( देवनागरीकरण -मुदिता मासी)
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बिखरे से लम्हे : अंकित
नहीं जानता यह त्रिवेणियाँ है, शे'र है या कुछ और. बस इतना ही कि अलग अलग लम्हों में कुछ जज्बात, कुछ सोच, कुछ कहने, कुछ सुनने उभरे, उन लम्हों को कलम बंद करने की कोशिश की. आज उन्ही लम्हों को आपके साथ बाँटने के लिए हाज़िर हुआ हूँ.
*(१)
बंद आँखों को अँधेरे सताते हैं,
जगे रहने से एहसास.
ए रात बता अब मैं क्या करूँ ?
*(२)
कौन किस को ढूंढ रहा था ना जाने,
कौन कर रह था किस का इन्तिज़ार.
चाँद को तेरी खिड़की के बाहर देखा गया.
*(३)
सपने सो गए थे थक कर,
तुम ने इतना क्यों ताका था.
बदलते हुए चाँद को.
*(४)
'तुम' 'मैं ' हो...'मैं ' तुम,
फिर संग चलने की आस क्यों.
क्यों ना अपनी अपनी राहों से चल,
पहुंचे संग संग मंजिल को.
*(५)
आओ मौन होकर,
महसूस करें एक दूजे हो.
बोलने से बातें परायी हो जाती है.
-अंकित
बिखरे से लम्हे : अंकित
नहीं जानता यह त्रिवेणियाँ है, शे'र है या कुछ और. बस इतना ही कि अलग अलग लम्हों में कुछ जज्बात, कुछ सोच, कुछ कहने, कुछ सुनने उभरे, उन लम्हों को कलम बंद करने की कोशिश की. आज उन्ही लम्हों को आपके साथ बाँटने के लिए हाज़िर हुआ हूँ.
*(१)
बंद आँखों को अँधेरे सताते हैं,
जगे रहने से एहसास.
ए रात बता अब मैं क्या करूँ ?
*(२)
कौन किस को ढूंढ रहा था ना जाने,
कौन कर रह था किस का इन्तिज़ार.
चाँद को तेरी खिड़की के बाहर देखा गया.
*(३)
सपने सो गए थे थक कर,
तुम ने इतना क्यों ताका था.
बदलते हुए चाँद को.
*(४)
'तुम' 'मैं ' हो...'मैं ' तुम,
फिर संग चलने की आस क्यों.
क्यों ना अपनी अपनी राहों से चल,
पहुंचे संग संग मंजिल को.
*(५)
आओ मौन होकर,
महसूस करें एक दूजे हो.
बोलने से बातें परायी हो जाती है.
-अंकित
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