Thursday, November 10, 2011

साक्षी..


# # #
रहता है
बन कर
साक्षी
मर्यादा का
यह किनारा,
बिसरा कर
सब कुछ
निगलती उगलती
रहती है जिसको
निरंतर
सागर की
चंचला लहरें..

No comments:

Post a Comment