Wednesday, April 7, 2010

तफसीर......

* * *
पूरे से दिखने वाले
अधूरे
रिश्तों में
जब एक दूसरे को
समझ लेने को
कुछ भी बाकी नहीं
दिखाई देता तो
बदौलत इस भ्रम के
समझ का धारा
मुड़ जाता है
उलटी तरफ
सारे एहसास
सारे इज़हार
दरिया-ए-मोहब्बत का
तेज़ बहाव
बदल जातें हैं
तंज़
नज़रंदाज़ी और
तौहीन में,
होने लगता है
उनका तफसीर
एक दोस्तीनुमा
दुश्मनी में......

तंज़=व्यंग, तौहीन =अपमान, नज़रंदाज़ी=अवहेलना, तफ़सीर= निर्वचन/interpretation

No comments:

Post a Comment