Saturday, May 26, 2012

वुजूद बूँद का..


# # # #
मथना 
लगातार 
समंदर का,
क्या  
कर सकता है
तबाह, 
वुजूद 
एक बूँद का...

Tuesday, May 22, 2012

मार्ग विकट...(आशु रचना)


# # #
अपना कर
मार्ग विकट दुर्गम 
क्यों वक्र करें 
निज प्रकृति को,
चल कर 
राह कंटीली पर
करें मंथर क्यों
चरण आवृति को,
अन्तरंग सहज
बहिरंग सहज 
मनुज सहज
करतार सहज,
फिर 
अपनाएं क्यों 
वृथा असंगति को...

(विकट शब्द को यहाँ टेढ़े मेढे के अर्थ में प्रयुक्त किया है) 

Monday, May 21, 2012

धूप हूँ मैं तो !


# # # #
बना सकते हो 
तुम पालतू
अँधेरे  को,
धूप हूँ मैं तो !
म़र जाउंगी 
कर दोगे  
गर कैद मुझ को...

हर घुमाव पर..


# # # #
चलती है नदी
मिलने समंदर से 
लिए ज़ज्बा 
बनने का 
धीर वीर गंभीर,
मगर 
पहुँच कर 
हर घुमाव पर
देखने लगती है
मुड कर
आ रही है या नहीं
नटखट लहरें ....

Thursday, May 17, 2012

किरदार उजला..


# # # #
काली स्याही 
बना सकती है 
तस्वीर 
आफताब की,
लिख सकती है 
नज़्म चांदनी पर,
बस चाहिए उसको 
किरदार उजला.. 

Wednesday, May 16, 2012

एक कतरे में...


# # # #
एक कतरे में 
गरजता है 
समंदर उफनता,

जिगर  में 
एक  शरारे के
पोशीदा है 
आग  धधकती,

बनता है
एक लम्हे से ही 
हर वक़्त बड़ा छोटा,

एक लफ्ज़ से 
पैदाईश है
किताबाते इल्म की,

जान पायेगा वो ही  
राजे जिंदगानी 
कर सकेगा 
महसूस जो 
वजूदे कायनात
दिल में खुद के...

Sunday, May 13, 2012

मैं चिंगारी...


# # #
मैं चिंगारी
रोशन है रूह मेरी,
नहीं बहका सकेगी 
मुझको
राह से मेरी 
ऐ संदल !
यह मदभरी  महक तेरी...

Friday, May 11, 2012

अक्स समन्दर का..


# # #
मथा जाता 
बहर खारा 
होता है हासिल 
आबे हयात,
होठों पे दिखावा 
कीचड़ का, 
अंतस में छुपाये
अनगिनत जवाहिरात,
दिल हो उदास
रहती है मगर 
ज़ेहन में 
तवाजी,
देखा हैं तुझ में 
अक्स समंदर का 
और
कुदरत की 
जर्र: नवाजी... 

(बहर=महासागर,आबे हयात=अमृत, जवाहिरात=रतन, जेहन=मस्तिष्क,तवाजी=संतुलन, अक्स=प्रतिबिम्ब, कुदरत=प्रकृति,जर्र: नवाजी= कृपालुता)  

Wednesday, May 9, 2012

सयानापन...


# # #
देखो ना 
सयानापन मेरा,
भुनाकर  
नोट 'हाईवे' का
ले लिए हैं 
बड़े छोटे सिक्के
गलियों कूचों और
दोराहों के 
और 
खरीद ली है 
एक नहीं कई
सस्ती मंदी मंजिलें
अपने इन 
भटके बहके 
कदमों के लिए...

Tuesday, May 8, 2012

हरी भरी बेल..


# # #
बेजान बेमुरव्वत 
ठूंठ  से
लिपट गयी थी 
हरी भरी बेल,
फ़ित्रत थी  
उसकी
या के
कुदरत का खेल ?

Sunday, May 6, 2012

कथनी और करनी.......(३)


# # #
मैं तो दिल का बच्चा हूँ
बिलकुल सहज और सच्चा हूँ  
दो शीशे हैं रखे 
खिलौनों में मेरे, 
दिखता है एक से 
हर बड़ा नन्हा सा, 
देखा करता हूँ उस से 
गलतियाँ और गुनाह मेरे,
और दूसरा है 
मोटे से पेट वाला
दिखता है जिस से 
'कन' भी 'मन' सा*
किया करता हूँ 
इस्तेमाल उसका 
देखने को 
छेद और कमियाँ 
औरों की....

*(१.कन अर्थात कण, २. मन=वजन की मात्रा ४० सेर याने लगभग ३७ किलोग्राम)

Friday, May 4, 2012

कथनी करनी.....(२)


# # #
कहते हो 
बार बार 
क्या तेरा 
क्या मेरा,
क्यों है फिर 
रोशनी तेरी
मेरा यह अँधेरा ?

Thursday, May 3, 2012

कथनी-करनी...(१)


# # # 
थकते
नहीं कहते,
आत्मा 
अजर है
अमर है,
सोते जागते 
उनको,
फिर भी 
मौत का डर है...

Tuesday, May 1, 2012

अपनी अपनी चेतना..


अपनी अपनी चेतना..
# # # # #
एक सी माटी 
एक सी पवन
एक ही गगन 
पते एक से 
डाली एक सी
एक सा मूल 
खिले मेरे आँगन में 
कनेर के फूल,
लाल है थोड़े
तो चंद पीले 
कुछ है श्वेत, 
छटा यह प्रकृति की 
कितनी है अद्भुत,
किया अपनी अपनी चेतना से
सत्य को अनुभूत..