Sunday, January 23, 2011

प्रेम ??? : अंकित भाई रचित

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मुझे कैसे
मिले प्रेम ?
प्रेम तो है
मेरे पास
सदैव
स्वाभाविक
नैसर्गिक....

गिरा देता हूँ
मैं
खोखली परिभाषाएं
प्रेम की
और
करता हूँ अनुभव,
प्रेम नहीं है
कर देना
कुछ सुकाम
अन्यों के लिए
या
कह देना उनको
कुछ सुखद शब्द
या
बस मुस्कुराना
और
मुस्कुराते रहना.
प्रेम बस है
प्रेम
केवल प्रेम...

नहीं होता है
प्रयास कोई
पाने हेतु
प्रेम को,
बस होता है
बनाना
स्वयं को
केवल मात्र
प्रेम ……

सदैव,
बनाया है
मैंने
जटिल इसको,
उलझाये रखा है
प्रेम सूत्रों को,
जब कि
है यह
सर्वथा सहज,
सरल……

करता हूँ
मैं प्रेम जब
होता हूँ
केवल प्रेम में
और
होता हूँ
बस स्वयं……

दर्शाता है
प्रेम ही
मुझे
वो बिंदु
वो अबिंदु
जहाँ
होता है
मिलन
मन मस्तिस्क का
तत्त्व से,
सत्व से...

Saturday, January 22, 2011

सदगुण

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गुण ऊँचो करे
मनुज को,
आसन धरै
ना होय !
महल शिखर पर
बैठ कर,
कागा
गरुड़ ना होय ! !

सृजन...

(रेवाजी को सप्रेम !)

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बैठी हूँ लेकर
भावों को,
कागज को
कलम को,
मौसम भी माकूल है
माहौल भी है शांत,
प्रतीक्षा है
केवल मात्र
विचारों की,
किन्तु
वे भी तो हैं
मनमौजी
ठीक मेरी तरह,
नहीं आयेंगे ना
दौड़ते हुए वे,
चला आता है जैसे
नन्हा बछड़ा
गैय्या के निकट
या
स्कूल से निकली
मेरी बेटी
मेरे करीब,
ढल रही है
सांझ,
जाऊं तो
कैसे जाऊं
इस पल
पीछे उन आवारों के ,
आ भी गये यदि
निगौड़े
जैसे तैसे,
नहीं मिलेंगे
शब्द
देने वाले
अर्थ उनको,
मिले बिना
सारे संजोग
असंभव है ना
सृजन..

Wednesday, January 19, 2011

प्रशंसा

फैल्थम ने कहा था : "प्रशंसा विभिन्न व्यक्तियों पर विभिन्न प्रभाव डालती है. वह विवेकी को नम्र बनती है और मूर्ख को और भी अहंकारी बनाकर उसके दुर्बल मन को मदहोश कर देती है."

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ढह जाते हैं
पुल
मिथ्या प्रशंसा के,
मनुआ!
ना करना
उपक्रम
चलने का
उस पर..

(अमेरिकी रेड इंडियन लोगों में प्रचलित एक कहावत)

उपदेश

स्वामी रामतीर्थ ने कहा था : "जिसे हरेक देता है पर बिरला ही लेता है, ऐसी चीज है उपदेश और सलाह."
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जब
देने लगे
सदोपदेश
लौमड़ी,
रखना
संभालकर
बतखों को
अपनी.....

(रेड इंडियन समुदाय कि एक कहावत से प्रेरित)

कायर

महात्मा गाँधी ने कहा था, "आध्यात्म के लिए पहली चीज है निर्भयता. कायर कभी नैतिक नहीं हो सकते." और गेटे (जर्मन कवि) ने कहा था, "कायर तभी धमकी देता है जब वह सुरक्षित होता है."

# # #
यदि मैं
करती नहीं
रचनात्मक
विरोध
किसी अपने की
गलत हरक़त का,
या तो
नहीं मैं
हितैषी उसकी
अथवा
हूँ मैं
एक कायर.

Sunday, January 16, 2011

बदनाम हुई किस के लिए ?

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खाहमखाह बदनाम हुई किस के लिए ?

ज़फाओं को माना था वफ़ा उसके लिए
रिया को जाना था फलसफा उसके लिए
सबको किया था बेपायाँ खफा उसके लिए
दरपेश गुमनाम हुई किस के लिए ?
खाहमखाह बदनाम हुई किस के लिए ?

म़र मर के वो जीयी थी उस के लिए
मय मोहब्बत की पीयी थी उस के लिए
कतरने दिल की सीयी थी उस के लिए
तूदा-ए-ख़ाक सरे आम हुई किस के लिए ?
खाहमखाह बदनाम हुई किस के लिए ?

महफ़िल में हुई थी वो रोशन उस के लिए
बनी थी खिला खिला गुलशन उसके लिए
दीगर थे शेख-ओ-बहमन उसके लिए
सबूकश सुबहो शाम हुई किसके लिए
खाहमखाह बदनाम हुई किस के लिए ?

रिया=पाखण्ड, बेपायाँ= असीम,दरपेश= उपस्थित, तूदा-ए-ख़ाक=मिटटी का ढेर, दीगर=अन्य, सबूकश=पक्की शराबी

Friday, January 7, 2011

यह कवि : नन्हे बच्चे--नायेदा आपा

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ये कवि या शायर,

होतें है,

उन नन्हे कोमल
बच्चों की तरह,
जो ना मिलने पर
तड़फते हैं
और
मिल जाने पर
झगड़ते हैं.

सुन के
सुना के
प्यासें बुझा के
प्यासें जगा के
निर्लिप्त निर्मोही से
लिये हुये
दिलों में
भरपूर मोहब्बतें,
उठा कर
डायरियां
अपनी अपनी,
बोलते बड़बड़ाते
आंसू बहाते
हँसते हंसाते,
लिये हाथों में हाथ
चल पडतें है.


(यह रचना उस वक़्त लिखी गयी थी जब हम कवि गोष्टियों में शिरकत कर लेते थे...जहाँ कहनेवाले भी कवि होते थे और सुनने वाले भी......एक ऐसा प्यारा मंजर था वह जिसमें बहुत अपनत्व महसूस होता था. )