Monday, November 30, 2009

मंजिल और मार्ग/Manzil aur Maarg....

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फूल में है
कई
पंखुडियां,
फल है
एकम-एक,
मंजिल
पाने को
हुए
मानो
मार्ग
अनेक......

Phool men hai
Kayi
Pankhudiyan,
Phal hai
Aekam-aek,
Manzil
Pane ko
Hue
Mano
Maarg
Anek ...

Sunday, November 29, 2009

चन्दन/ Chandan

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चन्दन की
बलिहारी,
काटती है
आरी,
पर
पाती
महक
प्यारी.......

Chandan ki
Balihaari,
Kaat-ti hai
अआरी,
Par
Paati
Mehaq
Pyaari.........

Saturday, November 28, 2009

आईना क्या ? /aaina kya ?

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खुल
सकती है
बंद आँखें
(मगर)
फोड़ें हैं
चश्म
जिसने
लिल्लाह !
उसे
आईना क्या ?

khul
sakti hai
band aankhen
magar
phoden hain
chasam jisne
lillah !
use
aaina kya ?

Friday, November 27, 2009

कथनी करनी/Kathani-karani

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देता रहता
प्रवचन
किये बंद
निज कान,
कथनी
करनी एक सी
उसके वचन
प्रमाण..........

deta rahta
pravachan
kiye band
nij kaan
kathani
karani
aek si
uske vachan
pramaan.......

Thursday, November 26, 2009

मुस्कान और उदासी /Muskaan Aur Udaasi

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मुस्काता
क्षणजीवी
पुष्प
बांटे
महक
सुवास,
कांटे की
लम्बी उमर
किन्तु रहे
उदास..........

Muskaata
Kshanjeevi
Pushp
Baante
Mehaq suvaas,
Kaante ki
Lambi umar
Kintu Rahe
Udaas.........

Wednesday, November 25, 2009

परिपक्वता रस की / Paripakvta Ras Ki

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कहा झरते पते ने
अरे पतों !
होनी यही है
गत तुम्हारी
देखलो !
कर दिया
पतझड ने
नग्न सर्वथा
वृक्ष को
रह गएँ
शेष कांटे
जगह अपनी अपनी......

हुआ था
एक सत्य
प्रत्यक्ष
झरते हैं वे
होती है जिनमें
परिपक्वता
रस की........

jharte pate ne
kaha tha
are paton !
gat honi hai
yahi tumhari
dekhlo
patjhad ne
kar diya
nagn sarvtha
vriksh ko
rah gaye
shesh kante
jagah apni apni........

hua tha
aek saty
pratyaksh
jharte hain weh
hoti hai jinmen
paripakvta
ras ki..........

Tuesday, November 24, 2009

महकार-ए-इत्र /Mehaqar-e-Itr

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महकार-ए-इत्र का
गज़ब है
फ़साना,
होता है
नाक आशिक,
कानों पे
मगर फव्वा,
लगाता है
जमाना......

Mahaqar-e-itr ka
Gazab hai
Fasaana,
Hota hai naak
Aashiq,
kaanon pe
Magar favva
Lagaata hai
Jamaana......

Monday, November 23, 2009

महकार-ए-इत्र /Mehaqar-e-Itr

$$$
महकार-ए-इत्र का
गज़ब है
फ़साना,
होता है
नाक आशिक,
कानों पे
मगर फव्वा,
लगाता है
जमाना......

Mahaqar-e-itr ka
Gazab hai
Fasaana,
Hota hai naak
Aashiq,
kaanon pe
Magar favva
Lagata hai
Jamaana......

लोबान/Lobaan....

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मौजूदगी में
उसको
सताया
करते थे
लोग....
चला गया तो
बना के
बुत उसका,
लोबान
सुबहोशाम
जलाया
करते हैं
लोग.....

(लोबान=पूजा में जलाया जाने वाला धूप--एक तरहा से अगरबती)

Mouzudagi men
Usko
Sataaya
Karte the
Log,
Chala gaya to
Banaake
But uska,
Loban
Subahosham
Jalaaya
Karten hain
Log.....

(Lobaan=puja men jalaya jane wala agar/dhoop-aek tarha se agarbati)

Sunday, November 22, 2009

खेत और रेत /Khet Aur Ret......

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चलते हैं
जहाँ
हल
बोते हैं
बीज
लहलहाते हैं
बूटे
कहलाते हैं
खेत,
समझ लो
नहीं तो
हैं बस
मिटटी
धूल
या के
रेत..........

chalte hain
jahan
hal
bote hain
beej
lahlahate hain
boote
kahlate hain
khet
samajhlo
nahin to
hain
bas
mitti
dhool
ya ki
ret.

Saturday, November 21, 2009

धुवाँ/Dhuvan

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करता है
उपक्रम
जाने का ऊपर
ज्योति से
कृतघ्न धुंवा
किन्तु नहीं
देता शरण
विशाल
नील-नीरभ्र गगन
इस कुलकलंकी को.....

औदार्य है
यह तो
समदर्शी लौ का
बना देती है जो
इस आँख फोड़े को
रूपसी के
नयनों का
काजल.....

(औदार्य=उदारता, रूपसी=सुंदरी, कृतघ्न=नाशुक्रा, उपक्रम=प्रयास)

karta hai
upkram
jane ka upar
jyoti se
kritghan dhuan
kintu nahin deta
sharan
vishal
neel-nirabhr gagan
is kulkalanki ko......

Aaudarya hai
yah to
samdarshi lau ka
bana deti hai jo
is aankh-fode ko
rupasi ke
nayanon ka
kajal.

(aaudarya=udarta, rupasi=sundari, kritghan=nashukra upkram=prayas)

Friday, November 20, 2009

अक्स /Aks

***
आईने में
देखता
ज्यों अपना वो
अक्स
निज राग द्वेष को
दूजों में
दरसे
जड़मति
शख्स.

aaine men
dekhta
jyon apna wo
aks,
nij rag-dvesh ko
doojon men
darse
jadmati
shakhs.

Thursday, November 19, 2009

प्रकाश और तम/Prakash Aur Tam

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आलोक प्रिय
प्राणी सजग
कार पायें सहन
प्रकाश
चमगादड़
उल्टा लटक
तम में करे
प्रवास.

aalok priy
praani sajag
kar payen sahan
prakash
chamgadad
ulta latak
tam men kare
pravas.

Wednesday, November 18, 2009

बांस और तुलसी /Baans Aur Tulsi

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बांस लम्बे
किन्तु थोथे
जैसे पंडित
पढ़ पढ़ पोथे
होते है
निस्सार....
तुलसी नन्ही
एक बालिश्त की...
अति गुणकारी
हरती व्याधि
करती है
उपचार.......

baans lambe
kintu thothe
jaise pandit
padh padh
pouthe
hote hain
nissar......

tulsi nanhi
aek balisht ki
ati gunkaari
harti vyaadhi
karti hai
upchaar.......

Tuesday, November 17, 2009

भूल /Bhool

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'भूल हुई'
पर भूल को
मत जाना तुम
भूल
याद रखें यदि
भूल को
(बने)
जीवन सहज
समूल.

Bhool hui'
Par bhool ko
Mat jana tum
Bhool
Yad rakhen yadi
Bhool ko
(Bane)
Jeevan sahaz
Samool.

Monday, November 16, 2009

वाचाल /Vachal..........

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बोली बोले
सर्व की
पाखी वाचाल
चंडूल
औरों की
रहा बोलता
गया निज की
वह भूल.

(चंडूल एक पक्षी होता है जो प्रत्येक चिड़ियाँ की बोली बोलता है)
Boli bole
Sarv ki
Pakhi vachal
Chandool
Auron kee
Raha bolta
Gaya nij kee
Wah bhool.

(Chandool aek pakshi hota hai jo pratyek chidiyan ki boli bolta hai.)

Sunday, November 15, 2009

भला ? /Bhala ?

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शहर कहे
अच्छा तुझे
बात नहीं
कुछ खास
यदि पड़ोसी
भला कहे
तब करना
विश्वास
हर पल जो
बरते तुझे
बात वही
प्रकाश........

shahar kahe
achha tujhe
baat nahin
kuchh khaas
yadi padosi
bhala kahe
tab karna
vishwas
har pal jo
barte tujhe
baat wahi
prakash.......

गुलिस्तां (आशु रचना)

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बर्बादी का
बना हुआ है
सबब
बागबाँ,
जड़ों में
या मौला
पानी नहीं
तेजाब दे रहा है
गुलिस्तां के
मासूम
बूटो को
अंदाज़-ए-इताब
उसका
इस तरहा
इज्तिनाब-ओ- अजाब
दे रहा है...

बज रहा है
दूर कहीं यह नगमा
बदल जाये
अगर माली
चमन होता नहीं खाली
बहारें फिर भी
आती है
बहारें फिर भी
आएगी...........

खुशबू नहीं है
अमानत
किसी की
खिलतें हैं फूल गर
गुलिस्तां में
महक
खुद-ब-खुद भी चली आती है
महक
खुद-ब-खुद भी चली
आएगी.........


(सबब=कारण,इताब=क्रोध, इज्तिनाब=नफरत/ उपेक्षा, अजाब=यातना)

Saturday, November 14, 2009

अक्स और हकीक़त/Aks Aur Haqiqat

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निरखना
तस्वीर-ए-यार को
दर्द-ए-दिल
मिटा सकता नहीं
यह आईना
ऐ दोस्त
पानी तो रखता है
मगर
पानी
पिला सकता नहीं.

Nirakhna
Tasveer-e-yaar ko
Dard-e-dil
Mita sakta nahin
Yah aaina
Ae dost !
Paani to rakhta hai
Magar
Paani
Pila sakta nahin.

Friday, November 13, 2009

फैसला/faisla

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देती है मौके
जिंदगी
करने को
भला या बुरा
लेना होता है
फैसला
होश में
ना कि
नज़रें चुरा....

deti hai mouke
zindagi
karne ko
bhala ya bura
lena hota hai
faisla
hosh men
na ki
nazren chura.........

Thursday, November 12, 2009

रंग बदरंग/ Rang-badrang

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स्वर्ण रहेगा
स्वर्ण रंग
चाहे काटो
अंग
खोट होवे
जिस धातु में
वो होती
बदरंग.....

Swarn Rahega
Swaran rang
Chahe kaato
Ang
Khot hove
Jis dhaatu men
Wo hoti
Badrang......

कण/Kan

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गिर पड़ा
एक कण
गज के मुख से
नहीं घटा
उसका आहार....
चींटी
उसको
ले चली
पालन को
अपना परिवार.

Gir pada
Aek kan
Gaj ke mukh se
Nahin ghata
Uska aahar,
Chinti
Usko
Le chali
Palan ko
Apna Parivaar...

Monday, November 9, 2009

शब्द बने उजला सा दर्पण -----

*
आते हैं
कभी कभी
वे क्षण
जब चलती है
कलम
होता है सृजन....
शब्द
बन जाते हैं
उजला सा दर्पण
जब चाहो
कर लो
चैतन्यता के
दर्शन...........

___________________________________________

SHABD BANE UJLA DARPAN----
aaten hain
kabhi kabhi
weh kshan
jab chalati hai
kalam
hota hai
srijan.......
sabd ban jate hain
ujla sa darpan
jab chaho kar lo
chetna ke
darshan.

Sunday, November 8, 2009

तिमिर तैय्यार.........

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भ्रम है
उदित सूर्य ने
दिया
अँधेरा मार,
बंद कर द्वार
क्षण के लिए
पुनः
तिमिर तैय्यार.....

Saturday, November 7, 2009

गौर (जागरूकता)/Gaur (awareness)

मौला तो
सब ठौर
मंदिर मस्जिद
क्या रखा
करता तू
जहाँ गौर
रमता वहीँ
परमात्मा.....
_______________________________

Moula to
Sab thaur
Mandir maszid
Kya rakha
Karta tu
Jahan gaur
Ramta wahin
Paramatma.......

पीड़ा.....

.......
कला
चुभे
शूल को
निकालने की
हुआ करती है
इन्सां के
पास..........
पीड़ा
चुभन की
जाती है
मगर
वक़्त के
गुजर जाने के
साथ.....

Tuesday, November 3, 2009

शेष कविता......

$$$

दृष्टि ने
फेर ली है
पीठ
खो गयी है
कुव्वत
पहचान पाने की.......

लगने लगे है
एकसे
सब चेहरे
परिचित हों
या
अपरिचित.........

अब तो
कर रहे हैं
सब काम
पड़ोसी कान,
बंध गयी है
सिर्फ शब्दों से
पहचान........

हो गये हैं
व्यर्थ
कागज़ और कलम
किये जा रहे हैं
हम
निरर्थक
'लीकलकोलिये'.........

छूटती है
मुश्किल से
पड़ी हुई लतें
इसीलिए तो
ज़िन्दगी
बन जाती है
आदतें......


लीकलकोलिये=यह एक राजस्थानी शब्द है जो आड़ी तिरछी गोल मोल कई आकर की लिखावट जैसी कि बच्चे करते हैं अथवा पेन को चला कर देखने के लिए हम कागज़ पर करते हैं इत्यादि के लिए प्रयुक्त होता है, जो कोई भी अर्थ नहीं देते. मैंने हिंदी/उर्दू में इस का समानार्थक शब्द खोजने का प्रयास किया मुझे शब्द मिले :धुनकनी, कलमघिसाई, बदखत,घसीटे इत्यादि. मैंने इस शब्द को बेहतर पाया इसलिए इसका इस्तेमाल किया है.

Monday, November 2, 2009

समरंग/Samrang.....

$$$

पिक-वायस
समरंग
दोनों में है
फर्क क्या,
बोली से पहचान
क्या लेखा
रंग-रूप का..........

Pik-vayas
Samrang
Donon men hai
Farq Kya,
Boli se pahchan
Kya lekha
Rang-roop ka.....

Sunday, November 1, 2009

नश्वर........(आशु प्रस्तुति)

$$$

नश्वरता
दिखती है.......

होता है रूप
परिवर्तन
अथवा
विलय
धरा का धरा से
वायु का वायु से
जल का जल से
अगन का अगन से
गगन का गगन से......

पञ्च भौतिक तत्वों ने
बताया हमें
अभ्यास
नश्वर का
भूल कर इनको
कहूँ
या
भोगकर इनको
मनुज हो जाये
इश्वर का...........

मकसद.......

**
मधुर फलों के
तरु
दे देते
सब को,
क्षणिक
याद
आह्लाद,
नीम-वृक्ष का
होता मकसद
स्वांतसुखाय
उपकार,
चितन में
नहीं होता
उसके
स्वाद
विषाद
प्रमाद
वृथा का
अंतहीन
विवाद.

आत्मा के सम्बन्ध......

**

दिव्य पुष्प को
अबोला पा
बोले मधुर
सुगंध,
सुने नासिका
कर्ण बन
होते ऐसे
आत्मा के
सम्बन्ध....

Atma ke sambandh....

divya pushp ko
abola pa
bole madhur
sugandh,
sune nasika
karn ban
hote aise
atma ke
sambandh....

आदत से मजबूर......

$$$

लबालब भरे
तालाब को
दूब ने जबरन
ले लिया था
आलिंगन में.........

लहरों ने
चिढ कर कहा था
"किसने दिया था
तुम्हे निमंत्रण ?"

आदत से मजबूर
टर्रटर्रायी थी मेंढकी:
"पगली, जहाँ अपनत्व हो
वहां निमंत्रण की
प्रतीक्षा नहीं होती."