Monday, August 2, 2010

भीड़ में पहचान अपनी...

(बस आपके बीच होने की तमन्ना यहाँ ले आती है, ना ज्यादा पढ़ रही हूँ, ना ही कमेंट्स दे रही हूँ...बस यही एहसास ख़ुशी दे रहा है आप सब के साथ हूँ....मुआफ कीजियेगा.)


# # #
भीड़
भीड़ होती है
हुसैन सागर के
किनारे की
कनाट प्लेस के
गलियारेकी
टाईम्स स्क्वायर की
गली-चौबारे की...

भूल कर
पहचान अपनी
दौड़े जा रहे हैं
पुतले से सब कोई
ना जाने
किस जानिब....

मेरे हमदम आईने !
सिर्फ
तू ही तो है
जो करा रहा है
पहचान मेरी
मुझ से,
घर की
समाज की
दुनियाँ की
इस जानी अनजानी
बेतरतीब
भीड़ में.......

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