Tuesday, May 17, 2011

मेरी मां.....

(शिवम् रचित)
# # #
मां तू कितनी अच्छी है,
मेरा सब कुछ करती है !
भूख मुझे जब लगती है,
खाना मुझे खिलाती है !
खेल कर मैला होता हूँ,
रोज मुझे नहलाती है !
जब मैं रोने लगता हूँ,
चुप तू मुझे कराती है !
मां मेरे मित्रों में सबसे
पहले तू ही आती है !

विजयोत्सव...

# # #
कैसा प्रण,
क्षण
प्रतिक्षण,
जीवन तो है
समरांगण
विजयोत्सव
होगा
महामरण...

पालतू...(आशु रचना)

# # #
तिमिर को
कैद करके
बना सकते हो
पालतू
तुम,
देखो
जरा बन्द
करके
धूप को,
म़र जायेगी...

पंसारी.....


(राजस्थानी लोकोक्ति से प्रेरित)
# # #
बहम पाला
दिखाया
कैसी है दिलदारी,
सूंठ की गाँठ ली,
बन बैठा पंसारी...

(पंसारी=व्यापारी जो जड़ी बूंटीयों, मसालों आदि में डील करता है, सूंठ=सूखी हुई जिंजर)

तारतम्य...

# # #
चलना,
रुकना,
रोकना,
तारतम्य,
संतुलन
आवश्यक है
सार्थक
जीने के लिए,
खोलना
और
बन्द करना
क्रमश:
छिद्रों को
ज़रूरी है
बांसुरी से
संगीत
जगाने के लिए...

Tuesday, May 10, 2011

छोड़ कर हाथ...

# # #
छोड़ कर
हाथ
परिपक्व मधुर
फल का,
संभालती है
डाली
किसी और
अधपके
खट्टे
कसेले
फल को,
बनाने
मधुर
रसभरा
उसको ...

Monday, May 9, 2011

कैसी व्यावहारिकता....?

# # #
मैं वरिष्ठ
तू कनिष्ठ,
चाहे हूँ मैं
कितना
अशिष्ट
पर
समझूं खुद को
विशिष्ठ
अभीष्ट !

Sunday, May 8, 2011

रिश्ते...

# # #
रिश्ते,
गलत अंतराल पर
टंके हुए
बोताम
जो होते हैं
निरर्थक...

Monday, May 2, 2011

खाद..

# # #
मिलते ही
खाद
अंधेरों की,
लहलहाई
फसल
सितारों की...

दो कदम -(नायेदा आपा द्वारा रचित )

(इसका देवनागरीकरण मुदिता दी ने किया, मतले का पहला मिसरा मैंने याने महक ने दिया है..नायदा आपा का ओरिजिनल शे'र नेक्स्ट है)
#########
मिटे क़दमों का फासला के कोई साथ चले
दो कदम तुम ना चले दो कदम हम ना चले.

(फासला चंद क़दमों ही का था मेरे हमनशीं
दो कदम तुम ना चले दो कदम हम ना चले.)*

दामन-ए-वक़्त डूबता था गरम अश्कों में
मेरे दिन यूँ ही ढले- रातें मेरी यूँ ही ढले.

दिल के अरमान खामोश सी दस्तकें देते ही रहे
लबों के बंद दरवाजे हम से हरगिज़ ना खुले.

मासूम ख़्वाबों की थी वो बे-ज़ुबां चाहत
सांसों के हिंडोले में झूले और नाजों से पाले.

गरूर-ए-हुस्न मेरा वो इश्किया दीवानगी तेरी
तारीकियों में बस हसरतों की शम्में जले.

काश! सुन लेते मेरी धड़कनों की थकी सी सदा
अब आलम है या रब! हम तेरी दुनिया से चले.

Sunday, May 1, 2011

दरवाजा....

# # #
खुल गया
अरसे से
बन्द
चिंतन मनन का
मोटा सा
दरवाज़ा,
कहा प्यार से
बहिरंग से
अन्तरंग ने,
चल तू भी
अन्दर आजा...