Sunday, April 11, 2010

सुराही माटी की....

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भरा है समंदर
अथाह जल से
दरिया के
बहाव में भी
बहुतेरा पानी है,
मगर
हाथों में मेरे तो है
बस सुराही
माटी की....

मेरे मौला !
मांगती हूँ तुझ से
ताकत
हौसला और
मौका,
महज़ इतना के
भर सकूँ पूरा
इस माटी की
सुराही को,
और
ले चलूँ
इसको
सहन में अपने ,
बुझा सकूँ जिससे
तशनगी मेरी......

दरिया हो या
समंदर
इश्क का
या इल्म का,
मालूम है मुझको
हदें अपनी,
जो है
इस माटी की
सुराही सी,
जिसे रखे हूँ
मैं अपने
हाथों में ......

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