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जीवनहमारा है
एक दर्पण,
निशि-दिन हम
जमने देतें है धूल
इस उजले दर्पण पर;
नहीं करते कभी
प्रयास
हठाने का उसको
और
हो जाता है दर्पण
अंधा,
होतें है जब जब हम
सामने दर्पण के,
कोई और तो क्या
देख नहीं पाते
स्वयं हम
पूर्ण प्रतिबिम्ब अपना...
जब भी हम
सोचें औरों को,
और करें
व्यर्थ और भौंडी
आलोचना उनकी,
ठहरें तनिक
और करें पूर्व उसके
सामना
उजले दर्पण का...
दर्पण
मिथ्या ना बोलेगा
जैसा है
वैसा ही
भेद वह
खोलेगा,
आओ
अपने मन को हम
दर्पण बनायें,
भले बुरे
सारे कर्मों को
देखें और
दिखायें...
जीवनहमारा है
एक दर्पण,
निशि-दिन हम
जमने देतें है धूल
इस उजले दर्पण पर;
नहीं करते कभी
प्रयास
हठाने का उसको
और
हो जाता है दर्पण
अंधा,
होतें है जब जब हम
सामने दर्पण के,
कोई और तो क्या
देख नहीं पाते
स्वयं हम
पूर्ण प्रतिबिम्ब अपना...
जब भी हम
सोचें औरों को,
और करें
व्यर्थ और भौंडी
आलोचना उनकी,
ठहरें तनिक
और करें पूर्व उसके
सामना
उजले दर्पण का...
दर्पण
मिथ्या ना बोलेगा
जैसा है
वैसा ही
भेद वह
खोलेगा,
आओ
अपने मन को हम
दर्पण बनायें,
भले बुरे
सारे कर्मों को
देखें और
दिखायें...
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