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धोया निचौड़ा सुखाया के पहना,
तू मुझे आज़मायेगा कब तक !जोगी भगाया भरमाया अन्ना
पब्लिक को बहकायेगा कब तक !
नाम ले ले कर जम्हूरियत का,
चेहरा तू ये छुपायेगा कब तक !
ख़त्म हुए दिन इजारेदारी के
खैर तू अपनी मनायेगा कब तक !
खुल चुकें है राज सारे के सारे,
हांड़ी काठ की चढ़ाएगा कब तक !
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