Wednesday, April 14, 2010

भ्रमर : हिंदी भावानुवाद

(मूल रचना अंग्रेजी में 'दी बम्बल बी' शीर्षक से लिखी गयी थी)

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देखा भ्रमर को ?
देह है उसकी
भारी-भरकम
पंख है
नन्हे नन्हे,
फूल फूल पर
फिरे
बगिया में
हर लम्हा
गाये नगमे,
आश्चर्यचकित
विज्ञान
बावरा
विफल
सिद्धांत
वायुगतिकी के....(@)

क्षमताएं
सीमायें जो
दिखती बाहर,
है भ्रान्तियां
प्रकट है,
स्वप्न मेरे
है प्राप्य पूर्णत:,
तथ्य यही
सुस्पष्ट है,

जानबूझ कर
अनभिज्ञ
बना मैं
लभ्य की
सीमाओं से,
पाठ पढ़ा है
मैंने ऐसा
भंवरे की
उपमाओं से....

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@वायुगतिकी=aerodynamics का वैज्ञानिक सिद्धांत जिसके सूत्रों के परिपेक्ष्य में यदि देखा जाये तो इतने भरी शरीर, शारीरिक बनावट एवम् लघु पंखों से उसका उड़ना असंभव है..किन्तु वह उड़ता भि है...और भ्रमण भि करता है उद्यान में....एक गति और स्वर के साथ...जिसे हम भँवरे की गुंजन कहते हैं...और फूलों से उसका रिश्ता सब को विदित ही है..सरांस यह है की तथाकथित सीमाओं और क्षमताओं की बातों में उलझ कर हम अपने आप को कर्म करने से रोक देते हैं और उपलब्धियां जो हमारी झोली में गिर सकती है से वंचित रह जाते है.....इसलिए कभी कभी हमें इन्हें इग्नोर कर जुट जाना होता है..

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