Friday, April 30, 2010

रिश्तों के रखाव में : दास्ताने सिकंदर

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रिश्तों के रखाव में
सहजता का अभाव क्यों ?

दुनियां को फतह करना
सिकंदर का ख्वाब था
जीते जा रहा था मुल्कों को
उसका रुतबा बे-हिसाब था
फिर भी एक सवाल था
जिसका नहीं कोई जवाब था
डायोनीज ने पूछा था
आलम को फतह करने
क्यों परेशान हो तुम ?
बताओ मुझे सिकंदर
क्या खुद के बादशा हो तुम ?
लहरा रहे हो परचम
सारे जहाँ में
गाये जा रहे हो नगमे
अपनी ही शान में
बताओ खुद को तुम
जीतोगे कब ?
बोला सिकंदर
दुनिया जीत लूँगा

कहा था डायोनीज ने :

कायनात कि हदों को लांघते
ना बचेगा वक़्त तुझ पे
ज़िन्दगी का दीया तेरा
रह ना जाये बुझ के.....

हिंद कि सरजमीं पर
मिले थे उसे कलंदर
रूहानी सबक लेकर
लौटा था तब सिकंदर
राह में यूनान की
मौत ने था उसको घेरा
खुद को जीतने का
ज़ज्बा उसका
रह गया अधूरा…………

खुद की पहचान ना कर
हकीक़त से अनजान बन
औरों पर हावी होने का
इन्सान का स्वभाव क्यों ?
रिश्तों के रखाव में
सहजता का आभाव क्यों…..?

(नायेदा आपा की प्रेरणा से महक द्वारा रचित)

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