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हुआ था पतन
राजा रावण
शक्तिशाली का
अतिशय दर्प से,
दुर्योधन
योद्धा बलशाली का
अतिशय लोभ
एवम्
ईर्ष्या से,
राजा बाली का
अतिशय दान से
उत्पन्न
अहंकार अति से...
चारित्रिक विकार त्रय
लोभ,क्रोध एवम् मद,
चढ़ा देते हैं
रंगीन ऐनक
आँखों पर,
देखने लगता है
मनुज
जिस से
व्यक्तियों,
घटनाओं एवम्
संबंधों को
उन्ही रंगों में..
मानव मन
हो जाता है
सम्मोहित
एवम्
जाता है
भटक
नकाराताम्क
मृग मरीचिका में
जिससे होना
विमुक्त
हो जाता है
लगभग
असंभव..
(गीता में वर्णित 'रजोगुण' के निर्वचन पर आधारित एक दार्शनिक वार्ता से प्रेरित)
हुआ था पतन
राजा रावण
शक्तिशाली का
अतिशय दर्प से,
दुर्योधन
योद्धा बलशाली का
अतिशय लोभ
एवम्
ईर्ष्या से,
राजा बाली का
अतिशय दान से
उत्पन्न
अहंकार अति से...
चारित्रिक विकार त्रय
लोभ,क्रोध एवम् मद,
चढ़ा देते हैं
रंगीन ऐनक
आँखों पर,
देखने लगता है
मनुज
जिस से
व्यक्तियों,
घटनाओं एवम्
संबंधों को
उन्ही रंगों में..
मानव मन
हो जाता है
सम्मोहित
एवम्
जाता है
भटक
नकाराताम्क
मृग मरीचिका में
जिससे होना
विमुक्त
हो जाता है
लगभग
असंभव..
(गीता में वर्णित 'रजोगुण' के निर्वचन पर आधारित एक दार्शनिक वार्ता से प्रेरित)
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