Friday, January 27, 2012

विराट और विराम

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नयन बनती है
माध्यम,
अस्तित्व के
विराट कर्तृत्व को
स्वयं में
समा लेने का,
पर्वत-मैदान
नदिया-महासागर
वन-उपवन
प्राणी-अप्राणी
सुन्दर-असुंदर
स्वप्न-सत्य
सब कुछ
आते हैं चले जाते हैं
बिना ठहरे,
नहीं है विराम
एक क्षुद्र
नगण्य
किरकिरी को भी
यहाँ.........

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