(दिल नहीं मान रहा था, आपकी महफ़िल में महक हाज़िर है..कभी कभी आउंगी...आप सब को मेरा सलाम और शुभकामनाएं !)
# # #
साँसों का
ये सफ़र
'महक'
कितना
सुहाना है,
मिल जाये
कब
मंजिल
हम को
बस क्या
ठिकाना है...
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साँसों का
ये सफ़र
'महक'
कितना
सुहाना है,
मिल जाये
कब
मंजिल
हम को
बस क्या
ठिकाना है...
बेहद सुन्दर...आपके आगमन जितनी ही सुखद कविता
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