Thursday, October 20, 2011

निराई...

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(जब मैं हैदराबाद होती थी, हमारे नेटिव प्लेस-राजस्थान के कुछ खेतिहर लोग हमारे मेहमान होते थे, उनकी जमीनी बातों में बहुत गहरा व्यावहारिक ज्ञान छलकता था..बचपन में सुनी कुछ शिक्षाप्रद बातें मस्तिष्क पर अंकित हो गयी, उनमें से यह एक है...)
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पौध हुई
थोड़ी बड़ी,
संग पनपे
खर-पात,
हरित फसल
सूखी करे,
अवांछित का साथ...
*
*
*
तो
कर निराई
'जस नाथ'..
(जस नाथ बात कहने वाले का नाम था)

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