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कुरआन पढने से कहीं अधिक गाये जाने की पवित्र पुस्तक है। कुरआन किसी विद्वान अथवा दार्शनिक द्वारा लिखित नहीं है, यह तो सीधे प्रभु से प्राप्त छंदों का अनूठा संग्रह है जिसमें है एक संगीतमय सन्देश मानवता के लिए प्रभु की ओर से । कुरआन में एक महान लय-ताल है जो उसके माधुर्य में लीन होने पर ही प्राप्य हो सकती है। यह कविता एक सुगंध परिमल है जो पाई हैमैंने, हो कर संग पवित्र कुरआन के.
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सुनना
वही होता है
सटीक
होता है जिसमे
ध्यान अर्थ का
और
होती है
तत्परता
स्वीकारने
विवेकशील
तथ्यों को....
पाने हेतु
अभिज्ञान
सत्य का ,
नहीं है
कोई प्रयोजन
अकारण
विरोध और
तर्क का....
यदि
घड़ रहा हूँ मैं
झूठ कोई
तो होउंगा
उत्तरदायी
केवल मैं ही
कर्म अपने का,
नहीं है कोई
दायित्व
तुम पर
उसका....
यदि तुम
झूठला रहे हो
सत्य को तो
उसमें है
क्षय केवल
तुम्हारा
ना कि मेरा...
Tuesday, February 15, 2011
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