(नज़्म मेरी नहीं मेरी एक सीनियर दोस्त की है अच्छी लगी, शेयर कर रही हूँ)
# # #
गुजरे हैं
तूफाँ कितने
इस गुलशन से होकर,
हुए बर्बाद
गुल सारे
ना हुआ कोई
काँटों पे असर....
मुझे क्या
जन्नत
क्या दोज़ख,
मुझे क्या
देरो हरम का सरोकार,
मिल जाये
बस यह दुनिया,
आती है जहाँ
खिज़ा-ओ-बहार...
रहती है
तुमको
सारे जहाँ की
फ़िक्र,
मुझको है बस
एक ही शिकवा
ए मेरे हमसफ़र,
जब भी करूँ
मैं अपने ग़म का जिक्र,
कहता है तू
छोड़ न इसको
कोई और बात कर....
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गुजरे हैं
तूफाँ कितने
इस गुलशन से होकर,
हुए बर्बाद
गुल सारे
ना हुआ कोई
काँटों पे असर....
मुझे क्या
जन्नत
क्या दोज़ख,
मुझे क्या
देरो हरम का सरोकार,
मिल जाये
बस यह दुनिया,
आती है जहाँ
खिज़ा-ओ-बहार...
रहती है
तुमको
सारे जहाँ की
फ़िक्र,
मुझको है बस
एक ही शिकवा
ए मेरे हमसफ़र,
जब भी करूँ
मैं अपने ग़म का जिक्र,
कहता है तू
छोड़ न इसको
कोई और बात कर....
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