये हैं
मोहरे
हम सब को,
खेलता है वो
इन से
बता के चालें
तरहा तरहा की.......

प्यादे को बना कर
वजीर
दिखा देता है वह
उसकी
टेढी चाल को
बादशाह को भी
चलाता है
चाल अढाई
घोड़े सा करने
कमाल को.........

शह और मात
बन जाते हैं
जुनूँ ज़िन्दगी के
नहीं समझ पाता है
इन्सां
अपनी जात और
बिसात को.....

अमृत और ज़हर

किसने
चखा है
अमृत को,
वो एक
कल्पित नाम.....
किम्वदंतियों ने
किया
वृथा
ज़हर
बदनाम......

सच्ची झूठ ?

...

झूठा सच्चा
क्या हुआ
धर्म धर्म है
मूढ़
सुनने में
आया नहीं
विशेषण
'सच्ची' झूठ........

Tuesday, October 13, 2009

गेह................

चले आयेंगे
जब तब भी
सौत
मौत और
मेह,
जागृत रहो
निमिष हर
रखो संभारे
गेह................

chale aayenge
jab tab bhi
saut
maut aur
meh,
jagrit raho
nimish har
rakho sambhaare
geh.......

Sunday, October 11, 2009

अस्तित्व (एक आशु सृजन)

...
'होने' को साबित करने में
हो जाता है घटित
'कुछ और हो जाना'
भ्रम जनित गंतव्य कि यात्रा में
संभव नहीं कुछ भी पाना,
किसी ने मूँद ली जो आँख
सूर्यास्त ना हुआ
मिथ्या दुन्दुभी विजय की
बजायी किसी ने
कोई परास्त ना हुआ,
'अहम्' की लड़ाई को
दे देते हैं नाम हम
'अस्तित्व' के संघर्ष का
हो जातें है दूर स्वयं से
कर के अवरुद्ध
मार्ग स्व -उत्कर्ष का,
सापेक्ष है जीवन के पहलू
निरपेक्ष उनको करने के
दुस्साहस में
होता है नाश
अंतर के आनन्द और हर्ष का......

सत्य और शब्द : Satya Aur Shabd

नहीं है
सत्य से
शब्द का
समधर्मी
सम्बन्ध
मौन है
भाषा सत्य की
जैसे
पुष्प-सुगंध....

nahin hai
satya se
shabd ka
samdharmi
sambandh
maun hai
bhasha satya kee
jaise
pushp-sugandh.

Thursday, October 8, 2009

महक बनी अपने मुंह मियां मिठ्ठू......

(कवि कवियत्रियों की कमजोरी होती है, उन्हें दाद याने प्रशंसा से बड़ा निर्मल आनन्द मिलता है....कभी कभी खुद को भी पेम्पर करने का दिल होता है, आज मैं अपनी रचनाओं कि तारीफ में कुछ कहना चाह रही हूँ....आधा सच है, मुआफ कीजियेगा, मगर अंशतः ही सही कुछ सच ज़रूर है......आज अपने घर में अपने मुंह मिया मिठ्ठू बन रही हूँ......वैसे यह बात अविनाश कि क्षणिकाओं के लिए पूर्ण सत्य है.....बस ओपनिंग शब्द को 'मेरी नेनो' हटाकर 'क्षणिका' पढ़े....आप वहां 'दुहे होते हैं' भी पढ़ सकते हैं....)

...

मेरी नेनो
होती है
बट वृक्ष के बीज सदृश
राई आकार की
नन्ही नन्ही कविता
अंतर दृष्टि में
बो लेना मित्रों
फलेगी फूलेगी
बड़ वृक्ष बन
छू लेगी वह सविता.......

...

Wednesday, October 7, 2009

मन मिलने से एक हुए/Man Milne Se Aek Hue.......

स्वर्णिम रंग है
अगन का
श्याम
धूम्र का गात
मन मिलने से
एक हुए
क्या रंग-रूप
क्या जात ........?

(सुना होगा आपने : Beauty lies in the eyes of beholder.....इश्क हुआ गधी से तो परी भी क्या चीज है......हूर के पहलू में लंगूर)

Tuesday, October 6, 2009

तलवार और म्यान/Talwaar Aur Myaan.....

मस्तक विच्छेद
कर धन्य होती
तलवार
रणक्षेत्र में
दमक उसकी
जगा देती
शौर्य
बाँकुरे नेत्र में
मदमस्त होकर
नाचती
शमशीर
घमासान में
मित्रों ! अंतत:
वह नग्न सुंदरी
पाती है शांति
म्यान में...........

( राजस्थानी विजडम से प्रेरित)

mastak vichhed kar
dhanya hoti
talwaar rankshetra men
damak uski
jaga deti
shaurya
bankure netra men
madmast hokar nachti
shamsheer
ghamasan men
mitron antatah
wah nagn sundari
pati hai saanti
myaan men........

(inspired by a rajasthani wisdom)

आलोकित....(आशु कविता)

आलोकित तुम से
मेरा संसार
छूट गया सब
लोक व्यवहार
आलोकित तुम से
मेरा संसार.......

तुम बिन सूना
मेरा हर कोना
किसको पाना ?
किसको खोना ?
तन मन चाहे
बस अभिसार
आलोकित तुम से
मेरा संसार........

सीमायें सारी
तोड़ चुकी हूँ
तुम से नाता
जोड़ चुकी हूँ
दुनिया करे
चाहे प्रतिकार
आलोकित तुमसे
मेरा संसार........

मेरे अंतर में
तू है समाया
तू ही संग है
बनकर साया
व्यर्थ है सारे
रीत संस्कार
आलोकित तुम से
मेरा संसार.........

Monday, October 5, 2009

लोक व्यवहार /Lok Vyavhaar........

लाद देता है
लोक व्यवहार
बोझ
विशेषणों का
ढोये जाते हैं जिसे
हम लोग,
जैसे लिए जा रहा हो
कुली कोई
सिर पर अपने
कीमती असबाब
जो होता नहीं
उसका.....

laad deta hai
lok vyavhaar
bojh visheshanon ka
dhoye jate hain jise
hum log,
jaise liye ja raha ho
kuli koi
sir par apne
keemti asbab
jo hota nahin
uska.......

Sunday, October 4, 2009

दाने/Daane.......

..

गढ़ता है कुम्हार
माटी से
मूरत लक्ष्मी की
हो सके मुहैय्या
रोटी के लिए
चन्द दाने
जानता है वो
बरसेंगे
इसी मूरत पर
मेवे और मखाने......

gadhta hai kumhar
maati se
murat lakshmi ki
ho sake muhaiyya
toti ke liye
chand daane
janta hai wo
barsenge
isi murat par
meve aur makhaane......

आंसू और राग /Aansu aur Raag......

...

आंसू झरते हैं
नीचे चले आते हैं
करते हैं स्पर्श
तन का
करने हेतु रमण
मन में....
राग हो जाती है
अग्रसर
दूर होकर
होने गुंजायमान
गगन में
देखा,
पीड़ा का संग है
अन्तरंग का
साथ सुख का होता है
बहिरंग का.......

aansu jharte hain
girte hain neeche
karte hain sparsh
tan ka
karne raman
man men......
raag hoti hai
agrasar
door hokar
hone gunjayman
gagan men......
dekha,
peeda ka sang hai
antarang ka
saath sukh ka hota hai
bahirang ka......

Thursday, October 1, 2009

मौन.Maun...........

..

मेरे मौन को
पहना कर
शब्दों को अपने
मान लिया था तुमने
समझ गये हो
बातें मेरे अंतर की .........

दूर रह कर
सुने जा सकते हैं
बोल
केवल मात्र
बोल............

जानने मौन को
चाहिए होती है
एकात्मकता,
इन्द्रियाँ नहीं
आत्मा
केवल मात्र
आत्मा.....

mere maun ko
pahna kar
shabdon ko apne
maan liya tha tum ne
samajh gaye ho
baaten mere antar ki .....

door rahkar
sune ja sakte hain
bol
keval matra
bol.........

janne maun ko
chahiye hoti hai
aekatmakta,
indriyaan nahin
atma
keval matra
atma..........

Tuesday, September 29, 2009

वानर और भगवान.......

...

परम पुरुष
अवतारी सर्वज्ञ
शक्तिमान
भगवान,
मैय्या सीता को
तलाशने
गये
मगर
वानर
सहज
हनुमान..............

param purush
avtaari sarvagya
shaktimaan
bhagwaan,
maiyya sita ko
talashne
gaye
magar
vanar
sahaz
hanuman.....

Monday, September 28, 2009

स्पर्श/Sparsh.........

..

नहीं बजाती हूँ मैं
बजा रहा है मुझे
यह सितार
जुड़ गयी है
मेरी चेतना से
यह झंकार
जैसे दीपक की
बाती से
जगमग लौ..........

स्पर्श कर
इन तारों का
होती गतिमान
नयनहीन उंगलियाँ
सुन कर यह धुन
निराकार
हो जाता है
साकार.............

nahin bajati hun main
baja raha hai mujhe
yah sitaar
jud gayi hai
meri chetna se
yah jhankaar
jaise deepak ki
baati se
jagmag lou.........

sparsh kar
in taaron ka
hoti gatimaan
nayanheen ungaliyan
sun kar yah dhun
niraakaar
ho jata hai
saakaar...........

स्पर्श/Sparsh.........

..

नहीं बजाती हूँ मैं
बजा रहा है मुझे
यह सितार
जुड़ गयी है
मेरी चेतना से
यह झंकार
जैसे दीपक की
बाती से
जगमग लौ..........

स्पर्श कर
इन तारों का
होती गतिमान
नयनहीन उंगलियाँ
सुन कर यह धुन
सगुण
हो जाता है
निर्गुण.....

nahin bajati hun main
baja raha hai mujhe
yah sitaar
jud gayi hai
meri chetna se
yah jhankaar
jaise deepak ki
baati se
jagmag lou.........

sparsh kar
in taaron ka
hoti gatimaan
nayanheen ungaliyan
sun kar yah dhun
sagun
ho jata hai
nirgun...........

Sunday, September 27, 2009

इत्ती सी बात/Itti Si baat ............

..

दिन होता है
आँख
सूरज की
होती रात है
पीठ
मानव
तथापि
लखता
विभेद कर
बन
अनजान
और
ढीठ...........

बिना सोचे समझे
इत्ती सी बात को
कर देता वह अलग
दिन और रात को..........

din hota hai
aankh
suraj ki
raat hoti hai
peeth
manav
tathapi
lakhta
vibhed kar
ban anjan
aur dheeth.........

bina soche samjhe
itti si baat ko
kar deta alag wah
din aur raat ko.........

गिनतियाँ..........

..

तुम ने
जप किये
तप किये
पढ़ी नमाजें
गायी हैं प्रार्थनाएं
तस्बीह के
मनकों पर
चलायी है उंगलियाँ......

तुम तो
करते रहे हो
गिनती
क्या क्या किया ?
कितना किया ?
किस किस के लिए किया....?
फुर्सत ना मिली
तुमको
झांकने की
खुद में .........

खुदा बैठा था वहीँ
कर रहा था
इन्तेज़ार
मगर पूरी ना हो सकी
गिनतियाँ तुम्हारी........

आई थी इक आवाज़
पहुंचना है गर उस तक
लौट आना है घर तक
भूल जा अपने
जाप करोड़
पाना है अनगिनत को
डूब जा ध्यान में
सब गिनतियों को
छोड़......

(तस्बीह=माला जिस के बीड्स के सहारे अल्लाह/भगवान का नाम सुमरिन किया जता है.)

Saturday, September 26, 2009

संगम..........

....
कर्म सरस्वती
जमुना भक्ति
ज्ञान है गंगा नीर,
सजगता श्रीकृष्ण
मीरा बंद नयन
खुली आँख कबीर....

त्रिवेणी संगम से
हो जाये प्राणी !
निर्मल पावन
आत्मा और शरीर...........

Friday, September 25, 2009

संगम........

(नायेदा आपा से सुनी बात को शब्द दिए हैं )

# # #
कर्म सरस्वती,
भक्ति यमुना,
ज्ञान है गंगा नीर,
सजगता
साक्षात् कृष्ण,
बन्द चक्षु मीरा
अंखियन खुली
कबीर....

विलय त्रय का
स्व अस्तित्व में
करे यदि
मनुज गंभीर,
त्रिवेणी संगम से
आत्मा निर्मल
हो जाती है
अमीर......

Thursday, September 24, 2009

विस्मय........

..

छोड़ कर
बना बनाया
आसान मार्ग
चली थी मैं
बीहड़ की टेढी मेढी
वीथिकाओं में (या)
कदम रखते
उजाडों में
नयी राह
स्वयं की बनाते हुए,
नहीं डरा सके थे मुझे
घनघोर जंगल
ऊँचे पर्वत
उफनते सागर,
होता है विस्मय...
मुझ खोयी हुई को
कैसे खोज सकी है
मंजिल ????????????

..

Wednesday, September 23, 2009

अज़गर की लीक ...........

..

राह नहीं
यह तो है
अजगर की लीक....

लौट जा पथिक !
नज़रें तेरी
अनाड़ी
पहचान है तेरी
जुगाड़ी
छुपा बैठा है काल
निज आँगन में
यह लीक
पहुंचा ना दे तुझे
मौत के आलिंगन में .......

ऐ जल्दबाज़ मुसाफिर !
लौट जा !
लौट जा !
नहीं है यह तेरी राह
पहुँचाने मंजिल को
कदम बढ़ने
से पहिले थाम ले तू
अपने दिल को...........


.....

Tuesday, September 22, 2009

अश्रु : हिये का हार........

..

अश्रुओं से गलता है
मैल मन का
हरता रीठा जैसे
वस्त्र खार को
मत बिसरा
आंसुओं को
मेरे मित्र !
रख ले सजा के
अनमोल से
हिये के इस
हार को.......

ashruon se galta hai
mail man ka
harta reetha jaise
vastra khaar ko,
mat bisra
aansuon ko
mere mitra !
rakh le saja ke
anmol se
hiye ke is
haar ko...........

Monday, September 21, 2009

प्यासी प्यासी सी........


......

मैं तो डूबी हूँ
तेरे होने के
एहसासों में,
ये जिस्म
तुझको
रूह तक
ले आने का
इक जरिया है.....

प्यासी प्यासी सी
खडी हूँ मैं
किनारे पे ,
तू सुकूं का
बहता हुआ
इक दरिया है.......

main to doobi hun
tere hone ke
ehsason men,
yeh jism
tujhko
rooh tak
le aane ka
ik zariya hai.....

pyaasi pyaasi si
khadi hun main
kinaare pe,
tu sukoon ka
bahta hua
ik dariya hai......

Sunday, September 20, 2009

पहचान........Pahchaan.......

...
रूठ कर
शज़र से
कली ने जब
फूला लिए थे गाल*,
पहचान लिया
लम्पट पवन ने,
होना है अब
जुदा इसको
अपने सनम से.......

(*कली का फूल बन जाना-प्रतीक है गुरूर आ जाने से)

Rooth kar
Shazar se
kali ne jab
Phoola liye the gaal,(*)
Pahchan liya
Lampat pawan ne
Hona hai ab
Juda isko
Apne sanam se........

(*kali ka phool ban jana-prateek hai gurur aa jane se)

राधिका ......I

(यह कहानी लेखिका कि कल्पना पर आधारित है, किसी भी जीवित अथवा मृत नर-नारी के जीवन से कुछ घटनाओं का मिलता जुलता होना महज़ संयोग ही समझा जाये.)
_____________________________________________________________


राधिका को आदिवासियों के उत्थान के लिए काम करने के लिए हल ही में राष्ट्रपति पुरुस्कार से नवाजा गया. लगभग हर अख़बार में यह खबर थी, प्रांतीय समाचार पत्रों में तो खबर सुर्खियों में थी. लाल पहाड़ की सूती साडी पहने राधिका अख़बारों और चाय की प्याली का लुत्फ़ साथ साथ ले रही थी. नवरात्रा का पहिला दिन था, देवी माता कि पूजा कर राधिका ने माताजी महाराज का आवाहन किया था....कि वे आयें और उसके साथ पूर्ण नवरात्रा में रहे. पूजा करते समय सुधा भी भांप रही थी कि यह प्रतीक मात्र है किन्तु इसी प्रतीकातमक जुडाव के कारण वर्ष में दो अवसर आते हैं चैत्र और आसोज में जब माता को वह अपने और नज़दीक पाती है. अपनी शक्ति का पुनर्मूल्यांकन पुनराकलन कर पाती है. माँ दुर्गा को वह स्त्री शक्ति का प्रतीक मानती है, और स्वयं की शक्ति को उसके विभिन्न रूपों से पहचानती है. अचानक राधिका सोचों में डूब गयी. विगत कि स्मृतियाँ उसके मानस पटल पर चलचित्र की भांति प्रर्दशित होने लगी.
राधिका का जन्म एक आम मध्यम वित्तीय परिवार में हुआथा. तीन भाई बहनों में वह सब से बड़ी थी, उसके बाद उसकी बहन सुधा और फिर भाई अनुज का आगमन हुआ था. बात आम है मगर कहना ज़रूरी है, राधिका को बहन लाने वाली माना जाता था और माता पिता के बचे खुचे प्यार का कोई टुकड़ा उसे यदा कदा नसीब हो जाता था. हाँ स्थूलकाय गौरवर्ण सुंदरी मां से लगभग लगातार ही कड़वे बोल और नसीहतें उसे सुननी पड़ती थी. शायद दस वर्ष कि उम्र से ही राधिका ने रसोई के , घर गृहस्थी के सारे काम जान लिए थे. स्थितियां ऐसी बनी थी कि खाना पकाना, कपडे धोना, छोटे भाई बहनों को संभालना, बाप का खयाल रखना मानो उसकी मां गौरी की जिम्मेदारी कम और राधिका की ज्यादा होती थी. मां सदा कहती, "अच्छी लड़की बनो...पराये घर जाना है." "अक्ल क्या घास चरणे चली गयी, जो ऐसा किया...वैसा किया.....कब सुधरोगी. कब तुझ में अच्छी लड़कियों के गुण आयेंगे." कभी कोई चूक या कोताही होती तो मां बाप को भड़का कर राधिका को डांट पिलवाती थी, राधिका बस आंसू बहा कर रह जाती थी. मां और उसका समीकरण सगी मां-बेटी का सा कम, सौतेली मां-बेटी जैसा ज्यादा था. कभी कभी तो लगता था उसकी स्तिथि घर में एक नौकरानी से ज्यादा नहीं. राधिका बहुत सुन्दर, शालीन और जहीन लड़की थी. घर के काम को प्राथमिकता देते हुए भी, स्कूल में भी उसकी उपलब्धियां कम नहीं थी, कक्षा में प्रथम आना, गैर-पाठ्यक्रम की गतिविधियों में भी अच्छा प्रदर्शन करना राधिका की खासियत थी.
राधिका कि उम्र चौदह की हो गयी तो उसके एक रिश्तेदार मामा भी उनके साथ आकर रहने लगा, उसकी पत्नी का देहांत हो गया था, और अपनी सारी सम्पति अपनी बहन-जीजा को देकर उसने उस घर में आसरा लेना चाहा था, जो राधिका के माँ-बाप ने ख़ुशी से मंज़ूर कर लिया था.
बाप काम पर चले जाते, मां दोपहर में सत्संग में या सहेलियों से गपियाने आस-पड़ोस में चली जाती, सुधा-अनुज अपने कमरे में खेलने या पढने में व्यस्त होते, अधेड़ मामा ना जाने क्यों राधिका के उभरते अंगों से छेड़-छाड़ करने लगता, बाज़ वक़्त उसे अपने आगोश में ले लेता.....किसी तरह राधिका खुद को उसकी कुत्सित हरक़तों से खुद को बचाती किन्तु भयाक्रांत सी रहने लगी. मां-बाप की आँखों को पट्टी पड़ी हुई थी, उनको शिकायत करना फजूल था, उल्टे उसीको डांट पड़नी थी. ऐसे में पड़ोस में रहने वाला पियूष जो उसका हम-उम्र था हमराज बन गया....पियूष एक अच्छा और मेघावी लड़का था, एक अच्छा इंसान भी. यह मित्रता लगातार बढ़ते बढ़ते प्रेम में परिवर्तित हो गयी.
राधिका भी कॉलेज स्तर तक पहुँच गयी थी, पियूष भी इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला पा चुका था. पियूष ब्राहमण परिवार से था और राधिका के घरवाले गुप्ता बनिए थे. दोनों ही परिवार सब कुछ समझते हुए भी, इस सम्बन्ध को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. कालांतर में एकलौता पुत्र पियूष भी घर वालों के दवाब के सामने कमज़ोर पड़ गया...और उसने राधिका से मुंह मोड़ लिया.
इधर राधिका का ग्रेजुअशन पूरा हुआ, उधर मामा की सहायता से एक सुयोग्य बनिया वर मनीष का चुनाव कर लिया गया. मनीष ने CA पास किया था और प्रैक्टिस करता था. यथोचित दान दहेज़ देकर राधिका को श्रीमती मनीष सिंघल के रूप में विदा कर दिया गया. बनिया और ऊपर से चार्टर्ड एकाउंटेंट, मनीष कि हरेक गणना बहुत सटीक और रुपयों पैसों से जुडी होती. घर का काम सँभालने के अलावा राधिका से उम्मीद की गयी कि वह घर में बच्चों को पढाये ताकि आमदनी बढ़ सके. इस प्रकार राधिका घर कि चार दीवारी और जिम्मेदारियों के घेरे में फंस कर रह गयी. ज़िन्दगी बस किचन और उस से टुइशन पढ़नेवाले बच्चों को सँभालने में ही व्यतीत होने लगी, क्या हुआ कभी कभार कोई शादी-जन्मोत्सव के भोज में अथवा मंदिर के किसी कार्यक्रम में शामिल होने राधिका बहुत ही दबाव और हड़बड़ में कभी कभार बाहर निकल पाती. मां ने पति को परमेश्वर मानने के 'सुसंस्कार' पुत्री को दिए थे, बताया था कि पति के प्रति समर्पित नारी ही सती होती है शक्तिरूपेण, भगवान को भी उसके सामने झुकना होता है. सावित्री सत्यवान जैसी कई कहानियों को बता कर मां ने अपना पॉइंट कूट कूट कर 'प्रूव' किया था और राधिका का 'ब्रेन वाश' किया था. मामा की गन्दी हरक़तों ने, माँ बाप के सौतेले व्यवहार ने और पियूष कि खुदपरस्ती ने राधिका में एक अजीब सी हीन भावना की ग्रंथि पैदा कर दी थी.

मनीष के साथ आकर राधिका ने सोचा था कि एक संस्कारवान पत्नी/गृहणी बने, पति कि आज्ञानुसार आचरण करे और पति की भरपूर सेवा तन-मन-धन से करे, शायद इसी से वह सती नारी बन अपना जीवन सफल कर पाए. दिन भर घर और टुइशन की मेहनत और रात को थके हारे मनीष को बिस्तर में खुश करना राधिका का परम कर्तव्य, स्त्री-धर्म या 'रूटीन' हो गया था. मनीष यदा कदा दोस्तों के साथ पीकर, जश्न मना कर घर लौटता और बिस्तर में उसकी गतिविधियाँ पाशविक हो जाती. प्यार मोहब्बत की बात तो दूर, मनीष तरह तरह के व्यंग बाणों से राधिका को बेंधता रहता. कभी उसके फूहड़ होने की बातें, कभी अव्यवहारिक होने का आरोप, पियूष के साथ उसके काल्पनिक शारीरिक संबंधों की बातें, उसके माता-पिता पर लांछन.....बहुत कुछ हथियार अपनाता था मनीष राधिका पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाये रखने के लिए.....अपना बर्चस्व कायम रखने के लिए.
राधिका बस पिजरे कि चिड़ियाँ बन कर रह गयी. मनीष उन्मुक्त उड़ने वाला पक्षी. दिन भर कि मशक्कत के बाद कहाँ रह पाता चुलबुलापन राधिका कि फ़ित्रत में. वक़्त के साथ मनीष को राधिका से उब सी महसूस होने लगी. उसकी आशनाई एक क्लाइंट के यहाँ काम करने वाली ज्योत्सना अरोड़ा उर्फ़ पिंकी से हो गयी.
मनीष के पारिवारिक नियमों के अनुसार बहुएं साड़ी ही पहन सकती थी, ईवन सूट तक पहनना 'allowed ' नहीं, सर पर पल्लू ज़रूरी, सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग सर्वथा वर्जित. ऐसे में कहाँ साडी में लिपटी राधिका और कहाँ लिपि पुती, शानदार हेयर-कट लिए, westerns पहने, हाय-गाय-बाय करती 'खुले' विचारों और आचारों वाली पिंकी अरोड़ा. पिंकी एक छोटे-मोटे संस्थान से 'distance learning scheme ' द्वारा MBA की हुई थी. उसने नौकरी छोड़ दी और मनीष के साथ associate हो गयी.पिंकी के खुले मार्केटिंग स्किल्स ने काम किया, नए नए काम मनीष-पिंकी combine के पास आने लगे. अचानक से मनीष-पिंकी के 'आउट-ऑफ़-स्टेशन' assignments बढ़ने लगे, कभी बैंक ऑडिट, कभी 'टेक-ओवर' के लिए ड्यू डिलिजेंस, कभी प्रोजेक्ट अप्रेजल, कभी कंपनी ला बोर्ड, कभी टैक्स मैटर इत्यादि के नाम......दोनों साथ साथ जाते. मनीष कि शामें भी ज्यादातर पिंकी के साथ गुजरने लगी. काम की बढौतरी ने काम के घंटे भी बढा दिए, छुट्टियों के दिन भी काम होने लगा. यह नयी 'consultancy ' बहुत विकासमान हो रही थी, मनीष की समृधि और शोहरत भी बढ़ते जा रहे थे. उसके व्यक्तित्व में भी एक गुरूर से भरा निखार देखा जा रहा था. राधिका कि स्थिति और बौनी होती जा रही थी. दबी जुबान से पिंकी-मनीष के संबंधों कि चर्चा-कुचर्चा भी होने लगी....मगर कामयाबी सब बातों से ऊपर होती है....धन, सफलता और लोगों की सफल-धनी लोगों से झूठी-सच्ची अपेक्षाएं इन सब बातों को पीछे छोड़ देती है. आधुनिकता और compatibility के नाम बहुत कुछ जस्टिफाई किया जाने लगता है.
मनीष ने नया बड़ा फ्लैट ले लिया था, अच्छे से फर्निश भी कराया था, गृह-प्रवेश पर सब सम्बन्धी भी गाँव से शहर आये थे. समारोह में पिंकी के रंग ऐसे थे मानो नया घर उसका हो. राधिका को बस रिश्तेदारों की देख-रेख की भाग दौड़ करते एक बेचारगी के एहसास के साथ नए घर में देख गया था.
एक दो को छोड़ कर बिना वज़ह अधिकांशतः रिश्तेदार पिंकी के प्रशंसक और राधिका के आलोचक बन गये थे. नए फ्लैट ने राधिका के कामों, जिल्लत और प्रताड़ना में ही बढोतरी की थी, उसका सुकून छिन गया था. काम के बहाने पिंकी का घर आना जाना बढ़ गया था, नए घर का एक कमरा ऑफिस -कम-गेस्ट रूम के रूप में बदल दिया गया था. . इस वातानुकूलित कक्ष में पिंकी-मनीष प्रोजेक्ट का विश्लेषण करते अथवा अपना संश्लेषण करते, करीब करीब अनुमान लगाया जा सकता था. दुखी राधिका का काम होता दोनों की स्नेक्स, सोडा, बर्फ, आदि की ज़रूरतें पूरी करना और गलती बिना गलती मनीष कि झाड़ सुन ना....जब मनीष ज्यादा ही गर्म हो जाता पिंकी राधिका कि छद्म सिफारिश कर उसे चुप करा देती थी.
राधिका एक जीवित नर्क का हिस्सा बन गयी थी. पढ़नेवाले बच्चे, माँ दुर्गा एवम् काली की पूजा घर में लगी तस्वीरें और उसकी निजी डायरी बस उसकी तकलीफों के साथी थे. माता-पिता, भाई बहन ने भी बुरे वक़्त में मुंह मोड़ लिया था, उन्हें भी उस से ज्यादा प्यारा मनीष लगता था. तरह तरह के उपहार देकर, झूठी स्निग्धता दिखा कर पिंकी ने राधिका के नैहर में भी अपनी तूती बजा डाली थी. पियूष ने भी किसी मंत्री महोदय की घमंडी बेटी से विवाह कर अपने ससुर के बल-बूते पर अपना रुतबा बना लिया था.
वह ठेकेदारी लाइन में आ गया था......मंत्रीजी का दामाद जो ठहरा. उसके पिता बृज भूषण शर्मा कक्काजी बन मंत्रीजी के लिए दलाली करने लगे थे. कपटी मामा अब खुले आम बहुत कुछ करने लगे थे घर में भी बाहर भी. रिश्तों, मान्यताओं और सामाजिकता के महलों के खँडहर राधिका के चारों ओर बिखरे पड़े थे.

राधिका ....II

राधिका सोचों में खोयी खोयी सी थी. बीते दिनों के इन दृश्यों को देखते विचरते उसका मन खिन्न सा हो गया था. सामाजिक रिश्तों की भोगी हुई सच्चाईयां उसको शूलों कि तरह चुभने लगी थी. ना जाने क्यों रोष और उदासी के मिश्रित भाव उसे घेरे जा रहे थे. सेल-फ़ोन बज उठा....स्क्रीन पर आया था "कुमार साहब कालिंग ", राधिका को लगा मन-मस्तिष्क का बौझा अचानक हल्का हो गया, स्क्रीन पर उभरे नाम मात्र ने उसके मायूस मिजाज़ को गुलज़ार बना दिया था .
"नवरात्रा शुभ हो, दुर्गे ! पूजा हो गयी." कुमार साहब बोल रहे थे.
"आपको भी नवरात्रा की शुभ कामनाएं ! आपने भी पूजा करली." राधिका चहक रही थी.
उधर से कुमार साहब का आह्लाद भरा गंभीर स्वर कह रहा था, " देवी, इसीलिए तो फ़ोन किया, सोचा दूर बैठी देवी को प्रणाम कर लिया जाये."
राधिका ने जवाब दिया, "आप नहीं सुधरेंगे कुमार साहब, क्यों शर्मिन्दा कर रहे हैं ? दूर होने से क्या हुआ आप तो सदैव इस मानवी के संग एहसास बन कर रहते हैं. देवी माँ आपको अधिकाधिक शक्ति दे, जिस-से आप के सोचों का लाभ ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिल सके. हाँ खाने-पीने का ध्यान रखियेगा, नवरात्रा में समय पर फलाहार ले लीजियेगा. दवा भी समय पर ले लीजियेगा."
"अपना खयाल रखना, राधिका....बाय." कुमार साहब ने बात समाप्त कर दी थी.

फ़ोन को सेंट्रल-टेबल पर रखते दूसरे हाथ से अपनी साडी के पल्लू से राधिका नाम पलकों को पौंछ रही थी. अधरों पर मुस्कान थिरक रही थी, ऐसा लग रहा था मानो पूरे तन-मन में नवीन प्राणों का संचरण हो गया हो.
राधिका ने घड़ी देखी, पल्लू को ठीक किया और फिर से उसका सोचों का सफ़र आरम्भ हो गया था. मनीष कि ज्यादतियां दिन प्रतिदिन बढती जा रही थी. एक दिन मनीष कह बैठा, "शादी को ६ साल हो गये. मां-बाबूजी पोते का मुंह देखने तरस रहे हैं. तुम हो कि कुछ नहीं दे पा रही हो." कल शाम का मैंने 'Hope Inferitlity Cure Center' के डा. नसीर अहमद से appointment लिया है. उनसे राय लेंगे कि क्या किया जाय. नियत समय पर मनीष राधिका के साथ डा. अहमद के सामने था. जनरल चेक अप और सूचनाओं को नोट करने के बाद डा. अहमद ने दोनों के लिए कुछ टेस्ट्स लिखे, जो वहीँ हो सकते थे. अगला appointment सात दिन बाद का दिया गया. उस दिन मनीष अकेला क्लीनिक में गया, डॉक्टर को बोला कि राधिका की तवियत नासाज़ है इसलिए वह नहीं आ सकी. डाक्टर अहमद ने कहा कि उन्होंने सारी रिपोर्ट्स को देखा है और विचार किया है. मनीष और राधिका दोनों को ही चिकित्सा कि आवश्यकता है. राधिका की दो समस्याएं रिपोर्ट्स से पता चली है : पहली उसके ओवारिज में सिस्ट है, और दूसरी किसी नामालूम भीतरी आघात से गर्भाशय की नसें कमज़ोर हो गयी है. दोनों स्थितियों के लिए माकूल इलाज उपलब्ध है. मनीष के स्पर्म काउंट कम है, उसका भी इलाज है. मनीष ने कहा कि अगर वे यथोचित चिकित्सा कराएँ तो क्या संतान होना निश्चित है. उस पर डा. अहमद बोले, "बच्चा होना या ना होना इतेफाक है, साइंस अपने तौर पर कोशिश कर सकती है और जो इलाज चुना जा रहा है उसके नतीजे भी positive हासिल हुए हैं दुनिया में बहुत जगह. हाँ गारंटी किसी बात कि नहीं ली जा सकती." डॉक्टर अहमद ने सभी बातों को पूरे तौर पर तफसील से बताया भी, CD मदद से. मनीष को तो बस एक ही सवाल में रूचि थी, राधिका की बच्चादानी को भीतरी आघात कैसे लगे.
घर आकर बाकी सब बातों को गौण कर, मनीष ने बस इसी मुद्दे को गरमाए रखा था. आरोप-प्रत्यारोप का बेहूदा सिलसिला शुरू हो गया था, "ये कैसे हुआ, भीतरी नसें कैसे कमज़ोर हो गयी ?"......"राधिका अपने कर्मों से बाँझ बन कर रह गयी है." .....राधिका ने कभी भी मनीष के अतीत और वर्तमान पर प्रश्न नहीं उठाये थे, मगर मनीष के लिए मानो राधिका का अतीत सुखी दांपत्य जीवन के लिए बाधक था. बच्चे पैदा होने कि सम्भावना भी इतेफाकन थी, जैसा डॉक्टर ने बताया था, उसके लिए भी राधिका ही जिम्मेदार थी. ऊपर से राधिका गंवार, उसे पहनना ओढ़ना नहीं आता, बात का सलीका नहीं, बिज़नस/सोशल पार्टीज में presentable तक नहीं. कुल मिलाकर मनीष अपने भाग्य को कोसता था कि उस जैसे टेलेंटेड इन्सान को राधिका जैसी मिडल क्लास बीवी मिली. इन सब के बावजूद भी हिंसक और आक्रामक तरीके से मनीष राधिका को झूठा प्रेम जता कर भोगता रहा. बेचारी राधिका क्या समझे कि इसमें भी मनीष-पिंकी की कुछ साजिश थी. इस दौरान मनीष ने ना जाने कितने कागज़ किसी ना किसी बहाने राधिका से दस्तखत करा लिए. पतिव्रता नारी राधिका...... उसको क्या मालूम कि ये कागज़ उसके समस्त संचित धन और शादी को को हड़पने के लिए एक चाल के तहत बनाकर उसके दस्तखत कराये गये हैं. यही नहीं, कुछ दिन बाद उसे तलाक का नोटिस रजिस्टर्ड डाक से मिला, उसके तो पाँव तले ज़मीन खिसक गयी. शाम को मनीष जब घर आया, राधिका बहुत रोयी धोयी. मनीष ने उसे अपने साथ लिपटा मुआफी मांगी और कहा कि यह नोटिस उसने आवेश में वकील से दिला दिया था......मनीष कार्यवाही को रुकवा देगा. .........और ना जाने कैसे मनीष ने मेनेज किया, एक दिन मनीष ने तलाक़ कि डिक्री राधिका के हाथ में थमा, उसे अविलम्ब उसके घर से दफा हो जाने को कहा.

राधिका को दुनिया उलटती नज़र आने लगी. उसने मनीष से बहुत अनुनय विनय किया किन्तु पत्थर दिल मनीष पर कोई असर नहीं हुआ.
उसकी दुनिया तो उस चारदीवारी में सीमित हो गयी थी, मदद के लिए पुकारे तो किसे पुकारे. पिंकी ने जल्दी जल्दी उसका समान दो सूटकेसों में पेक किया, उसे हज़ार हज़ार के पांच नोट दिए और कहा कि नैहर चले जाये, वह कोशिश करेगी मनीष को समझाने की. वह टैक्सी तक राधिका को छोड़ने भी आई. आँखों में आंसू लिए राधिका पीहर कि चौखट तक पहुंची. शायद इस बीच, फ़ोन पर उसके आगमन की खबर मनीष/पिंकी ने वहां दे दी थी. मां ने कहा, "तुझी में दोष है, मनीष जैसे पढ़े लिखे होनहार लड़के को देख कर हम ने बहुत धूम-धाम से तुम्हारी शादी की, तुम्हारी पिछली गलतियों ( पियूष के साथ प्रेम) को भी छुपाया....तू शुरू से ही अच्छी लड़की नहीं थी, हम क्या कर सकते हैं, हमारे समझाने से बेचारे ने तुम्हे ६ सालों तक निभाया. दो चार दिन की बात और है, तुम्हे उसके बाद अपनी व्यवस्था खुद ही करनी होगी. हमें तो यह चिंता सता रही है सुधा को कौन ले जायेगा, बिरादरी में तुमने हमें किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रखा."
बाप उसको देख कर अन्दर जा कर बैठ गया था.....सुधा और अनुज भी इधर उधर हो गये थे. मामा कह रहा था, "अपने कर्मों का फल खुद को ही भुगतना होता है." राधिका को बिना 'ट्रायल' के 'गिल्टी' घोषित कर दिया गया था. राधिका ने आंसू पौंछे और मुड़ गयी. कुछ देर बाद रेलवे स्टेशन पर थी राधिका.
प्लेटफार्म पर बहुत गहमागहमी थी, एक ट्रेन जो मुंबई जाने के लिए तैयार खडी थी, लगभग छूटने को थी. कुली ने कहा-"मेमसाब ! ऐ सी डिब्बे में " बिना सुने समझे ही राधिका ने हामी भर दी. कुली ने कहा कौन सा कूपे---क्या यही ? फिर राधिका कि बेहोशी कि हामी. कुली ने समान कूपे 'बी' में सेट किया. अपना मेहनताना लिया....कि ट्रेन स्टार्ट हो गयी. कोई पंद्रह मिनट के बाद गाड़ी ने स्पीड पकड़ ली थी. राधिका
कूपे के बाहर आई, देखा ट्रेन दौडी जा रही थी और डिब्बे के दरवाज़े पर कोई नहीं था, उसने दरवाज़ा खोला और बाहर को झुक गयी, इतने में किसी बलशाली हाथों ने उसे अन्दर कि ओर धकेल लिया. उस व्यक्ति ने दरवाज़ा बंद किया और कहा, "आप कूपे 'बी' में ही है तो....मैं फ्रेश होने चला आया था, अनायास मेरी नज़र आप पर पड़ गयी.....ना जाने क्या हादसा हो जता .....आप अपनी जान गँवा देती या अपाहिज हो जाती. चलिए अन्दर बैठ कर बात करते हैं." राधिका सूखे पत्ते के माफिक कंप रही थी, गला सूख रहा था....आँखों के आगे अँधेरा सा छ रहा था. कूपे में सहारा देकर उस व्यक्ति ने राधिका को लिवा लिया और बैठा दिया. मिनेरल वाटर कि बोतल से गिलास में पानी ढाला और राधिका कि जानिब बढा दिया. "पानी पी लीजिये." कह रहा था व्यक्ति. राधिका ने कुछ घूँट भरे और गिलास को हाथों में थाम बैठ गयी, सूनी सूनी आँखों से देखने लगी. उन्होंने गिलास को राधिका के हाथ से लिया और कहा, "आपको आराम की सख्त ज़रुरत है, आप लेट जाईये इसी लोअर बर्थ पर." चद्दर बिछी हुई थी, उस व्यक्ति कि आवाज़ में ना जाने कैसा जादू था, राधिका चुप-चाप लेट गयी. व्यक्ति ने चद्दर उढा दी और कहा कि आप बिलकुल महफूज़ हैं, किसी भी तरह कि फ़िक्र ना करें.....मैं सब संभाल लूँगा. टिकेट एक्जामिनर आया, उस ने उस व्यक्ति को बहुत आदर से नमस्कार किया.....वह व्यक्ति बोला यह भी उनके साथ हैं, अचानक प्रोग्राम बना, तवियत नासाज़ है इसलिए सोयी हुई हैं, पेनाल्टी सहित रुपये लेकर इनकी टिकेट भी रायपुर तक कि बना दें. नाम श्रीमती आर कुमार लिख दें. आवश्यक कार्यवाही के पश्चात् टी टी ई चला गया. एक कौने में बैठ वह व्यक्ति 'रीडर्स डाईजेस्ट' के पन्ने पलट रहा था. अचानक राधिका उठ बैठी.
"मुझे रंजन कुमार सिंह कहते हैं लोग. मेरा कार्य क्षेत्र फिलहाल रायपुर-मध्य प्रदेश (छत्तीसगढ़ नहीं बना था उस समय) है. मुझे लोग 'कुमार' के नाम से जानते हैं. रायपुर में मैंने कई गतिविधियाँ शुरू कर रखी है पढाई लिखाई, आदिवासियों के उत्थान, उन्नत खेती इत्यादि के विषय में. आप घबराइए नहीं मुझ से जो बन पड़ेगा आपकी सहायता के लिए करूँगा. मुझे खुल कर सारा माज़रा बताइए."

कुमार साहब के शब्द बिलकुल ठोस और अपनत्व कि पुट लिए हुए थे. कनपटियों के पास सफ़ेद बाल उनकी प्रौढ़ अवस्था को बता रहे थे....मोटा सा काले फ्रेम का ऐनक बता रहा थे कि वे एक पढ़े लिखे इंसान है. रौबीला चेहरा आत्मीयता लिए हुए था. कुल मिला कर उनकी उपस्थिति के स्पंदन एक सुकून और सुरक्षा का वातावरण उस कूपे में पैदा कर रहे थे. उनकी 'साल्ट एंड पेप्पर' दाढ़ी मोंछ एक मुस्कान लिए थी. उनकी आँखों में अनकहे आश्वासन भरे हुए थे. पहली बार राधिका को एक मर्द की उपस्थिति में शांति का अनुभव हो रहा था.

राधिका ने कुछ कहा, कुमार साहब ने कुछ सुना......जब जब राधिका चुप हुई, कुमार साहब ने कभी पानी, कभी बिस्किट और कभी सांत्वना भरे शब्द राधिका को पेश किये. कुछ शब्दों में कुछ स्पंदनों से राधिका ने आप बीती बता दी थी और कुमार साहब ने सुन ली थी .

कुमार साहब कह रहे थे, "राधिकाजी जो कुछ आपके साथ हुआ किसी भी दृष्टि से अच्छा नहीं हुआ, किन्तु एक बात अच्छी हुई कि आप आज एक नयी शुरुआत खुद के लिए कर सकती है. प्रभु ने आपको हिम्मत और सहनशीलता दी है. आप ने शिक्षा, मनोविज्ञान और दर्शन जैसे विषयों में बी.एस.सी.(ओनर्स) कि डिग्री गोल्ड मैडल के साथ हासिल की है. बचपन से आपने घर को मेनेज किया है. छोटे छोटे बच्चों को पढ़कर आपने साबित कर दिया है कि आप ने अपनी शिक्षा को व्यवहार में लागू किया है. आपके लिए बहुत सी संभावनाएं फूल मालाएं लिए स्वागत को खडी है....बस आपकी हामी चाहिए." राधिका को स्वयं को भी अपने इन गुणों का एहसास नहीं था. वह तो मंत्र मुग्ध सी कुमार साहब को सुन रही थी.
"देखिये हर अच्छे कम में समय लगता है, हमें अपनी लग्न और मेहनत उसमें लगनी होती है. प्रभु जब हमारी इमानदारी और दृढ संकल्प को देखते हैं तो हमें यथा समय यथेष्ठ फल से नवाजते हैं. हमें बस धैर्य धारण करना होता है और उस पर विश्वाश बनाये रखना होता है." कह कर कुमार साहब ने पानी के कुछ घूँट भरे.
"आपके लिए मेरे दीमाग में एक प्लान है......हम लोग एक स्कूल चलाते है आदिवासी बच्चों के लिए....उसमें एक अध्यापिका कि आवश्यकता है....रहने कि व्यवस्था स्कूल के पास ही हो जायेगी, मेहनताना इतना मिलेगा कि एक इन्सान सादगी से खा पी सकता है. हाँ एक शर्त है आपको हमारी बात माननी होगी."
कुमार साहब इतना कह कर चुप हो गये थे. राधिका आसमंजस में थी, कि ऐसी कौन सी शर्त है जो यह व्यक्ति रखनेवाला है इस उपकार के एवज में. कहीं यहाँ भी पाखंड का बोलबाला है.
राधिका बोली, "जी, आपकी सब बातें मेरे लिए उचित ही लग रही है, किन्तु यह शर्त वाली बात...बिना इसका खुलासा हुए कैसे कह सकती हूँ कुछ." राधिका को लग रहा था कहीं यह व्यक्ति उसकी मजबूरी का फायदा उठाने के लिए भूमिका तो नहीं बना रहा.

कुमार साहब मानो राधिका के मन को पढ़ रहे थे, कहने लगे, "राधिकाजी ! हमें आपकी यह बात बहुत अच्छी लगी कि आप हामी भरने से पहले शर्त जानना चाह रही है. देखिये हमारा इरादा आप पर बहुत बौझा डालने का है.....आपको अपनी मास्टर्स कि पढाई जारी करनी होगी...पत्राचार द्वारा....उसमें भी आपको पूर्ववत् सफलता पानी होगी.....उसके बाद आपको पीएचडी भी करनी होगी. इन सब के लिए आपको कुछ छात्रवृति और कुछ ऋण हमारे संस्थान से मुहैय्या कराया जायेगा. अंधकार को वो ही दूर कर सकता है जो खुद रोशन हो. हमें आशा है हमारी यह शर्त आप को मंज़ूर होगी." फिर उभरा उनका अपनत्व भरा स्वर, " यह कोई अंतिम बात नहीं, यदि आपको नहीं मुआफिक हो तो थोड़ी बहुत तबदीली भी की जा सकती है, आप सोच कर जवाब दीजिये. तब तक मैं खाना लगाता हूँ.
राधिका को लगा उसे कोई देव-वरदान मिल गया हो. उसने कहा, "सर ! आप जो कुछ कह रहे हैं वह शर्त नहीं मेरे पुनर्निमाण कि योजना है, जिसमें शिरकत करना मेरा सौभाग्य होगा."
खाने कि भूख अचानक जग आई थी. लग रहा था भूत के सारे अक्षर मानो उसके जीवन के श्याम पट्ट से मिटने लगे हों और नयी तहरीर लिखि जा रही हो. राधिका को अँधेरी सुरंग के बाहिर रोशनी कि एक लकीर दिखने लगी थी.

खाना खाने के बाद, राधिका लोअर बर्थ पर और कुमार साहब ऊपर कि बर्थ पर सो गये थे. नारी का मन मस्तिष्क बहुत संवेदनशील होता है. नारी पुरुष के मनोभावों को उसकी नज़रों, उसकी बातों, उसकी भाव भंगिमाओं से ताड़ लेती है. राधिका को महसूस हो रहा था कि कुमार साहब जैसे इंसान कि उपस्थिति किसी गैर-मर्द के साथ अकेले रात बिताने का खौफ नहीं एक बहुत ही सुकून और सुरक्षा का सोपान है, जिसे आत्मा महसूस कर सकती है.
दूसरे दिन रायपुर स्टेशन पर कुमार साहब को लेने उनके सचिव गजेन्द्र जोगी आये थे. कुमार साहब ने कहा, "गजेन्द्र ! ये राधिकाजी हैं. हमारे साथ कम करेंगी. इन्हें महिला प्रखंड में शान्तिबेन से मिलवा देना. इनसे जो बात हुए है ये ही तुम्हे बता देंगी और उन्हें भी. नयी हैं, इनका पूरा खयाल रखना. हाँ मुझे तुरत ही विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने जाना है, इसलिए मैं अपने कोटेज को चला जाऊंगा ताकि तैयार हो कर वहां समय पर पहुँच सकूँ." गजेन्द्र जीप से राधिका को शन्तिबेन के पास ले जा रहे थे और कुमार साहब अपनी गाड़ी से कोटेज को प्रस्थान कर रहे थे. हाँ उन्होंने राधिका से, "All the best." ज़रूर कहा था उसी गरिमामय मुस्कराहट के साथ.

कुमार साहब का स्वयंसेवी संगठन "आदिवासी मित्र" का हिस्सा बन गयी थी राधिका. यथा समय उस ने MA Phd किया, अपने आपको हृदयतः कुमार साहब के विचारों के क्रियान्वन में लगा दिया. कुमार साहब के प्रति उसके मन में अगाध प्रेम भर गया था. समय समय पर उनसे बहुत कुछ सीखा था उसने....ध्यान कि विधियां....प्राचीन संस्कृति और अध्यात्म का आधुनिकता से सामंजस्य करते हुए अध्ययन, मानवीय संबंधों के भावनात्मक और विवेकपूर्ण पहलुओं का संतुलन, समाज सेवा के myths और वास्तविकताओं का विश्लेषण. राधिका का मन अधिकाधिक कुमार सर के आसपास रहने का होता. उसने उनकी पुस्तकों का संपादन करने का कार्य भर भी स्वयं पर ले लिया. यदा कदा कुमार साहब के अस्वस्थ होने पर उनकी देखभाल करने में उसको बहुत सुकून मिलता. ना जाने क्या क्या कल्पनाएँ खुद को कुमार साहब से जोड़ कर करने लगती.....मानो श्यामपट्ट पर लिखती और मिटा देती.....इस लिखने और मिटाने में भी कितना अनिर्वचनीय सुख मिलता राधिका को.
२००९ के राष्ट्रपति पुरुस्कारों में राधिकाबेन को छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए सफलता पूर्वक शिक्षा, रोज़गार, नशामुक्ति, सांस्कृतिक सुरक्षा इत्यादि कार्यक्रमों में असाधारण उपलब्धियों के लिए चुना गया था. राधिका रविशंकर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र कि प्रोफ़ेसर भी लग गयी थी और रायपुर को केंद्र बना नाना प्रकार की जनोपयोगी गतिविधियों में स्वयं को लगाये हुए थी.
राधिका ने एक बार फिर सेलफोन कि जानिब मुस्कुरा कर देखा मानो कुमार साहब को मुखातिब हो रही हो. वह कुर्सी से उठी और ड्राईवर को कहा कि गाड़ी निकाले, विश्वविद्यालय जाना है.




Saturday, September 19, 2009

दुष्प्रलाप........./Dushpralap.......

1)
गज की
संपुष्ट देह...
राजसी चाल
देख
भूंकते है
स्वान,
लख
दृश्य यह
कदापि
थूकते नहीं
इन्सान...........

Gaj ki
Sampusht deh
Rajasi Chaal
Dekh
Bhunkte hain
Swan,
Lakh
Drishya yah
Kadapi
Thookte nahin
Insaan..........

2)
घट नहीं सकता
सन्मान गज का
स्वानों के कुप्रलाप से,
क्यों चिंतित होता है मन
दुर्जनों के दुष्प्रलाप से.

Ghat nahin sakta
Sanmaan gaj ka
Swanon ke kupralap se,
Kyon chintit hota hai man
Durjanon ke duspralap se.......

Friday, September 18, 2009

अवतार........./Avtaar.........

असत्य को मिटा
सत्य को किया
स्थापित
हुए हैं ऐसे
अपने
कई
'अवतार'................

अफ़सोस !
नाम पर उनके
ठगी
प्रपंच
अन्धविश्वाश
बैर
विरोध की
रचना कर रहा
मूढ़
संसार.......

Asatya ko mita
Satya ko kiya
Sthapit
Hue hain aise
Apne
Kayi
Avtaar.........

Afsos !
Naam par unke
Thagi
Prapanch
Andhvishvas
Bair
Virodh ki
Rachna kar raha
Moodh
Sansaar.....

Wednesday, September 16, 2009

एक नसीहत सुबहा की/ Ae Naseehat Subaha Ki....

देख कर
उजास मेरा
गिरा दिया क्यों
होकर बेफिक्र
दीये को
कचरे की पेटी में,
बना कर
बेगाना........

Aek Nasihat Subaha Ki
Dekh kar
Ujas mera
Gira diya kyon
Ho kar befikr
Diye ko
Kachre kee peti men
Bana kar
Begana............

अरे नादाँ !
अँधेरा तो
किया करता है
पीछा हमेशा
उगते सूरज का,
यह तो है
झगड़ा रोज़मर्रा का,
नामुमकिन है
इसको मिटाना
अंजाम है यही
यही है
ठिकाना.........

Are Nadan !
Andhera to
Kiya karta hai
Peechha hamesha
Ugate suraj ka,
Yah to hai jhagda
Rozmarra ka
Namumkin hai
Isko mitana
Anzam hai yahi
Yahi hai
Theekana.......

चाहते हो
गर खैर
भोली नज़र की,
जोड़ दो उसको
एहसासों से
तजुर्बों से
जो दे रहा है
तुझको
ज़माना................

Chahte ho
Gar khair
Bholi nazar ki,
Jod do usko
Ehsasosn se
Tuzurbon se
Jo de raha hai
Tujhko
Jamana.......

शब्द और अर्थ / Shabd Aur Arth.......

सुन गर्जन
मेघों का
नाहर क्रोधित
करे निनाद,
ताने छतरी
नृत्य करे है
हर्षित हर्षित
मोर.............

शब्द एक
शब्दार्थ भिन्न,
गृहण करे
कुछ और
कोई और ..........

Sun garjan
Meghon ka
Nahar krodhit
kare ninaad,
Taane chhatri
Nritya kare hai
Harshit harshit
Mor...........

Shabd aek
Shabdarth bhinn
Grahan kare
Kuchh aur............
Koyi aur...........

बात बात का फर्क......

राजस्थान से हमारे कुछ रिश्तेदार हैदराबाद आये हुए हैं. उनमें एक ठाकुर फतह खान साहब हैं और उनके साथ में आये हैं चौधरी कुशला राम जी. दोनों ही धरम भाई बने हुए हैं, याने दोस्त हैं. भाईपे की यह परंपरा पीढियों से चली आ रही है. ब्याह,निकाह,जनम, जनाजा, सभी कामों में दोनों परिवार ऐसे शिरकत करतें हैं मानो एक ही हों. मानो क्या बस एक ही हैं. आज कल रात में गप्पों कि महफिल जमती है, राजस्थान के किस्से, कहावतें, नात, भजन, हंसी मजाक ना जाने क्या क्या बातें होती है, घर के बुजुर्ग हम से ज्यादा रूचि लेते हैं, मगर हमें भी मरुधर के एहसास सुख देते हैं. वहां से आये बुजुर्गवारों के पास तरह तरह के किस्सों और घटनाक्रमों की बातों का अकूत खजाना है......दोनों ही उम्रदराज़ हैं, ज़िन्दगी की रोज़मर्रा की ज़रूरतों से परे.....कुशलाराम जी भी रोजा रख रहे हैं, इस बार ही नहीं बरसों से. ठाकुर साहब भी सुना है महा शिवरात्रि का व्रत रखतें हैं. कल उन्होंने एक गज़ब किस्सा सुनाया जिसे आप से शेयर करना चाहूंगी.

कुछ बातें आपको किस्सा शुरू करने से पहिले बता देती हूँ ताकि आप को किस्से का ज्यादा लुत्फ़ मिल सके. राजस्थान के आम गाँव में हिन्दू, मुस्लिम और जैन बहुत ही प्रेम से रहते हैं. हिन्दुओं में ब्राहमण, राजपूत, जाट, सुनार, माली, बनिए आदि और अनुसूचित जाति के लोग होतें हैं. मुसलमानों में कायमखानी/मोहिल/भाटी/राठौर आदि राजपूत मुस्लिम, छीपा(रंगरेज़), तेली, कसाई, मिरासी/ढाढी /मंगनियार ( musicians), बुनकर, बिसाती आदि होते हैं, कुछ मुल्ला मौलवी याने सयेद/शेख भी. कुल मिलाकर सब लोग आपसी प्रेम में रहते हैं. जो आज़ादी से पहिले बहुत ज्यादा था......भाषा, तौर तरीके काफी कुछ मिलते हैं, थोडा बहुत पोशाक में फर्क होता है मगर सब बातों को सोचा जाय तो लम्बा चौडा फर्क नहीं महसूस होगा. मुसलमानों में मृत्यु के बाद चालीसा सींचा जाता है, याने कब्र कि हर सुबह विजिट करते हैं और जल छिड़कते हैं. जरख एक जंगली जानवर होता है, जो रोही (जंगल) में रहता है, पालतू खाजरू (भेड़ बकरी आदि ) को उठा ले जाता है.
सफी तेली के बाप का इन्तेकाल हो गया. ज़नाजे में सब शामिल हुए. वालिद्सहिब के पार्थिव शरीर को धार्मिक संस्कारों के साथ गाँव के काजी (मौलवी) की हाजिरी में खेतों के बीच बने कब्रस्तान में दफना दिया गया था. सफी रोज़ सबेरे चालीसा सींचने जाता था.चोमासा (बरसात के चार महीने) था. पास ही में नोला राम जाट अपने खेतों में दिन रात काम करता था. एक दिन सफी मियां देखते हैं कि कब्र खुदी पड़ी है, और वालिद साहब कि डेड बोडी नदारद है. नोला राम ने कहा, "मैं धोरे( टीले) पर खडा था, देखा कि एक जरख लाश को उठा कर भागे जा रहा है, मैं दौड़ा भी, मगर जरख हाथ नहीं आया."
सफी मियाँ बात को सहज ले, उस से पहिले ही काजी साहब जो साथ में थे लगे कहने, "चौधरी तौबा तौबा, मरहूम कासिम साहब बहुत ही सच्चे इंसान थे, ईमान वाले, अरे उन्हें तो फ़रिश्ता ले गया है, तुम बकवास करते हो, जरख कहाँ से आएगा यहाँ."

बात अच्छी थी और इज्ज़त बढानेवाली थी सफी मियां के मन को भी भा गयी और काजी साहब ने भी कोई 'future prospects' (भेंट/जगात/खैरात) के अंजाम होने की संभावनाओं को घटना में देख लिया था.
अब चौधरी नोला राम ठहरे स्पष्टवादी, भिड गये, काजी साहब से, लगे कहने, "जरख ही था जी, मैंने अपनी आँखों से देखा है, सफी भाई को ठगने का आपका मंसूबा है काजीजी, कुछ तो भगवान से--- खुदा से डरिये."
मौलवी ने बहुत अच्छे से सफी की ब्रेन वाश कर दी थी इस बीच, सफी भी जोर देकर कहने लगा--" काजीजी ठीक ही कहते हैं, अब्बा मरहूम बहुत ही नेक इंसान थे, फ़रिश्ता उन्हें जन्नत को ले गया."

अब एक ही बात के दो निर्वचन होने लगे, नोला राम और सफी में जिद-बाद होने लगा, काजी दूर रह कर तमाशा देखने लगा. इतने में सेठ घेवर चन्दजी छाजेड (जैन ओसवाल बनिया ) और सेठ किशन लाल जी राठी (हिन्दू बनिया) वहीँ दिशा-मैदान (सुबह का नित्यक्रम) निपटा कर आ गये थे . पूसा ढाढी, इब्राहीम छीपा, नाथू ब्राहमण, नसीबन दादी बिसातन सब जमा हो गये थे . वाकये को सबने सुना. सारे लोग आश्वस्त थे की काजीजी अपना खेल खेल रहे हैं, और आने वाले वक़्त में लगातार आमदनी का जरिया बना ने जा रहे हैं, मगर बोले कौन. भावनातमक बात जो थी. सफी के पिताजी अभी अभी गुज़रे हैं, वह दुखी है. बात बढ़ गयी तो ना जाने कहाँ तलक जायेगी. बात ठंडी हो जाये तब सफी को समझाया जा सकेगा. नसीबन दादी समझदार थी, उसने सोचा कि इस विवाद का खात्मा किसी तरह यहीं कर दिया जाय, फिर अकेले में सफी और उसकी बीवी नुसरत को समझाया जायेगा.

"घेवरजी-किशनजी आप समझदार साहूकार है, सारी कौमें आपको इज्ज़त देती है....आप बताएं कि क्या कहा जाय......कैसे इस बात का निस्तार किया जाय." नसीबन बोली और शायद कुछ इशारा भी किया.

सेठ लोगों ने कहा--- "भाईयों, बैठो, मरहूम कासिम साहब का गुणगान करें, सफी जैसा बेटा कहाँ मिलता है, खूब सेवा कि उसने अपने अब्बा हुज़ूर की. नुसरत भी कितनी अच्छी बहु, कासिम भाई को अपने बाप से बढ़कर मानती थी. मौलवी साहब भी बहुत विद्वान् है. झगड़ा किस बात का. नोला राम भी सही कह रहा है, और काजीजी भी. सुना है तुम ने :

बात बात रो आंतरो, बात बात रो फरक !
थे कहो फरिसतो म्हे कहवां जरख. !!

(बात बात का अंतर होता है, बात बात का फर्क होता है. आप जिसे फ़रिश्ता कहते हैं उसी को हम जरख कहते हैं. ......याने फ़रिश्ता जरख का रूप धरकर आया था.)
चलो भगवान दिवंगत आत्मा को शांति दे. सफी तुम उनके सब काम अच्छे से करो और काजीजी हम लोग आपके घर गेंहू की बोरी, चीनी का कट्टा, घी का गुन्वलिया भिजवा देते हैं. कासिम मियां हमारे दोस्त थे, सफी हमारे बेटे के समान है, इस से कुछ खर्चा ना कराएँ."

काजी भी देखा बहुत कुछ मिल गया, बात बढेगी तो यह भी नहीं मिलेगा, और सफी भड़क गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे. बोला, "ऐसा मंजर कभी कभी देखने को मिलता है, हम सब को खामोश रहना है, कब्र को ठीक से बंद कर दिया जाय, किसी ना किसी सूरत में मरहूम कासिम मियां यहाँ सोये हुए है, बस हम सब देख नहीं पा रहे हैं ."

आम सहमति बन गयी थी. सभी असलियत को समझ रहे थे. इस तरह समझदारी से एक बेबुनियाद विवाद का हल निकाला गया था.


अक्षर नवीन/.Akshar Naveen.................

श्यामपट्ट
एवम्
खड़िया हैं
निमित मात्र,
जान लो
समझ लो
चाहे
इन पर लिखे
लेखों को.........

नयनों !
करना है यदि
अध्ययन तुम्हे
नव विद्या का,
मिटाने होंगे
आलेख प्राचीन
लिखने हेतु
अक्षर नवीन.............

Shyampatt
Aevam
Khadiya Hai
Nimit Matra,
Jan lo
Samajh lo
In par likhe
Lekhon ko...........

Nayanon !
Karna hai yadi
Adhyayan tumhe
Nav vidya ka
Mitane honge
Aalekh Pracheen
Likhne hetu
Akshar naveen......

आगे पीछे............

# # #
स्वीकार लिया
पावों ने
आगे पीछे
चलना,
करने लगते
यदि वे
विवाद
बकवाद,
गति
बन जाती
एक सपना....

Sunday, September 13, 2009

ज्ञान............


जब परदा
पड़ता
ज्ञान पर
अविद्या लेती
आकार
इसी स्थिति को
नाम हम
देते हैं
अंहकार.......


उत्पन्न
होतें
मानव
मन में
अविद्या के भाव
बन जाता
तद्प्रभाव से
विकारयुक्त*
स्वाभाव.......

*(राग,द्वेष, इर्ष्या,मोह, लोभ आच्छादित)

निर्दयी/ Nirdayi ?

दिए शत्रु के
ज़ख्म का
करता समय
भराव..............
कहता
वक़्त को
निर्दयी
कैसा मनुज
स्वभाव..........

diye shatru ke
zakhm ka
karta samay
bharav.....
kahta
waqt ko
nirdayi
kaisa manuj
swabhav......

सीमा निर्धारण.......

सीमा निर्धारण
आवश्यक
जब मन में
बसे विकार,
सीमा रहित
प्रत्यक्ष है
विशाल गगन
निर्विकार..............

Seema nirdharan
Aavashyak
Jab man men
Base vikaar,
Seema rahit
Pratyaksh hai
Vishaal gagan
Nirvikaar..............

Thursday, September 10, 2009

अपने पंख पसार....

# # #
देखा था
नीड़ बसी
चिड़ियाँ ने
गगन का
विस्तार,
पाकर उसको
निर्विकार,
चली थी
उड़ वो
अपने पंख
पसार....

स्वांग :आशु कविता........

इंसान जीने को
समझले गर स्वांग,
स्वांग में ले आए
हकीक़त जीने की
आने लगेगी खुशबू
हर पल
जीने के करीने की.........

खेल है ज़िन्दगी
कोई खेला इसे
हंस के होकर
ग़मों से परे,
सुनाये किसी ने
नाले चन्द
दर्द भरे,
लगायी मरहम किसी ने
किए हैं किसी ने घाव हरे.......

सलीका जीने का
सीखना है गर
दिल को जोड़ले तू रब से,
फूटेगी ख़ुद-बा-ख़ुद
तवस्सुम तेरे लब से,
ऐ अंधेरों में भटकते राही !
खड़ी है रोशनी
नवाजने को
तुझको कब से.......

Wednesday, September 9, 2009

अमृत/Amrit...........

विष
प्रत्क्ष्यतः
प्राप्य है
अमृत नहीं
दृष्टव्य है.......

अमृत कहाँ ?
अमृत कहाँ ?
थक गये
अज्ञानी
टटोल टटोल,
समझ पायें
ज्ञानी
मर्म को,
विष
अमृत का खोल.....

Vish
Pratakshyatah
prapya hai,
Amrit nahin
Drishtavya hai.......

Amrit kahan ?
Amrit kahan ?
Thak gaye agyani
Tatol tatol,
Smajh payen
Gyaani
Marm ko,
Vish
Amrit ka khol.......

Tuesday, September 8, 2009

मुल्ला की हाज़िर-जवाबी उर्फ़ गणित मुल्ला का

मुल्ला नसरुद्दीन भी अपने दोस्त प्रोफ़ेसर विनेश राजपूत की संगत में रह कर हाजिरजवाब हो गये. हर भूल का कोई ना कोई जस्टिफिकेशन मुल्ला निकाल ही लेते हैं.

अभी उस दिन की बात है. मुल्ला नसरुद्दीन का बाज़ार में किसी से झगड़ा हो गया. वह शख्स बड़ा नाराज़ था. उसने गुस्से में आ कर मुल्ला से कहा, "ऐसा झापड़ रसीद करूँगा की बत्तीसों दांत जमीन पर गिर जायेंगे. पूरी की पूरी बत्तीसी धूल चाटेगी."

मुल्ला को भी ताव आ गया. बहुत ही जोश-ओ-खरोश से बोला नसरुद्दीन, " अबे तू ने समझा क्या है, हम ने अगर कस कर एक झापडा मारा तो चौसठों बाहिर आ गिरेंगे." ( दो गुना दावा ठोंकना होता है ना.)

एक तीसरा आदमी,जरा ज्ञानी किस्म का, वहीँ खडा था. उसका ज्ञान वाला कीड़ा कुलकुलाने लगा. बहुत कोशिश कर के भी चुप नहीं रह पाया. ऐसे ज्ञानियों को जो मन में आया अगर नहीं बका जाये तो गैस हो जाती है, घुटन सी महसूस होने लगती है. उनको कुछ ऐसा लगता है की गेम हाथ से गया. हाँ तो जनाब 'तीसरे आदमी' मुल्ला के मुखातिब होकर बोले, " मियां बड़े एहमक हो, इंसान के कोई चौसठ दांत होतें हैं क्या ? तुम ने बायोलोजी में आदमी के शरीर की बनावट (anatomy) वाला सबक ठीक से नहीं सीखा, इतना तो खयाल करो इन्सान के बत्तीस दांत होते हैं चौसठ नहीं."

मुल्ला, विनेश सर का दोस्त.....पट्टे का खिलाडी. दाग दिया उसने, " अमां अपने दामन में झांक ! गणित में फ़ैल हुआ लगता है, अरे हमें तो पहिले ही से मालूम था कि तुम बीच में कूद पड़ोगे, इसलिए बत्तीस के दुने चौसठ, एक ही झापडा में दोनों के गिरा दूंगा."

(मुदिता दी : 'तीसरे आदमी' को गणित सिखानी है, आपको रेफर करूँ क्या ? हाँ अगर शागिर्द बहुत हो गये हों, काम बढ़ाना हो तो मुल्ला को रख लीजिये एकाध बैच दे दीजियेगा.....कितने ज़हीन हैं मुल्ला आप जानती ही है. )

आदमी अपनी मान्यताओं के लिए कारण खोजता जाता है, कारणों के थप्पे लगाये जाता है ताकि मान्यताएं टूट ना जाये, फूट ना जाये. कुछ ना कुछ जोड़-तोड़ बिठाए जाता है. आदमी से भूल हो जाये तो भी उसे जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करता, अपनी भूल के लिए भी कारण खोज लेता है, तर्क खोज लेता है...... भूल को स्वीकार करना साहस से ज्यादा एक प्रैक्टिकल बात है....जिस ने भूल को स्वीकार कर लिया उसके भूल रहित होने के चांस ज्यादा है. हाँ मुल्ला कि तरह के ज़हीन लोग अपनी मान्यताओं को कुछ इस तरह से मेन्टेन करते रहते हैं और गलतियों को जस्टिफाई भी कर लेते हैं, सिर्फ शोर्ट टर्म बेनेफिट के लिए. आखिर मैं उन्हें ही पछताना होता है : खुदा मिला ना विसाल-ए-सनम.

Monday, September 7, 2009

चाकी/Chaaki........

ना जाने क्यूँ
ऐ चाकी
इतरा रही है तू
पीस के
गरीब दानों को,
ना जाने किस सुर में
गूंजा रही है तू
अपने गानों को.......

घिस रहा है
तेरा भी तन मन
पछताएगी तू
जिस दिन
टांचा जायेगा
तेरा भी बदन.....

Na jane kyun
Aey Chaaki
Itra rahi hai tu
Pees ke
Gareeb daano ko,
Na jane kis sur men
Goonja rahi hai tu
Apne ganon ko....

Ghis raha hai
Tera bhi tan-man
Pachhtayegi tu
Jis din
Tancha jayega
Tera Bhi badan.......

(Inspired by a Rajasthani Wisdom)

ऐ महक !/Aey Mehaq !

शब्द ये तेरे,
दे सकते क्या
सत्य को अवलम्ब ?
दर्पण तेरा क्या
दर्शा पाता
अरूप का प्रतिबिम्ब ?

Shabd tere,
De sakte kya
Satya ko avalamb ?
Darpan tera kya
Darsha pata
Arup ka pratibimb ?

Swaang......

Insaan jeene ko
Samajhle gar swang
Aur swang men le aaye
Haqiqat jeene ki
Aane lage khushboo har pal
Jeene ke kareene ki.........

Khel hai zindagi
Koyi khela ise hans ke
Hokar gamon se pare
Aur sunaye kisi ne
Naale chand dard bhare
Kisi ne lagayi marham
Kisi ne kiye hain ghav hare.......

Saleeka jeene ka
Sikhna hai gar
Dil ko jodle tu rab se
Footegi khud-ba-khud
Tavssum tere lab se
Ae andheron men bhatkate rahi !
Khadi hai roshani
Nawazne ko kab se.......

Saturday, September 5, 2009

क्या देखते हो................

तरसती निगाहों में क्या देखते हो
बरसती घटाओं में क्या देखते हो

सुनना ओ समझना गवारा नहीं है
लरज़ती सदाओं में क्या देखते हो

दिल हुआ जानम पत्थर तुम्हारा
तड़फती इन आहों में क्या देखते हो.

चलना नहीं साथ तुम को गवारा
सरकती इन राहों में क्या देखते हो.

बहारों से तुम दुश्मनी कर रहे हो
मचलती फिजाओं में क्या देखते हो.

खामोशी आवाज़ दे रही है खुदा को
गरज़ती दुआओं में क्या देखते हो.

'महक' से यह महफिल रोशन हुई है
थिरकती शम्माओं को क्या देखते हो.

बावरी उमर/Bawri Umar......

कंघी से
दांत
और
आईने से
नज़र,
लेकर
उधार
इतराए
क्यों
बावरी
उमर.........?

Kanghi se
Daant
Aur
Aaine se
nazar,
Lekar
Udhaar
Itraye
Kyon
Bawari
Umar........?

मुरलीया/Muraliyaa........

काटते हैं
गिरा कर,
दाजते
दागते
छेदते हैं
गरम सलाखों से,
संभाल पाता है तब
अनहद के सुरों को
बन कर मुरलीया
यह थोथा बांस.....

Kaat.te hain
Gira kar,
Daajte
Daagte
Chhedten hain
Garam salakhon se,
Sambhaal pata hai tab
Anhad ke suron ko
Ban kar muraliyaa
Yah thotha bans........

Thursday, September 3, 2009

दमन / Daman.......

दबी थी जब
नन्ही सी
एक चींटी,
काटा खाया था
उसने,
होकर व्यथित
तुझ को..............

ऐ दोस्त !
मत कर दमन
निज सोचों का,
पीड़ित हो
डस ना ले,
सोच तेरे ही
तुझ को.............

Dabi thi jab
Nanhi si aek chinti,
Kat khaya tha
Usne,
Hokar vyathit
Tujhko............

Aey Dost !
Mat kar daman
Nij sochon ka,
Peedit ho
Dass na le,
Soch tere hi
Tujh ko..................

Wednesday, September 2, 2009

क्या करेगी ? /Kya Karegi ?

Nahin hai roshan
Antar-man
Shamma
Kya karegi ?

Boya nahin
Beej koyi
Barish
Kya karegi ?

Soya hai tu
Gafalat men
paigam-e-aaftab liye
Kiran
Kya karegi

Jad ko seenchne ki
Kar mashakkat
Aey Dost !
Pattiyon pe giri
Fuhaar
Kya karegi ?

नहीं है रोशन
अंतर-मन,
शम्मा
क्या करेगी ?

बोया नहीं है
बीज कोई,
बारिश
क्या करेगी ?

सोया है तू
गफलत में,
पैगाम-ए-आफ़ताब लिए
किरण
क्या करेगी ?

जड़ को सींचने की
कर मशक्कत
ऐ दोस्त !
पत्तियों पे गिरी
फुहार
क्या करेगी ?



Tuesday, September 1, 2009

आंसुओं के फूल............

दर्द के
अनमोल दरख्त पर
नहीं होते सिर्फ
कसकों के शूल
करुणा के पलों में
विरह की रुत में
उन्माद के क्षणों में
बरसते हैं
उस से
आंसुओं के फूल...........

Dard ke
Anmol darakht par
Nahin hote sirf
Kasakon ke shool
Karuna ke palon men
Virah ki rut men
Unmad ke kshanon men
Barste hain
Us se
Aansuon ke phool..........

सबसे बड़ा भय/Sab Se Bada Bhay..........

फिरता है जंगल में शेर
मंडराता है नभ में बाज़
रेंगता है राह में विषधर नाग
भय सब से बड़ा है भूख
जो नहीं बैठने देता
पशु को बाड़े में
पक्षी को नीड़ में
पाँव को घर में....................

Firta hai jangal men sher
Mandarata hai nabh men baaz
Rengta hai raah men vishdhar naag
Bhay sabse bada hai bhookh
Jo nahin baithne deta
Pashu ko baade men
Pakshi ko need men
Paon ko ghar men............

Sunday, August 30, 2009

रस्सी...

# # #
रहने देता है
कौन सीधा
रस्सी बेचारी को ?
इख्तियार-ए-गैर में
हुआ करती है
वह तो,
देकर गाँठ
उसको
अपने मन की,
हो बेफिक्र
किनारे
हो जाता है
खुदपरस्त
इंसान....

Saturday, August 29, 2009

अपच/Apach........

परोसो मत
करके
मनुहार
अपने
सच्चे सीधे
विचार......

हो जायेंगे
अपच से
गरल
तुम्हारे
अमृत सम
ये सोच
सरल......

Paroso mat
Karke
Manuhaar
Apne
Sacche seedhe
Vichaar.............

Ho jayenge
Apach se
Garal
Tumhare
Amrit sam
ye soch
Saral...............

Friday, August 28, 2009

मुल्ला बना मसीहा.......

मुल्ला इतने सेकुलर कि कभी अपने मज़हब और दूसरों के मज़हब में फर्क नहीं करते क्योंकि सब फिरकों से ऊपर है एक मज़हब जिसे दुनिया का हर इंसान किसी ना किसी शक्ल में अख्तियार करता है, वह है खुदगर्जी उर्फ़ स्वार्थपरता. इस धर्म में मानव अपना उल्लू सीधा करता है.....इस मज़हब का पहला और आखरी उसूल है "हमारा क्या ? हम को क्या ?" किसी भी घटना पर यह उसूल लागू करके इस मज़हब को मानने वाले अपना रास्ता तय करते हैं. मसलन कोई दुखी मजलूम है उसकी मदद करनी है.....ऐसे में बन्दा सवाल उठाएगा हमारा क्या ? याने हमें क्या फायदा होने वाला है ( देवियों और सज्जनों-इह लोक में परलोक में नहीं)-हमारा क्या ? अगर जवाब 'ना' में है तो 'हमको क्या ?' बिलकुल इनेक्सन वाला भाव..खिसक जाना पतली गली से. और अगर लगे कुछ बनेगा...तो पूछिये मत--तब तो भली बनी. जुट जायेंगे मेरे यार वसुधेव कुटुम्बकम का सिद्धांत अपनाते हुए.

विनेश सर ने मुल्ला के चंदे का धंधा चलाने, नंदू पंडत बन जाने का किस्सा आप से अनधिकृत रूप से शेयर किया था, आज मैं आपको बताने जा रही हूँ, मुल्ला का एक और कारनामा. यह स्पेशल खोज है, आपके लिए एक्सक्लूसिव रिपोर्ट. टेलीविजन वालों के हाथ लग जाती तो ना जाने कई मनोरंजन भारती, शम्स ताहिर खान, संजय बरगट्टा, दीपक चोरसिया, निधि कुलपति, सिक्ता देव इत्यादि दिन भर आपका ही नहीं अखिल भारत का साथ निबाहते मगर यह तो सिर्फ आपके लिए हैं.....

नंदू पंडत का रोल मुल्ला के लिए अच्छी खासी ट्रेनिंग का जरिया भी बना. अन्धविश्वासी लोगों का दोहन कैसे किया जाय धर्म के नाम पर मुल्ला ने और अच्छे से जन-समझ लिया. आप तो जानते ही हैं कि साधू सन्यासी, चोर और ठग एक स्थान पर जम कर नहीं रह सकते. मुल्ला को बोरियत होने लगी थी देदासर गाँव से....शायद वहां कुछ करतब भी मुल्ला के ज़ाहिर हो गये थे.....एक दिन आफताब के जलवा होने से पहिले मुल्ला खिसक गये वहां से.......पहुँच गये एक नए गाँव में....वहां देखा कि बड़े शामियाने लगे हुए हैं....माइक पर कभी मौलवी की तक़रीर सुनाई दे रही थी--जैसे कोई किसी को लताड़ रहा हो.....कुछ अन्तराल के बाद कवाल्ली के लटके सुनाई दे रहे थे----'तू ही है..बस तू ही.....मैं तेरा गुलाम मौला......इत्यादि. देखा एक पुरानी सी मजार है, उस पर मेला लगा हुआ है....हरे काले पैरहन में भागम भाग कर रहे हैं मौलवी लोग......मोर पंखियाँ दिखाई दे रही है......लोबान (धूप) की का धुआं एक पाक सी खुशबू चारों जानिब बखेर रहा है. खोंचेवाले, कबाब वाले, शरबत वाले, मिठाई -सैवय्याँ वाले और मुरीदों कि भीड़ बड़ा प्यारा सा मंज़र था. मुल्ला ने सोचा कि मंज़ल आ गयी....कम से कम पड़ाव तो ज़रूर. मुल्ला ने कुछ वक़्त बिताया वहां के हालातों को समझने में और मुल्ला हो गया था वेल कन्वेर्सेंट वहां की हिस्ट्री-ज्योग्राफी, फिजिक्स-मेथ्स-केमिस्ट्री, बायोलोजी भी.
अचानक मजार की जानिब से बड़े मौलवी कि आवाज़ आई, "उस अंधे को मेरे करीब लाओ." नसरुद्दीन को धकेलते हुए, कई जूनियर मौलवी अँधेरी कोटड़ी में घूस गये और निकाल कर ले आये एक फटेहाल अंधे को. अँधा अपने बेतरतीब से हाथों से झाडू लगाने जैसी हरक़त कर रहा था, पत्थरों से लड़खडाता गिरता पड़ता आगे बढ़ रहा था.

अँधा बड़े मौलवी के करीब पहुंचा, उसके कदमों में मुंह के बल गिर पड़ा. उसने अपने ओंठों से मजार की टूटी फूटी सीढियों को चूमा. बड़े मौलवी ने उसके सिर पर हाथ फेरा. अँधा फौरन चंगा हो गया.
उसने घोषणा कि, "लिल्लाह मेरी आँखों कि रोशनी लौट आई. मैं देख सकता हूँ.....मैं देख सकता हूँ."
कंपति हुई आवाज़ में वह चिल्लाने लगा, " ऐ बहाउद्दीन वली मुझे दिखाई देने लगा. देख सकता हूँ मैं...कैसा चमत्कार हुआ है. वाह !"

लोगों की भीड़ उसके पास इकठ्ठा हो गयी. लोग उसे पूछने लगे, "बताओ मैंने किस रंग कि कमीज़ पहनी है ?." भूतपूर्व अँधा कहता, "बैंगनी." कोई पूछता, "मैंने कौन सा हाथ उठाया ?." ' एक्स ' कहता, "बायाँ." हरेक सवाल का हमारा ' एक्स ' बहुत ही सटीक जवाब दे रहा था.
सबको यकीन हो आया कि अँधा ठीक हो गया, उसे दिखने लगा. तभी मौलवियों कि फौज ताम्बे के थाल लिए उस भीड़ में घुस आई और और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे, "ऐ सच्चे मुसलमानों ! तुमने अपनी आँखों से अभी अभी एक करिश्मा देखा है, मस्जिदों कि देखभाल, यतीमखाने के खर्चों के लिए कुछ खैरात दो." सब से पहले एक अमीर ने नोटों का एक बण्डल थाल में डाल दिया, उसके बाद शुरू हो गये दरमियाने तबके के लोग, अफसर, नौकरी पेशा लोग...... खुले हाथों लोगों ने रुपये पैसे थाल में डाले. तीन चार बार थाल बदलने कि मशक्कत मौलवियों को करनी पड़ी....धीरे धीरे खैरात में थोडी सुस्ती आ गयी. एक लंगड़े को कोठारी से बाहिर निकाल कर लाया गया. उसने भी मजार कि सीढियों को चूमा और बैसाखियाँ फैंक दी. लंगड़ा चल रहा था टांगे उठा कर. मौलवी लोग फिर थाल लेकर भीड़ में घुस गये और हांक लगाने लगे, " ऐ मुसलामानों ! तुम ने अभी अभी एक और करिश्मा देखा. दिल खोल कर खैरात करो...अल्लाह के करम तुम्हे हासिल होंगे." मुल्ला नसरुद्दीन हर बात पर अपनी गहरी नज़र राखे हुए था....उसने भी हुंकार लगायी , " ऐ मौलवियों ! तुम इसे करिश्मा कहते हो और मुझ से खैरात मांगते हो....पहली बात तो यह है कि खैरात देने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी तक नहीं है. और दूसरी बात यह है कि मैं खुद एक पहुंचा हुआ फकीर हूँ और इस से भी बढ़ कर करिश्मा मैं दिखा सकता हूँ." मौलवियों ने समवेत स्वर में उद्घोष किया, " तू फकीर है ? ऐ मुसलमानों, इसकी कोई बात मत मानो. इसकी जुबान से शैतान बोल रहा है."
नसरुद्दीन भीड़ कि तरफ मुड़ा. लगा तकरीरी अंदाज़ में बोलने, " ऐ मुसलमानों ! इन मौलवियों को यकीन नहीं है कि मैं करिश्मा दिखा सकता हूँ. मैंने जो कुछ कहा है, उसका सबूत दूंगा. इस छप्पर वाली कोठरी में जो अंधे, लंगडे, बीमार बिस्तर पर गिरे पड़ें हैं, मैं इन सब को बिना हाथ से छुए ठीक कर सकता हूँ. मैं सिर्फ कुछ लफ्ज़ कहूँगा और ये लोग अपनी-अपनी बीमारियों से छुटकारा पा जायेंगे. खुद ही उठ कर इतनी तेजी से भागेंगे कि तेज़ अरबी घोड़े भी इनको नहीं पकड़ पाएंगे."

छप्पर वाली कोठरी की दीवाल पतली और कच्ची थी. जगह जगह से दीवारें चटक रही थी. नसरुद्दीन ने एक ऐसी जगह खोज निकाली थी, जहाँ दीवाल में दरारें कुछ ज्यादा थी. मुल्ला नसरुद्दीन था खूब खाया खेला. उसने अपने कंधे से वहीँ धक्का दिया. थोड़ी सी मिटटी गिर गयी. मिटटी गिरने की थोडी सी सरसराहट हुई, मुल्ला ने फिर एक धक्का दिया..... जरा एक धक्का जोर से वाला. इस बार मिटटी का एक बड़ा सा लौंदा जोरदार आवाज़ के साथ अन्दर जा गिरा, दीवार के उस बड़े छेद से अँधेरे की तरफ से गर्द उड़ती दिखाई दी. मौलवी लोग मुल्ला कि नौटंकी देख रहे थे, मगर कुछ भी बोल नहीं पा रहे थे. नसरुद्दीन कोठरी में सोये घबराए हुए अपाहिजों को चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था, " जलजला आ गया, भागो......भागो......." और उसने दीवाल को एक धक्का और मार दिया. फिर मिटटी भरभराते हुए गिरने लगी.

कोठरी के बाशिंदे बिलकुल ठीक हो गये थे और अपनी जान बचाने भाग रहे थे......'कोठरी का सारा हुजूम' मौलवियों का किया धरा था. किसीको अँधा किसी को लंगड़ा बना कर बैठ दिया था...जरूरत के मुताबिक एक एक को बुला कर चमत्कार दिखाया जा रहा था. यहाँ तो थोक में मुल्ला ने चमत्कार दिखा दिया था. मौलवी भी इम्प्रेस हो कर, अल्लाह के गुण गान कर रहे थे, मुल्ला कि जय-जयकार कर रहे थे. और पब्लिक सचमुच चकित थी कि "जंकी किरपा पंगु गिरी लांघे, अंधे को है देत दिखाई."
मुल्ला छा गया था.....

आगे मौलवियों और मुल्ला में एमिकेबल हो गया था. खैरात से होने वली आमदनी से एक नीयत हिस्सा मुल्ला को मिलने लगा था....मुल्ला एक पहुंचे हुए फकीर के तौर पर मशहूर हो गया था और अपनी प्रोफेशनल प्रक्टिस, याने डोरा-जंतर-ताबीज वगैरह की, वहीँ पर तकिया बना कर जमा चुका था.
आप बाकी बातों की बखूबी कल्पना कर सकते हैं........



सृजन के बीज मंत्र......

उकेर सकते हो
प्रस्तर पर चित्र
खीच कर
आड़ी तिरछी
गोल-मोल लकीरें
किन्तु
होंगे नहीं वो जीवंत
बिना रंगों की सृष्टी के.......

कर सकते हो
एकत्रित
शब्दों की भीड़
किन्तु
नहीं बनेगी कविता
बिना अन्तरंग की दृष्टी के ..........

मिला सकते हो
तुक से तुक
किन्तु
नहीं रच सकते
मधुर गीत
बिना उमड़े
ह्रदय में संगीत की वृष्टि के........

Thursday, August 27, 2009

अनायास/Anaayas.........

स्वर्णिम
चिंगारी
बीज है
अग्नि-पुरुष का,
स्पर्श हुआ..........
आलिंगन हुआ ......
हुई थी
अनायास
प्रकाश कि उत्पति
किन्तु
अनजाने में
अनायास
गर्वोन्मत्त हो गयी थी
व्यर्थ में
भोलीभाली
भ्रमित सी
बाती.........................

Swaranim
Chingaari
Beej hai
Agni-purush ka,
Sparsh hua.......
Aalingan hua......
Hui thi
Anaayas
Prakash kee utpati
Kintu
Anjane men
Anayas
Garvanoamatt ho gayi thi
Vyarth men
Bholibhali
Bhramit si
Baati.......................

छेद ज़िन्दगी के/Chhed Zindagi Ke......

ज़िन्दगी के
चन्द छेदों का
मलाल क्यों ????????
बिंधा हुआ गौहर
जगह पाता है
ताज में
बिन बिंधा मोती
पिस जाता है
खरल में............

(बिना बिंधे याने बिना छेद वाले मोती/गौहर को दवा बनाने के लिए हकीम लोग खरल में पीसते हैं.)

Zindagi ke
Chand chhedon ka
Malaal kyon.........??????
Bindha hua gauhar
Jagah pata hai
Taz men
Bin bindha moti
Pis jata hai
Kharal men.....

(Bina bindhe yane bina chhed wale moti'gauhar ko dava banane ke liye haqim log kharal men peesten hain.)

क़र्ज़/Karz..........

पढ़ कर
चन्द किताबें
ले लेतें हैं हम क़र्ज़
बिन परखी
बिन समझी
अक्ल का
क्यों ना बना कर
खाद-ओ-बीज
उनको
खिलाएं चमन हम
अपने अंतर की
शक्ल का .........

Padh kar
Chand kitaben
Le lete hain hum karz
Bin parakhi
Bin samajhi
Akl ka
Kyon na banaa kar
Khad-o-beej
Unko
Khilayen chaman hum
Apne antar ki
Shakl ka.........

Monday, August 24, 2009

छेह और नेह/Chheh aur Neh.....

घड़ा था फूटा
दिया था बुझा
चल दिए थे
तुंरत
जल और अगन ........

फूल था झरा
सपना था टूटा
रह गये थे
किन्तु
महक और मन...........

Ghada tha phoota
Diyaa tha bujhaa
Chal diye the
Turant
Jal aur Agan......

Phool tha jharaa
Sapana tha toota
Rah gaye the
Kintu
Mehaq aur man....

Sunday, August 23, 2009

सांझ ढले.......

(आज nano नहीं, फॉर ए चेंज एक नगमा पेश कर रही हूँ. मात्राओं में थोडी सी खामी है....सुझाव हों तो दीजियेगा)


सांझ ढले बिना दस्तक इस घर में कोई आया है
दिल की राहों से है गुज़रा, मेरी सांसों में समाया है. !!

उसके आने से मन तन में मेरे झंकार सी उठी है
बिन साजो आवाज़ के, कैसा संगीत उभर आया है. !! १ !!

हवाएं उसको छूकर छुए जा रही है मेरे तन को
पवन में असीर ठंडक ने, रों रों मेरा जलाया है. !! २!!

खोयी हुई थी मैं अब तक अनजाने से अंधेरों में
उसके कदमों की आहट से, उजाला भर आया है. !! ३ !!

खुशियाँ ही खुशियाँ, बिखरी हरसू मेरे जहाँ में
गुलाब मेरी बगिया का, खिजां में खिल आया है. !! ४ !!

तोड़ी है कसमे हमने रस्मों से हुआ किनारा है
तेरे आने से हर लम्हा, फ़रिश्ता बन आया है. !! ५ !!

चहकी है मेरी हर जुम्बिश एक नयी सी छुवन से
देख कर नया रूप मेरा, आज दर्पण भी शर्माया है. !! ६ !!

मुल्ला ने जर्मनी में साहित्य सभा में शिरकत की

कबूतरबाजी के किस्से आप सब ने हाल ही में मीडिया में देखे/पढ़े होंगे. कबूतरबाजी लखनवी नवाबों वाली नहीं, क्योंकि जब से जानवरों के लिए इतनी हमदर्दी पैदा हो गयी कि....कबूतरों ने भी खिलाफत शुरू कर दी, इसलिए इन्सान को ही कबूतर का नाम दिया जाने लगा....बिना वीसा पासपोर्ट के या और किसी बहाने, मसलन म्यूजिक/डांस शो वगैरह, बाहिर मुल्कों में लोगों की तस्करी करने को आजकल कबूतरबाजी कहने लगे हैं...प्रोफ़ेसर विनेश सर साहित्य के क्षेत्र में अन्तराष्ट्रीय स्तर के तमाशेबज़ हैं. ऐसी सेटिंग कर रखी है कि कभी किसी अदबी कांफ्रेंस में, तो कभी सांस्कृतिक या अध्यात्मिक बैठक में, कभी मैनेजमेंट सम्बन्धी विषयों पर बोलने के लिए सर बाहर मुल्क जाते रहतें हैं....छुट्टियाँ की छुट्टियाँ, मौज मस्ती भी, मेल मुलाकात भी और रौकडे भी. गोटी फिट करने के नुस्खे कोई सर से सीखे
आप सब जानते ही हैं कि जितना बड़ा विद्वान् होता है उसकी दोस्ती उतने ही बड़े मूर्ख से होती है, जितना बड़ा ईमानदार इन्सान होता है उसके दरबार में सबसे बड़ा बेईमान पाया जाता है....शायद विपरीतता का आकर्षण का कारण रहा हो. विनेश सर जैसा कि आप जानते हैं पढ़े लिखे शालीन मानव और उनके दोस्त मुल्ला ज़हीन मगर बेवकूफ, भावुक मगर दुष्ट....यारों के यार मगर मतलब परस्त. मगर ना जाने क्या जादू किया है मुल्ला ने सर पर भी कि आजकल मुल्ला पर तुरत लिखतें हैं, दीवानी सीरीज़ बेक सीट ले चुकी है. अभी पिछले दिनों सर ने कहा था कि उन्हें "बोबी डार्लिंग कि ब्रिगेड में शामिल होना पड़ेगा." शायद संगीता आपा के पोस्ट पर लिखा था, भाई बहन कि बातें हैं, जाने दीजिये. लेकिन जहाँ आग होती है वहीँ धुआं होता है...और जहाँ धुआं होता है वहां बर्फ नहीं आग ही होती है. कहने का मतलब यह है कि हमें आश्चर्य है कि विनेश सर मुल्ला कि बात क्यों नहीं टाल पाते. मुल्ला ने उनके आहारे कैसे कबूतर बाजी कि इसका किस्सा आपको बताऊंगी तो आप भी कुछ केयास लगाने लगेंगे. नो ओफेंस, मगर सोच्स्थान तो सभी का सक्रिय हो ही जाता है.
हुआ यूँ कि एक दफा जर्मनी में वहां के प्रबुद्ध लोगों ने भारतीय और जर्मन काव्य में सामंजस्य की चर्चा के लिए एक सम्मलेन का आयोजन किया. जहाँ विनेश सर को भी बुलाया गया....शायद शफक कम्युनिटी से भी दो विदुषी कवियत्रियों को विनेश सर कि अनुशंसा पर आमंत्रित किया गया था.....कुल मिला कर तीन लोगों को बुलाया गया था. विनेश सर ने संगीता आपा और मुदिताजी/मुझ में से कोई एक को मेरिट के आधार पर इस अन्तराष्ट्रीय सम्मलेन में ले जाना चाहा था. मगर मुल्ला आ गये आड़े. क्या घुट्टी पिलाई सर को कि उनके सोच बदल गये.....

मुल्ला बोला : "अमां! खयाल करो....मान लिया कि ये लोग अच्छा लिखती हैं मगर इन्हें कह मत देना, बुरा मान जाएँगी....तुम ठहरे छडे हालाँकि शरीफ हो.खुली सोचों वाले हो....इनका बहुत सम्मान करते हो....लेकिन दुनियादारी का लिहाज़ तो रखना ही पड़ेगा ना...." (मुल्ला पीक थूक कर चुप हो गये)...टुकुर टुकुर विनेश सर को घूरना शुरू कर दिया. विनेश सर- चुप !!! मुल्ला बोला: "पिछले दफा नायेदाजी भी कह रही थी पढ़ा लिखा होने से क्या है, विनेश बहुत सीधे दिल का है, मुल्ला खयाल रखना, यह मेरा देवर ही नहीं छोटा भाई है.. हमें कितनी बड़ी जिम्मेदारी दे दी है उन्होंने...फिर हम तुम्हारे दोस्त भी तो हैं मास्टर...हमें तो सब कुछ देखना पड़ेगा ना." तीर निशाने पर लगा था....सर नाना प्रकार के सोचों से घिर गये थे.
मुल्ला सौ घाघों का एक घाघ, उस ने सोचा ग्राउंड वर्क हो गया. लगा मिमियाने, " प्रोफ़ेसर, तुम को तो बस दूर के लोग दीखते हैं, पास बैठों की कोई क़द्र नहीं. अमां हमारी भी इच्छा है जरा जर्मनी घूम आने की. ऐसे तो ज़िन्दगी में कभी भी नहीं जा सकेंगे. तुम्हारे जैसा हमदम दोस्त मिला है....कितना दरियादिल है तुम....उंच नीच, जात पांत, मज़हब फिरका कुछ भी नहीं गिरा सकते तुम्हारी सोचों को...देखो ना कहाँ तुम कहाँ हम....क्या हुआ हम भी जमींदार खानदान के हैं मगर हमारा इतिहास तो तुम्हे बता ही चुके हैं. असली ठाकुर हो तुम तो....प्राण जाय पर बचन ना जाई.....कहा था ना उस दिन कि मुल्ला तुम्हारी ख़ुशी के लिए सब कुछ करूँगा. आज मौका आ गया है, अपने बचन पूरे करो, हम को भी अपने संग जर्मनी ले चलो....हमें तो अच्छा लगेगा ही तुम्हे भी हमारे जैसे दोस्त की सोहबत नसीब होगी."
टू कट इट शोर्ट, जैसे तैसे मुल्ला ने मास्टर को मन लिया कि उसे भी जर्मनी साथ ले जायेंगे. प्रोफ़ेसर बोला, "मुल्ला यह सम्मलेन भारतीय कवियों और जर्मन कवि गेटे के कार्यों में लक्षित साम्यता पर विवेचन करने के लिए है. मैं गेटे के कामों और हिन्दुस्तानी कवि जय शंकर प्रसाद पर पेपर प्रस्तुत करूँगा. तुम ग़ालिब और गेटे पर अपनी वार्ता पेश कर देना." मुल्ला बोला, " यार ग़ालिब चचा तो हमारे महबूब शायर है मगर यह गेटे जर्मन वाला तो हमारे लिए बिलकुल नया है." वैसे मुल्ला हर कोई शेर ग़ालिब के नाम से पढने के आदी हैं. विनेश सर बोले, "मुल्ला, काफी वक़्त है, तुम महक से या मुदिताजी से गेटे के बारे में जानकारी हासिल कर लेना. फिर मैं तो हूँ ना." मुल्ला लगा कहने, "घर की बात मास्टर बाहर नहीं जाये....जो करना है तुम ही कर दो.....लिख दो एक पेपर ग़ालिब और गेटे पर भी, हम रट्टा मार लेंगे और वहां उगल देंगे." यह बात ज्यादा प्रैक्टिकल थी. विनेश सर मान गये. मुल्ला हर मुश्किल को मौका समझनेवालों में है. संगीता आपा को खबर कर दी कि वोह, मास्टर और मुल्ला जर्मनी जा रहे हैं....संगीता आपा ने सोचा कि ऐसे जाहिल आदमी का साथ उचित नहीं, उन्होंने तवियत का बहाना बनाया और खिसक ली इस मनसूबे से.

मुल्ला के लिए यह समस्या नहीं अवसर था.
सरदार गुरबन्दर सिंह एक सेल्फ मेड इन्सान थे. अविभाजित पंजाब के किसी पिंड (गांव) की पैदाईश थी दारजी की. बाप वहां ताला चाभी वाले हुआ करते थे. बालक गुरबन्दर ने बाप से ताला चाभी के काम कि ट्रेनिंग ली थी. बंटवारा हुआ, यहाँ के लोग वहां और वहां के लोग यहाँ किसी तरह आये. गुर-बन्दर भी एक शरणार्थी के रूप में भटिंडा पहुंचे. अपने ताला चाभी के फन कि बदौलत चौधरी असरफ खान कि हवेली का ताला खोल कर काबिज़ हो गये. असरफ खान ना जाने क्या क्या ख्वाब लेकर उस पर गया था, और मुहाजिर बन कर रह गया...सुना है यहाँ का कारोबारी असरफ वहां बूट पोलिश करता था. हाँ तो हवेली पर कब्ज़ा किया, कई किरायेदार भी रख लिए.....वहां मोटर मेकेनिक का काम भी सरदार ने सीखा हुआ था, सो एक मोटर गराज भी खोल लिया. जोड़ तोड़ में माहिर अनपढ़ सरदार बस ठेकेदार बन गया, कोई २०० बस ट्रक सरदार के पास हो गये. सफ़ेद पायजामा कमीज पहनता...नीली पगडी लगाता....सरदार कि गिनती भटिंडा के इज्ज़तदार लोगों में होने लगी थी....सरदार हैदराबाद आता जाता रहता था....शायद किसी रिश्तेदार के यहाँ.....मुल्ला की दोस्ती रेल के डब्बे में हुई थी सरदार से और धीरे धीरे प्रगाढ़ हो गयी थी. सरदार ने मुल्ला से कहा था कि अपनी इज्ज़त में इजाफा करने के लिए उसे अगर बाहिर मुल्क जाने का चांस मिल जाये तो वाहे गुरु दी किरपा हो जाये....मुल्ला ने सरदार को फंसाया, उस से पहिले का कोई १० हज़ार का क़र्ज़ माफ़ करा लिया और ऊपर से २५ हज़ार और ऐंठ लिए. बोला मुल्ला आकर भोले भाले विनेश सर से, "मास्टर संगीताजी तो जाएँगी नहीं, क्यों ना सरदारजी को ले जाएँ, वे भी बुल्लेशाह और गेटे पर भाषण दे देंगे....तुम लिख देना सरदार आहिस्ता आहिस्ता रट्टा लगा लेगा, फिर पेपर तो रहेगा ही."
जैसा कि कहा जा चुका है किसी अज्ञात कारण से विनेश सर मुल्ला कि हर बात मानते हैं. थोड़े नाटक-नौटंकी के बाद सरदार का कार्यक्रम भी फाईनल हो गया.
यथा समय प्रोफ़ेसर विनेश राजपूत, मुल्ला नसरुद्दीन 'बदायुनी' और भाई गुर-बन्दर सिंह 'रंगीला' बर्लिन पहुँच गये. वहां के एक ऑडिटोरियम में सम्मलेन था....मंच पर तथा हॉल में....ग़ालिब, गेटे, जयशंकर प्रसाद, मेक्समुलर, गाँधी आदि हस्तियों के चित्र लगाये गये थे....भारत और जर्मनी के झंडों से हॉल को सजाया गया था......विनेश सर ग्रे सूट में, मुल्ला काली अचकन, सफ़ेद पायजामे औत टोपी में, सरदार जी सफ़ेद चूड़ीदार शेरवानी और नीली पगड़ी में बहुत जम रहे थे. हॉल में जर्मन नर नारी भरे थे...वहां के साहित्य प्रेमी जिन्हें बस जर्मन भाषा ही समझ में आती है. तीनों के पपेर्स का जर्मन तजुर्मा सर्कुलेट किया जा चुका था, हाँ यह तय था कि तीनों वक्ता अपना प्रस्तुतीकरण अपनी भाषा में ही करेंगे...विनेश सर हिंदी में, मुल्ला उर्दू में और सरदारजी पञ्जाबी में. मुल्ला और सरदार ने विनेश सर के लिखे संभाषण को हाथ तक नहीं लगाया था. खाने पीने में, मौजमस्ती में वक़्त गुजार दिया था. तीनों ही पोजिटिव माईंड वाले, मोमेंट्स में जीने वाले.......प्रोफेसर विनेश ने बहुत अच्छी तरह से बाबू जय शंकर प्रसाद और गेटे पर बोला. समझें या ना समझें जर्मनों ने तालियाँ बजायी. भाषण एक्स-टेंपो हमारे मुल्ला और सरदार जी का भी खूब रहा, दोनों ने अपने भाषण में कुदरती जोश के अलावा गीत/ग़ज़ल/गाना भी शामिल किया था....विनेश सर से ज्यादा तालियाँ दोनों ने बटोरी. .....कहते हैं, जब भी दोनों ग़ालिब-गेटे या बुल्लेशाह-गेटे के नाम लेते, जर्मन श्रोता झूम झूम कर तालियाँ पीटते, दोनों जब भी गाते तालियाँ और जोरों से बजती. कुल मिलाकर कार्यक्रम सफल रहा......खाली विनेश सर सिर धुनते रहे. आप सोचतें होंगे कि जब मुल्ला और सरदार ने भाषण रट्टा नहीं तो क्या बोला था...और वह इतना असरदार क्यों था ? दोनों के भाषण आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है.

मुल्ला का प्रेजेंटेसन (just sample)

खवातीन हजरात ! ग़ालिब गेटे अपनी अपनी माँ के बेटे (तालियाँ) ....ग़ालिब-गेटे बिस्तर पर लेटे.(तालियाँ) इंडिया जर्मनी....ग़ालिब गेटे.....नौकर से कहो बिस्तर समेटे.(तालियाँ) जनाब हैदराबाद में आकर अगर कल्लू मियां की हैदराबादी बिरयानी ना खाई तो क्या किया, बड़े बड़े देगों में चावल के दाने केशर में लपेटे---ग़ालिब-गेटे (तालियाँ) जुम्मन मियां कि बीवी जमालो पड़ोसी के साथ भाग गयी....जुम्मन अब कैसे गुज़रे दिन और रात लूंगी लपेटे...ग़ालिब-गेटे.(तालियाँ) अब लगे गाने : सितारों में मुहम्मद नज़रों में मोहम्मद, मोहम्मद ही मुहम्मद है.....(तालियाँ..) बलमा हमार मोटर कार लईके आयो रे ....बलमा हमार...ग़ालिब-गेटे (तालियाँ) . हैदराबाद का एअरपोर्ट शहर के बीच में हैं....इंडिया-जर्मनी. हैदराबाद आयें तो सलारजंग म्यूज़ियम ज़रूर देखिएगा-ग़ालिब-गेटे.(तालियाँ) चारमिनार इलाके में आपको सब कुछ मिलेगा-ग़ालिब-गेटे.(तालियाँ) बंजारा हिल्स पोश इलाका है, वहां रहने का मज़ा ही कुछ और है (ग़ालिब-गेटे) तवायफ हूँ मुजरा करुँगी..ग़ालिब-गेटे (तालियाँ).................(सैम्पल-ऐसा ही कोई एक घंटा चला)

सरदार गुर-बन्दर सिंह जी की तक़रीर

फायियों pharjayiyon ! हुन तुसी स-दार कुर-बन्दर से खबरें सुणो....बुल्लेशाह-गेटे ! ओजी दिल्ली ते विच साढे नेताओं ने भांगडा पाड़ा...बुल्लेशाह-गेटे. ताला कोई सा हो जी, असी उस दी चाभियाँ बना संकदा...बुल्लेशाह-गेटे...पंजाब मेल जेहडी चंगी कोई ट्रेन नहीं, थ्री टियर विच बाबूजी नूं पैसा फड़ा ते सो जाओ, भटिंडा आ ज्याना....जर्मनी-इंडिया. ओये तुतक तुतक तुतीय..हे जमालो... बुल्लेशाह गेटे...
काली तेरी चोटी है परांदा तेरा लाल है...बुल्लेशाह-गेटे. हो मोला कि जाना मैं क्या चीज हुन....मैं धोबी नहीं लोहार हुन....बुल्लेशाह दी गलां गेटे नु सुनावां..... साढे नाल कोई दौ सो बसां है...टाटा दी है, अशोक लेलैंड दी है, वोल्वो दी है.....सब चंगी है.....इंजन चंगा, बॉडी चंगी, एक्सीलेटर चंगा....जे नहीं चंगा उस नूं असी चंगा कर दिता.....बुल्लेशाह-गेटे (तालियाँ)..........(सैम्पल....ऐसा ही कोई एक घंटा चला.)


(the plot of this post is partially inspired by a urdu story by Krishan Chander and another by Pakistani writer Shaukat Thanwi-----though this presentation is original in totality )

Friday, August 21, 2009

Mahamudra.....

You pulsate
Pulsates your beloved
You come to
The deepest layer of body
Matter loses its existence
Energy waves are there
You are then
A dancing energy
No boundaries exist
Body becomes
A vaporous thing
Body evaporates
Only energy is left
A very subtle rhythm is there
Beats of hearts and bodies
Come together in total harmony
There remains two no more
Yin moving into yang
Yang moving into Yin
You are no more
Your love becomes death like
You die as a material image
Your thinking yourself as body..dies
You evolve as energy
And when this happens
With the whole existence
This is Mahamudra
This is the great orgasm
This is the greatest orgasm.......

Wednesday, August 19, 2009

आँखें और पाँव........

पर्वत की शिखा पर
खडी हो कर
देखा था नन्ही चींटी ने :
हाथी मानो बकरी जितना हो
ऊँट बस खरगोश के बराबर
बहुत खुश हुई थी चींटी
बढ गया था
'कॉन्फिडेंस लेवल'
लगी थी सोचने :
"बहम था मेरा
बस...........
आँखन देखी से
निकल गया,
अब डर काहे का ?"
तेज कदमों से
उतर आई थी नीचे
फिर दिखने लगे थे
हाथी और ऊँट
बड़े बड़े... लम्बे से कद वाले.
घबरा गयी थी चींटी
लगी थी पूछने पर्वत से :
"लिल्लाह क्या हो गया यह
चन्द लम्हों में !
यह फर्क कैसे हो आया?"
बोला था पर्वत :
"अरे चींटी !
पहले आँखे थी तुम्हारी
मगर पाँव थे मेरे
और............अब
आँखे भी तेरी और
पाँव भी तेरे."