Sunday, April 25, 2010

गर्धभ जी....

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गर्धभ जी
निरीह है
रजक
उमेठे कान,
काम लेवे
पीटे
बाहिर करे
खोजो
खान और
पान.....

(रजक=धोबीजी, जो गधे से बहुत कस के काम लेते हैं, कान उमेठते हैं, मारते-पीटते है, काम पूरा होने पर उसे चारा पानी नहीं देते और धक्का देकर बाहर खदेड़ देते हैं कहते हुए-"गधीये ! जहाँ चाहे मुंह मार अपना पेट भर."....और गधा इसके बावजूद भी लौट के धोबिया के पास ही चला आता है...कैसा अजीब रिश्ता है यह.)

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